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सासाराम लोस सीट पर अति आत्मविश्वास भाजपा की हार का बड़ा कारण

सासाराम संसदीय सीट पर भाजपा की हार लोगों के लिए चौंकाने वाला रहा. 2014 व 2019 के चुनाव में कांग्रेस के कद्दावर नेता मीरा कुमार को इस सीट पर हार का सामना करना पड़ा.

भभुआ कार्यालय. सासाराम संसदीय सीट पर भाजपा की हार लोगों के लिए चौंकाने वाला रहा. 2014 व 2019 के चुनाव में कांग्रेस के कद्दावर नेता मीरा कुमार को इस सीट पर हार का सामना करना पड़ा. इस बार जब मीरा कुमार ने स्वास्थ्य कारणों से चुनाव लड़ने से मना कर दिया, तो मीरा कुमार के कद का कोई नेता कांग्रेस में कोई नहीं रहने के कारण यह कयास लगाया जा रहा था कि भाजपा इस सीट पर बड़े आराम से जीत दर्ज करेगी. यही नहीं मीरा कुमार के मना करने के बाद जब कांग्रेस नेतृत्व द्वारा टिकट घोषणा में विलंब किया जाने लगा, तब कयासों का बाजार और गर्म हुआ कि टिकट में विलंब से इस सीट पर कांग्रेस की स्थिति और खराब होती जा रही है. भाजपा के लिए इस सीट को जीतना और आसान होता जा रहा है. इसी बीच जब कांग्रेस ने बसपा छोड़ कांग्रेस का दामन थामने वाले मनोज राम को अपना उम्मीदवार बनाया, तो कांग्रेस और राजद ने भाजपा के खिलाफ देर से ही सही लेकिन लड़ाई की तैयारी शुरू कर दी. लेकिन, इसी बीच एक माह पहले कांग्रेस प्रत्याशी मनोज राम पर दर्ज हुई नाबालिग के साथ यौनशोषण की प्राथमिकी का मामला जब सुर्खियों में आया, तो कांग्रेस की लड़ाई और कमजोर होने लगी. भाजपा की बैठक से लेकर सड़कों पर यह चर्चा होने लगी कि सासाराम संसदीय सीट पर भाजपा की सिर्फ जीत ही नहीं होगी बल्कि पहले के चुनाव के मुकाबले इस बार चुनाव में भाजपा उम्मीदवार शिवेश राम मनोज कुमार से रिकॉर्ड मतों से विजयी होंगे. अखलासपुर बस स्टैंड के समीप भभुआ मोहनिया रोड पर स्थित एक होटल में शिवेश राम की मौजूदगी में हुए एनडीए की बैठक में शामिल नेताओं द्वारा भाषण के दौरान यह कहा गया कि सासाराम संसदीय सीट पर भाजपा उम्मीदवार की जीत तय है, बस हमें मेहनत इस बात के लिए करनी है कि हम यहां अब तक के सबसे रिकॉर्ड मतों से जीत दर्ज करेंगे. शायद भाजपा के नेताओं, कार्यकर्ताओं व उम्मीदवार का यही अति आत्मविश्वास भाजपा के हार का बड़ा कारण रहा. भाजपा के कार्यकर्ता से लेकर उम्मीदवार तक इस बात को लेकर आश्वस्त हो गये कि हालात चाहे कितना भी बदले लेकिन भाजपा की जीत इस सीट पर सुनिश्चित हैं. शाहाबाद क्षेत्र में सासाराम संसदीय सीट को भाजपा के लिए जीत की लिहाज से सबसे सेफ सीट माना जा रहा था. लेकिन, जैसे जैसे चुनाव आगे बढ़ता गया और मतदान की तिथि नजदीक आयी, हालात ऐसा बदला कि सासाराम संसदीय सीट पर रिकॉर्ड मतों से जीतने का सपना संयोजने वाली भाजपा को 19 हजार मतों से हार का सामना करना पड़ा. – बसपा का वोट कांग्रेस पर हो गया शिफ्ट भाजपा अपने समीकरण व आधार वोटों को जोड़कर इतना सुनिश्चित थी कि किसी भी हाल में सासाराम सीट पर इस लोकसभा चुनाव में पराजित नहीं किया जा सकता है. इधर, लंबे संघर्ष के