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ऑनलाइन व्यवस्था शुरू होने पर आरटीइ के तहत आधी हो गयी एडमिशन की संख्या

शिक्षा का अधिकार कानून आरटीइ के तहत सभी प्राइवेट स्कूलों को गरीब व असमर्थ बच्चों को अपने यहां नामांकन लेकर मुफ्त शिक्षा देने का प्रावधान है, जहां उन छात्रों के फीस का भुगतान सरकार की तरफ से किया जाता है.

By Prabhat Khabar News Desk | August 26, 2024 8:45 PM

भभुआ कार्यालय. शिक्षा का अधिकार कानून आरटीइ के तहत सभी प्राइवेट स्कूलों को गरीब व असमर्थ बच्चों को अपने यहां नामांकन लेकर मुफ्त शिक्षा देने का प्रावधान है, जहां उन छात्रों के फीस का भुगतान सरकार की तरफ से किया जाता है. लेकिन, यह व्यवस्था शुरू होने के बाद से इस योजना का लाभ गरीब छात्रों को कम प्राइवेट स्कूल वालों को ज्यादा मिल रहा है. आरटीइ के तहत प्राइवेट स्कूलों में फर्जी नामांकन दिखाकर पैसा निकाले जाने का मामला कई बार सुर्खियों में रहा है. बार-बार यह मामला सामने आता रहा है कि आरटीइ के तहत नामांकन लेने वाले छात्रों पर सरकार का पैसा प्राइवेट स्कूलों को भुगतान भी हो रहा है और इसका लाभ गरीब छात्रों को मिल भी नहीं रहा है, बल्कि फर्जी तरीके से नामांकन दिखाकर पैसे की निकासी कर ली जा रही है. इसके बाद सरकार ने इस वर्ष नयी व्यवस्था शुरू की है, जिसमें आरटीइ के तहत इच्छुक छात्रों को सीधे शिक्षा विभाग के पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन करना है और शिक्षा विभाग द्वारा उन्हें स्कूल आवंटित किया जायेगा. इस व्यवस्था के शुरू होने के बाद प्राइवेट स्कूल की तरफ से किया जाने वाला गड़बड़झाला सामने आने लगा है़ = आरटीइ के तहत नामांकन में भारी फर्जीवाड़ा प्रभात खबर में जब आंकड़ों के अनुसार पड़ताल शुरू की, तो यह पाया गया कि 2017-18 में कैमूर जिले के 44 प्राइवेट स्कूलों द्वारा 1074 छात्रों का नामांकन आरटीइ के तहत दिखाकर 96 लाख 15522 रुपये की राशि शिक्षा विभाग से कर ली गयी. वहीं, 2018-19 में 55 स्कूलों ने 1454 छात्रों का नामांकन आरटीइ के तहत दिखाकर एक करोड़ 72 लाख 57526 रुपये शिक्षा विभाग से लिया. वहीं, जब इस वर्ष छात्रों को सीधे ऑनलाइन करने की व्यवस्था शुरू की गयी, तो यह संख्या गिरकर 636 पहुंच गयी है. जबकि, 2018-19 में 1454 छात्रों का आरटीई के तहत नामांकन दिखाया गया था, वहीं अब पांच सालों बाद जब सीधे आनलाइन आवेदन करने की व्यवस्था आयी, तो महज 636 छात्र ही आरटीइ के तहत नामांकन के लिए आवेदन किये, यानी संख्या सीधे आधे से भी कम हो गयी. यह आंकड़े बता रहे हैं कि स्कूलों द्वारा आरटीइ के तहत छात्रों की जो संख्या दिखाकर पैसे की निकासी की जा रही थी, उसमें निश्चित रूप से बड़े पैमाने पर गड़बड़झाला किया जा रहा था. = आरटीई के तहत गरीब छात्रों को मुफ्त शिक्षा दिलाने में विभाग भी रही है सुस्त शिक्षा के अधिकार कानून के तहत गरीब छात्रों को प्राइवेट स्कूल में मुफ्त शिक्षा दिलाने में शिक्षा विभाग व जिला प्रशासन भी सुस्त रही है. शायद ही किसी विद्यालय में शिक्षा विभाग द्वारा या जिला प्रशासन द्वारा भौतिक रूप से निरीक्षण किया जाता हो कि वहां पर वास्तव में कितने छात्रों को मुफ्त में शिक्षा के अधिकार कानून के तहत गरीब बच्चों को पढ़ाया जा रहा है. सरकारी व्यवस्था की उदासीनता ही रही है कि जब कभी आरटीइ के पैसे के भुगतान का मामला आता है, तब प्राइवेट स्कूल छात्रों की सूची शिक्षा विभाग को सौंप देते और शिक्षा विभाग उस पैसे का भुगतान कर देता है. शिक्षा विभाग बगैर भौतिक जांच के पैसे का भुगतान कैसे करता है और प्राइवेट स्कूल कैसे इस योजना का भुगतान कई वर्षों से लेते आ रहे हैं, यह हमें बताने की जरूरत नहीं है, इसे आप भी बेहतर ही समझ रहे होंगे. वहीं, विभाग व प्राइवेट स्कूल की मिलीभगत के कारण जब सरकार की तरफ से शिक्षा के अधिकार कानून के तहत गरीब छात्रों को मुफ्त शिक्षा देने की व्यवस्था लागू होने के बावजूद जब इसका लाभ गरीब छात्रों को नहीं मिलता दिखा, तो विभाग ने भी 2024 – 25 में व्यवस्था में बदलाव करते हुए अब छात्रों को सीधे ऑनलाइन आवेदन करने का सिस्टम लागू किया है, जिसके बाद नामांकन लेने वाले आंकड़े में बड़ा अंतर देखा जा रहा है, जो स्पष्ट रूप से भारी फर्जीवाड़े की ओर इशारा कर रहा है. = जिले के नामचीन प्राइवेट स्कूलों ने नहीं लिया आरटीइ के पैसे जिले में आरटीइ के तहत गरीब छात्रों के नामांकन लेकर उनके पढ़ाई का पैसा शिक्षा विभाग से जिले के नामचीन प्राइवेट स्कूलों ने नहीं लिया. वहीं, नाम न छापने के शर्त पर प्राइवेट स्कूल के निदेशकों ने बताया कि जिस तरह से आरटीइ के तहत नामांकन दिखाकर पैसे की निकासी की जा रही है, इसका लाभ लेकर हम अपने स्कूल का नाम खराब नहीं करना चाहते हैं, इसीलिए हम लोगों ने इसके तहत आवेदन ही नहीं किया है. हम लोग कई गरीब छात्रों को मुफ्त में शिक्षा दे रहे हैं, लेकिन विभाग में जिस तरह का गड़बड़झाला चल रहा है वैसे में गड़बड़झाला कर हम भी अगर पैसा ले लेते और कभी जांच होती, तो हमारे स्कूल का नाम भी बदनाम होता. इसलिए हम इस पैसे के लिए आवेदन ही नहीं करते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि 2017-18 और 2018-19 के छात्रों के आंकड़ों से अगर 2024-25 के ऑनलाइन करने वाले छात्रों के आंकड़ों की तुलना करें, तो यह स्पष्ट रूप से भारी फर्जीवाड़ा की ओर इशारा कर रहा है, जिसकी गंभीरता से जांच की जाये तो एक बड़ा मामला खुलकर सामने आ जायेगा.

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