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अधिकतर सीएचसी में बाल और महिला रोग विशेषज्ञ डॉक्टरों का अभाव

भगवानपुर के पतरीहा गांव के रहनेवाले लालबाबू चौधरी की गर्भवती पत्नी लक्ष्मीना देवी की शनिवार रात अचानक तबीयत खराब हो गयी. अंदरूनी बीमारी की वजह से परिजन उसे लेकर भगवानपुर पीएचसी आये, लेकिन यहां महिला डॉक्टर के नहीं रहने से लक्ष्मीना देवी की जांच पड़ताल नहीं हो सकी

भभुआ सदर. भगवानपुर के पतरीहा गांव के रहनेवाले लालबाबू चौधरी की गर्भवती पत्नी लक्ष्मीना देवी की शनिवार रात अचानक तबीयत खराब हो गयी. अंदरूनी बीमारी की वजह से परिजन उसे लेकर भगवानपुर पीएचसी आये, लेकिन यहां महिला डॉक्टर के नहीं रहने से लक्ष्मीना देवी की जांच पड़ताल नहीं हो सकी. इसके चलते गर्भवती महिला को तत्काल इलाज के लिए सदर अस्पताल लाना पड़ा. दरअसल, जिले में एक भगवानपुर पीएचसी ही नहीं बल्कि, चांद, चैनपुर, दुर्गावती, नुआंव, मोहनिया अनुमंडलीय अस्पताल और कुदरा को छोड़ दें तो अन्य किसी भी सीएचसी या एपीएचसी में महिला डॉक्टर तैनात नहीं है. कुछ ऐसा ही हाल शिशु रोग डॉक्टरों का भी है और भभुआ सदर अस्पताल व मोहनिया अनुमंडलीय अस्पताल के अलावा कहीं भी बच्चों के डॉक्टर पदस्थापित नहीं है. वैसे यह तो बानगी भर है. क्योंकि, कैमूर को जिला बने 33 साल से अधिक हो गये हैं. लेकिन, आज भी कैमूर जिले के ग्रामीण इलाकों में स्थापित अधिकतर सीएचसी में महिला और बाल रोग संबंधित डॉक्टर पदस्थापित नहीं किये जा सके हैं या पदस्थापित हैं भी तो गायब हैं या लंबी छुट्टी पर हैं. अब डॉक्टरों के पदस्थापित नहीं होने के चलते जिले के ग्रामीण इलाकों के अधिकतर गंभीर महिलाओं और बीमार बच्चों को ऐसे में 10 से 50 किलोमीटर तक की दूरी तय कर सदर अस्पताल भभुआ लेकर जाना आज भी लोगों की मजबूरी बनी हुई है. हालांकि, सदर अस्पताल में महिला और बच्चों के नियमित और संविदा पर डॉक्टर उपलब्ध है और यहां इलाज के साथ दवा की भी सुविधा उपलब्ध है. सदर अस्पताल भभुआ में ही नवजात बच्चों के इलाज के लिए अत्याधुनिक एसएनसीयू भी उपलब्ध है. जहां, इलाज के लिए बच्चों के डॉक्टर 24 घंटे मौजूद रहते है. स्वास्थ्य विभाग से मिली जानकारी के अनुसार एसएनसीयू के ही बदौलत जिले में शिशु मृत्यु दर घटी है. लेकिन, उनका क्या जो सुदूर ग्रामीण इलाकों में रहते हैं और समय पर इलाज नहीं मिलने की वजह से अकाल मौत के शिकार हो जाते है या शरीर से अपंग हो जाते हैं. = एमबीबीएस डॉक्टर का मिलता है सहारा वैसे जिन जगहों पर महिला या बच्चों के डॉक्टर नहीं होते है वहां महिला और बच्चों का इलाज एमबीबीएस डॉक्टरों के किया जाता है. स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की माने तो बच्चों के विशेषज्ञ डॉक्टर की तैनाती नहीं होने से एमबीबीएस डॉक्टर द्वारा घायल या बीमार होकर आये बच्चों का इलाज करने का हरसंभव प्रयास किया जाता है. अगर बच्चा गंभीर होता है तो फिर बच्चों को बेहतर इलाज के लिए भभुआ सदर अस्पताल रेफर किया जाता है. या फिर वैसे बच्चों को 75 किलोमीटर दूर वाराणसी या 180 किलोमीटर दूर पटना रेफर कर दिया जाता है. = बच्चों के इलाज में जरूरी दवाओं की अनुपलब्धता आती है आड़े जिले भर के सीएचसी में महिला और बच्चों के डॉक्टर की कमी तो है ही. सीएचसी में महिला रोग और शिशु रोग से संबंधित अधिकतर दवा भी उपलब्ध नहीं हो पाता है. ऐसे में अगर किसी मरीज के परिजनों को आकस्मिक तौर पर दवा की जरूरत होती है तो उन्हें फिर दवा बाहर से खरीदकर लाना पड़ता है. वैसे, सदर अस्पताल भभुआ में बच्चों और महिलाओं के इलाज के लिए अधिकतर दवा उपलब्ध है. सदर अस्पताल भभुआ के उपाधीक्षक डॉ विनोद कुमार के अनुसार, बच्चों के स्वास्थ्य संबंधित और महिलाओं के फोलिक एसिड सहित हर दवा उपलब्ध करायी जा रही है. = जिले में डॉक्टरों की है भारी कमी जिले के अधिकतर पीएचसी, एपीएचसी पर महिला और बाल रोग से संबंधित डॉक्टर के नहीं होने के सवाल पर सिविल सर्जन डॉ चंदेश्वरी रजक ने बताया कि जिले में महिला और बच्चों के डॉक्टरों की वाकई कमी है. इसके चलते हरेक सीएचसी पर महिला और बाल रोग से जुड़े डॉक्टरों की तैनाती करना मुश्किल है. वैसे जिले में एमबीबीएस डॉक्टर की अनुपलब्धता के बावजूद आयुष महिला डॉक्टरों की तैनाती की गयी है.

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