सिर्फ अगस्त में ही डायरिया से चार लोगों की मौत
कैमूर जिले में पिछले अगस्त महीने में ही चार लोगों की डायरिया से हुई मौत ने जिले के स्वास्थ्य व्यवस्था पर बड़े सवाल खड़े कर दिये हैं.
भभुआ कार्यालय. मेडिकल साइंस आज बहुत आगे बढ़ चुका है. आज चेचक, पोलियो और डायरिया जैसी बीमारी बीते दिनों की बात हो चुकी है, लेकिन कैमूर जिले में पिछले अगस्त महीने में ही चार लोगों की डायरिया से हुई मौत ने जिले के स्वास्थ्य व्यवस्था पर बड़े सवाल खड़े कर दिये हैं. आज के समय में जब स्वास्थ्य केंद्र, उप स्वास्थ्य केंद्र, हेल्थ एंड वैलनेस सेंटर, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र गांव, पंचायत व प्रखंड स्तर पर चल रहे हैं, वैसे में भी अगर किसी व्यक्ति की मौत डायरिया से हो जाती है, तो यह निश्चित रूप से स्वास्थ्य विभाग की कार्यशैली पर बड़े सवाल खड़े कर रही है. साथ ही स्वास्थ्य विभाग के आलाधिकारियों को भी सोचने की जरूरत है कि जब सरकार की तरफ से गांव- गांव में आशा, एएनएम व सीएचओ की तैनाती की गयी है, इसके बावजूद गांव में डायरिया फैल जाता है और यही नहीं डायरिया से गांव में मौत तक हो जा रही है और स्वास्थ्य विभाग को इसकी जानकारी तक नहीं हो रही है. मौत के बाद स्वास्थ्य विभाग की नींद टूटती है और वह वहां पर इलाज करने के लिए पहुंचती है, यह स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही नहीं तो और क्या है. खासकर कैमूर जिले में जब एक महीने में डायरिया से चार-चार लोगों की मौत हो जाये, तो निश्चित रूप से स्वास्थ्य विभाग शिकारी शैली सवालों के घेरे में होगी. स्वास्थ्य विभाग जिला प्रवाही का जीता जागता उदाहरण पिछले महीने कैमूर पहाड़ी पर स्थित चैनपुर प्रखंड के डुमरकोन में देखने को मिला, जहां डायरिया से हरेराम यादव की सात वर्षीय बच्चे की मौत तक हो गयी, लेकिन स्वास्थ्य विभाग को इसका पता तक नहीं था. उसकी मौत के बाद स्वास्थ्य विभाग की नींद टूटी और गांव में मेडिकल टीम जब पहुंची तो पाया कि गांव में 40 से 50 की संख्या में बच्चों से लेकर बूढ़े तक डायरिया से पीड़ित हैं. इसके बाद जब उनका इलाज किया गया, तब उक्त गांव में डायरिया पर नियंत्रण पाया जा सका. उक्त गांव की घटना स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही को बताने के लिए काफी है कि पूरे गांव में डायरिया फैल जाता है और डायरिया से एक बच्चे की मौत भी हो जाती है, लेकिन तब तक स्वास्थ्य विभाग के किसी भी अधिकारी को इसकी खबर तक नहीं रहती है. सबसे बड़ी बात, डायरिया जैसी बीमारी से एक सात वर्षीय बच्चे की मौत हो जाती है, पूरा गांव डायरिया की चपेट में रहता है, लेकिन इस मामले में किसी तरह की सूचना प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र या स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को नहीं देने वाले गांव में तैनात स्वास्थ्य कर्मियों से जवाब तलब तक नहीं किया जाता है. स्वास्थ्य विभाग की यह लापरवाही स्पष्ट रूप यह बता रहा है कि गांव में डायरिया फैले या फिर किसी की मौत हो जाये, स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों को शायद ही इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. = चौकीदार समेत चार लोगों की हुई मौत अगर अगस्त महीने में डायरिया से हुई मौत के आंकड़ों पर नजर डालें तो सबसे पहले चैनपुर प्रखंड के डूमरकोन गांव के हरे राम यादव के सात वर्षीय पुत्र की मौत हो गयी. उसके बाद सोनाहम थाना क्षेत्र के झींगई डिहरा गांव के रहने वाले कुंदन कुमार के 12 वर्षीय पुत्र राहुल कुमार की मौत हो गयी. इसके बाद 16 अगस्त को हटा के रहने वाले पारस बिंद की 25 वर्षीय पत्नी रिंकू देवी की मौत भी डायरिया से पीड़ित होने के कारण हो गयी और इसके बाद 30 अगस्त को अधौरा के चौकीदार राम बच्चन सिंह की भी मौत के पीछे भी कारण डायरिया को ही परिजनों द्वारा बताया गया. अगस्त महीने में एक पर एक चार लोगों की डायरिया से मौत ने जिले के स्वास्थ्य व्यवस्था पर एक बड़ा सवाल निश्चित रूप से खड़ा कर दिया है. गांव में बड़े पैमाने पर फैलता है डायरिया कैमूर पहाड़ी पर बसे गांव में आज भी बड़े पैमाने पर डायरिया फैला है, सबसे बड़ी बात है कि गांव में डायरिया फैल जाता है और वहां इसकी खबर तक स्वास्थ्य विभाग की लोगों को नहीं होती है. गांव के लोग अपने डायरिया पीड़ित मरीजों को लेकर झोलाछाप डॉक्टरों के यहां दौड़ते रहते हैं, इसी दरमियान कई बार मौत भी हो जाती है, लेकिन इन सब से स्वास्थ्य विभाग को कोई फर्क नहीं पड़ता है. डायरिया एक ऐसी बीमारी है, जिसका आज के समय में मुकम्मल इलाज है. लेकिन, आज के समय में अगर किसी की मौत डायरिया से होती है, तो निश्चित रूप से इसे इलाज में लापरवाही माना जायेगा. अगर परिवार के लोगों द्वारा इलाज में लापरवाही बढ़ती जाये, तभी मरीज की जान चली जाती है या फिर कैमूर पहाड़ी पर सुदूर पहाड़ी क्षेत्र में बसे गांव में अगर कोई चिकित्सा व्यवस्था उपलब्ध नहीं करायी जाये, तब भी कई बार लोग अपनी जान गंवा बैठते हैं. कैमूर पहाड़ी पर बसे गांव में अशिक्षा, लोगों का जागरूक नहीं होना व स्वास्थ्य विभाग की तरफ से सिर्फ खानापूर्ति किये जाने के कारण गांव के गांव डायरिया से पीड़ित होते हैं और स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह से नदारत पायी जाती है. यहां तक की स्वास्थ्य विभाग के लोगों को इसकी खबर तक नहीं रहती है. जबकि, जिस गांव में डायरिया फैला होता है उस गांव की में तैनात स्वास्थ्य कर्मी तक को भी इसकी खबर नहीं रहती है. अगर खबर रहती भी है तो वह इस सूचना को स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों तक पहुंचा कर गांव में चिकित्सीय व्यवस्था उपलब्ध कराने की जहमत लेना ही नहीं चाहते हैं.
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