पानापुर पैक्स में 212 मृतक मतदाताओं का नहीं हटा नाम
जिम्मेदार पदाधिकारियों की मिलीभगत से पैक्सों की मतदाता सूचियों से मृतक मतदाताओं, विवाहित बेटियों, अवयस्क मतदाताओं के साथ दूसरे राज्यों और बाहर के पंचायतों में रहने वाले लोगों का नाम विलोपित किये जाने का नाम नहीं ले रहा है
मोहनिया सदर. पैक्सों की मतदाता सूचियों में आज जो भी खामियां उभर कर सामने आ रही हैं. इसके जिम्मेदार पदाधिकारियों की मिलीभगत से पैक्सों की मतदाता सूचियों से मृतक मतदाताओं, विवाहित बेटियों, अवयस्क मतदाताओं के साथ दूसरे राज्यों और बाहर के पंचायतों में रहने वाले लोगों का नाम विलोपित किये जाने का नाम नहीं ले रहा है. इसको लेकर प्रशासनिक स्तर पर भी वरीय अधिकारियों की खूब किरकिरी हो रही है. साथ ही पैक्स चुनाव की पारदर्शिता भी तार-तार हो रही है. इसके बावजूद वरीय पदाधिकारी इन गंभीर विषयों पर संज्ञान लेने की बजाय इन मामलों से किनारा काट ले रहे हैं. इसका नतीजा है कि पैक्स चुनाव में नियमों व पारदर्शिता को धत्ता लगाने वाले अधिकारियों और पैक्स अध्यक्षों का मनोबल बढ़ता जा रहा है. उदाहरण के तौर पर प्रखंड की पानापुर पैक्स की बात करें, तो यहां अब भी 212 मृतक मतदाताओं का नाम मतदाता सूची से विलोपित नहीं किया गया है. जबकि, इस मामले को लेकर पंचायत के पूर्व मुखिया अमितेश कुमार सिंह द्वारा बीसीओ, डीसीओ, डीएम, प्रधान सचिव प्राधिकार के साथ निर्वाचन प्राधिकार पटना को भी आवेदन देकर अवगत कराया गया है. इतना ही नहीं अभी भी उक्त पैक्स की मतदाता सूची में 32 ऐसे मतदाताओं का नाम शामिल है, जिनमें कुछ पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के रहने वाले, तो कुछ युवतियां जो शादी होकर अपनी ससुराल चली गयीं है, कुछ ऐसे भी मतदाताओं का नाम शामिल है जिनके बारे में पंचायत के लोगों को कोई जानकारी ही नहीं है कि वह कौन है और कहां के रहने वाले हैं. इसके बावजूद मतदाता सूची से ऐसे लोगों के नामों को विलोपित नहीं किया जाना पैक्स चुनाव की पारदर्शिता पर कई गंभीर सवाल खड़ा करता है. यह तो सिर्फ एक उदाहरण है, जिले में न जाने कितने पैक्सों में इस तरह के हैरतअंगेज कारनामे किया गया है. यदि पानापुर पैक्स की बात करें तो वहां के तत्कालीन वार्ड सदस्य द्वारा अपने लेटर पैड पर तत्कालीन बीसीओ को उन लोगों का नाम क्रमांक संख्या के साथ लिख कर दिया गया था, जो बाहरी हैं. इसके बावजूद वर्तमान सहकारिता पदाधिकारी द्वारा भी इसे गंभीरता से नहीं लिया गया, जिसका नतीजा है कि अभी भी बड़ी संख्या में ऐसे लोगों का नाम मतदाता सूची में शामिल है. # पैक्स अध्यक्षों को नया नाम जोड़ने का अधिकार बना सिरदर्द सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि पैक्सों की मतदाता सूची में नया नाम जोड़ने व पुराने नामों को विलोपित करने का अधिकार पैक्स अध्यक्षों के हाथों में दिया जाना पैक्स चुनाव की पारदर्शिता में सबसे बड़ी बाधा बनी है. हालांकि, ऐसा नहीं है कि संबंधित विभाग के पदाधिकारी को इस पर अंकुश लगाने का अधिकार नहीं है, लेकिन प्रखंड स्तर पर पदाधिकारी व पैक्स अध्यक्षों की मिलीभगत से उन लोगों को पैक्स की मतदाता सूची में शामिल किया जाता है, जो पैक्स अध्यक्षों के करीबी होते हैं और उनसे उन्हें वोट मिलने का पूर्ण भरोसा होता है. इस पूरे खेल में पैक्स अध्यक्षों व प्रखंड सहकारिता पदाधिकारियों का साथ है. जबकि वास्तविक किसान इस अधिकार से वंचित रह जा रहे हैं. इसका नतीजा है कि पैक्स चुनाव की निष्पक्षता व पारदर्शिता पर तरह-तरह के सवाल उठाये जा रहे हैं. जहां प्रायः पैक्स अध्यक्ष वैसे लोगों का नाम मतदाता सूची में जोड़ना बिल्कुल पसंद नहीं करते हैं जो चुनाव में उनको बराबर की टक्कर देने लायक स्थिति में है. यही कारण है कि जो व्यक्ति 11 रुपये की सदस्यता शुल्क जमा करना चाहते हैं उनकाे शुल्क जमा करने में भी नाको चने चबाने पड़ते हैं, जबकि एक रुपये की सदस्यता शुल्क का भुगतान कर नाम जुड़वाने वालों के प्रति पैक्स अध्यक्षों को कोई एतराज नहीं होता है. क्योंकि वे पैक्स चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए अपनी दावेदारी पेश नहीं कर सकते हैं.
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