भभुआ. चतुर्थ कृषि रोड मैप के तहत जिले के किसानों को पहली बार कृषि विभाग द्वारा वर्मी कंपोस्ट प्लांट लगाने के लिए अनुदान पर सहायता राशि उपलब्ध करायी जायेगी. एक प्लांट पर किसानों को अधिकतम 50 प्रतिशत या 5000 रुपये अनुदान दिया जायेगा. साथ ही एक किसान अधिकतम तीन प्लांट पर अनुदान प्राप्त कर सकता है. गौरतलब है कि सरकार वर्तमान में जैविक खेती पर अधिक जोर देते हुए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है. वर्मी कंपोस्ट खाद केंचुआ आदि कीडों द्वारा पौधों और भोजन के कचरे को विघटित करके बनायी जाती है, वर्मी कंपोस्ट पूरी तरह जैविक खाद होता है, इसमें बदबू नहीं होती है, न तो इससे मक्खी मच्छर ही बढ़ते हैं. फसल से लेकर पर्यावरण के लिए भी वर्मी कंपोस्ट खाद अच्छी मानी जाती है. इधर, इस संबंध में जानकारी देते हुए जिला कृषि पदाधिकारी रेवती रमण ने बताया कि कृषि विभाग द्वारा पहली बार किसानों को अनुदान पर वर्मी कंपोस्ट प्लांट उपलब्ध कराया जाता है. सरकार द्वारा जिले का कुल लक्ष्य 368 वर्मी कंपोस्ट प्लांट निर्धारित किया गया है. ऑनलाइन आवेदन करने वाले किसानों को पहले आओ पहले पाओ के सिद्धांत पर दिया जायेगा. अब तक जिले को कुल 237 आवेदन प्राप्त हुए है. एक किसान अधिकतम तीन वर्मी कंपोस्ट के लिए अनुदान प्राप्त कर सकता है, जो 10 हजार रुपये की लागत वाले प्लांट का 50 प्रतिशत या अधिकतम 5000 रुपये होगा. वर्मी कंपोस्ट इकाई पर अनुदान केंचुआ खाद तैयार होने के बाद ही दिया जायेगा. इन्सेट आठ-नौ सप्ताह में तैयार हो जाती है वर्मी कंपोस्ट खाद भभुआ. जैविक खेती का मुख्य आधार माने जाने वाली वर्मी कंपोस्ट खाद आठ-नौ सप्ताह के अंदर तैयार हो जाती है. इस संबंध में जिला कृषि पदाधिकारी रेवती रमण ने बताया कि केंचुआ जो किसानों का मित्र कीट है. भूमि व फसल दोनों के लिए लाभदायक है. किसान थोड़ी से मेहनत करके केचुएं की मदद से गोबर मिश्रित घास-फूस, पत्तियां व कचरा आठ से नौ सप्ताह के अंदर वर्मी कंपोस्ट खाद के रूप में बदल सकते हैं. ढेर का रंग काला होना और केचुएं के सतह के ऊपर आना वर्मी कंपोस्ट खाद तैयार होने का सूचक है. इससे पौधों को सभी पोषक तत्व मिलते हैं, साथ ही इसके उपयोग से उत्पादकता में वृद्धि होती है. उन्होंने बताया कि वर्मी कंपोस्ट खाद तैयार होने के बाद उसका चार से पांच फुट ऊंचा ढेर बनाना होता है. इसके बाद ढेर पर पानी डालना बंद कर देना चाहिए. जैसे-जैसे ढेर में नमी कम होती जायेगी, वैसे-वैसे केंचुए ढेर के नीचे चलते जाते हैं. नमी कम होने के बाद ऊपर से वर्मी कंपोस्ट को उठाकर किसान अपनी फसल में प्रयोग कर सकते हैं.
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