बाद मनोज राम ने घोषणा के बावजूद अपने टिकट को कटते कटते बचाया और फिर जमीन पर लड़ाई शुरू की. जमीन पर धीरे धीरे हालात बदल रहे थे और भाजपा को इसकी भनक तक नहीं थी. बहुजन समाज पार्टी का आधार वोट कांग्रेस उम्मीदवार की तरफ शिफ्ट हो रहा था और भाजपा बेखबर हो जीत के अति आत्मविश्वास में चैन की बांसूरी बजा रहा था. उम्मीदवार से लेकर कार्यकर्ता तक जीत को लेकर इतने आश्वस्त थे कि उन्हें जमीन पर हो रहा बदलाव नजर ही नहीं आ रहा था. 2019 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को इस सीट पर लगभग 85 हजार वोट मिले थे. इस बाद महज 45 हजार वोट मिले हैं. 40 हजार से अधिक बहुजन समाज पार्टी का वोट कांग्रेस पर चला गया और भाजपा को 19 हजार मतों से हार का मुंह देखना पड़ा है. कुल मिलाकर देखें तो भाजपा का आधार वोट से लेकर समीकरण सब कुछ पक्ष में होने व कांग्रेस उम्मीदवार के परिस्थितियां खिलाफ होने के बावजूद जिस तरह से मनोज राम ने भाजपा के मुंह से जीत को छीना है वह भाजपा के लिए सोचने का विषय है. बसपा का आधार वोट भी अगर शिफ्ट नहीं होता तो शायद यहां भाजपा की जीत सुनिश्चित थी. – कार्यकर्ता, पदाधिकारी व उम्मीदवार समन्वय का रहा घोर अभाव सासाराम संसदीय सीट पर आया परिणाम निश्चित रूप से चौंकाने वाला रहा. यहां से लेकर पटना तक जो भी सुनता कि सासाराम सीट पर भाजपा की हार हुई है, तो उसे यह रिजल्ट चौंकाने वाला लगता है. क्योंकि, इस सीट पर सारे समीकरण भाजपा के पक्ष में थे. माना यह भी जा रहा कि अति आत्मविश्वास के साथ साथ भाजपा के कार्यकर्ता, पदाधिकारी और उम्मीदवारों में समन्वय का अभाव भी हार का बड़ा कारण रहा है. कार्यकर्ता दबी जुबान यह कह रहे हैं कि जमीन पर स्थितियां बदल रही थी, इसकी जानकारी पदाधिकारी से लेकर उम्मीदवार तक को दी जा रही थी. लेकिन, कोई भी कार्यकर्ता की बात सुनने को तैयार नहीं था, जिसके कारण अंत में कार्यकर्ता भी शिथिल होने को मजबूर हो गये. इसका नतीजा रहा कि अक्रामक रूप से चुनाव जीतने के लिए काम कर रहे राजद व कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने मिलकर बगैर मजबूत समीकरण के ही मेहनत और समन्वय के दम पर यह चुनाव अपने पक्ष में कर लिया. – सोशल मीडिया पर जिलाध्यक्ष के खिलाफ प्रकट कर रहे आक्रोश सासाराम संसदीय सीट पर भाजपा की हार के बाद जिलाध्यक्ष मनोज जायसवाल के खिलाफ सोशल मीडिया पर भाजपा के कार्यकर्ता अपना आक्रोश प्रकट कर रहे हैं. कई कार्यकर्ता मनोज जायसवाल को इस हार के लिए जिम्मेवार बता रहे हैं. कोई कार्यकर्ता यह लिख रहा है कि जिलाध्यक्ष के कारण विधानसभा व लोकसभा दोनों चुनाव में जिले में भाजपा की हार हुई है, तो कोई कार्यकर्ता मनोज जायसवाल के कार्यशैली पर सवाल खड़ा कर रहा है. स्थिति का आलम यह है कि सोशल मीडिया भाजपा के कार्यकर्ता सासाराम संसदीय सीट पर हार के बाद सार्वजनिक रूप से भिड़ते दिख रहे हैं. कुल मिलाकर देखें तो सासाराम संसदीय सीट पर भाजपा अपनी हार को पचा नहीं पा रही है.

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