भभुआ. जिले से गुजरने वाले वाराणसी-कोलकाता एक्सप्रेसवे के निर्माण में भूमि अधिग्रहण का उचित मुआवजा नहीं मिलने को लेकर किसान संघर्ष मोर्चा कैमूर व भारतीय किसान यूनियन कैमूर के नेतृत्व में वाराणसी-कोलकाता एक्सप्रेसवे का निर्माण कार्य जिले में पूरी तरह ठप किया जायेगा. उक्त निर्णय किसान संघों के बैनर तले किसानों की बैठक में शुक्रवार को लिया गया. इधर, इस संबंध में किसान संघर्ष मोर्चा कैमूर के जिलाध्यक्ष विमलेश पांडेय ने बताया कि सरकार के मुआवजा की दोरंगी नीति को लेकर 148 दिनों से धरना दे रहे किसानों के सब्र का बांध अब टूट चूका है. इसके बाद बैठक में सर्वसम्मति से किसानों ने यह निर्णय लिया है कि जब तक उचित मुआवजा का भुगतान नहीं किया जाता है, तब तक किसान वाराणसी-कोलकाता एक्सप्रेसवे का निर्माण के लिए किसी तरह का निर्माण कार्य नहीं होने देंगे. उन्होंने बताया 22 दिसंबर से भूमि अधिग्रहित प्रभावित गांवों में भी किसानों का धरना शुरू होगा. अब किसानों के पास लगातार धरना प्रदर्शन करने के बाद दूसरा कोई रास्ता नहीं बचा है. क्योंकि, किसानों की मांग को लेकर सरकार उदासीन बनी हुई है. अगर प्रशासन किसानों के साथ जबर्दस्ती करता है, तो उसका परिणाम भी प्रशासन को भुगतना पडेगा. क्योंकि यहां किसान भी अब आर-पार की लड़ाई का मन बना चुके हैं. बैठक में मसोई, सहबाजपुर, ठकुरहट, विजरा, जिगना, चांद, बबुरहन, बेतरी, सिहोरियां, सीवों, ददरा, बिरना, कुशडेहरा, भैरोपुर सहित कई गांवों के किसान शामिल थे. इन्सेट भूमि अधिग्रहण में नहीं किया गया नियमों का पालन भभुआ. किसान संगठनों के नेता पशुपतिनाथ सिंह पारस, अभिमन्यु सिंह, अनिल सिंह आदि ने बताया कि सरकार द्वारा किये गये भूमि अधिग्रहण में भूमि अधिग्रहण नियमों का पालन नहीं किया गया है. किसानों की अधिग्रहित भूमि बहु फसली तथा कीमती है. इसकी कीमत सरकार द्वारा बाजार मूल्य से बहुत कम दिया जा रहा है. जबकि, वाराणसी कोलकाता एक्सप्रेसवे के निर्माण में जिले के 93 मौजों की 17 सौ एकड़ जमीन सरकार ने किसानों की ली है. चांद प्रखंड में एनएच 219 के चौड़ीकरण में भी 13 मौजों की 200 एकड़ जमीन सरकार द्वारा अधिग्रहित की गयी है. लेकिन, किसी भूमि का मूल्यांकन भूमि के वर्तमान कीमत के आधार पर नहीं किया गया है. गौरतलब है कि पिछले दो सालों से अधिग्रहित भूमि को लेकर किसान, धरना प्रदर्शन, पैदल मार्च, ताला बंदी आदि कई तरह से आंदोलनरत रहे हैं.
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