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किसानों को वैज्ञानिक विधि से खेती करने के सिखाये गये तरीके

मंगलवार को प्रखंड मुख्यालय के प्रांगण में खरीफ महाअभियान महोत्सव 2024 का आयोजन किया गया. महोत्सव का उद्घाटन प्रखंड विकास पदाधिकारी संजय कुमार दाह ने दीप जलाकर किया.

मोहनिया सदर. मंगलवार को प्रखंड मुख्यालय के प्रांगण में खरीफ महाअभियान महोत्सव 2024 का आयोजन किया गया. महोत्सव का उद्घाटन प्रखंड विकास पदाधिकारी संजय कुमार दाह ने दीप जलाकर किया. इस अभियान के अंतर्गत किसानों को कृषि वैज्ञानिक अमित कुमार सिंह द्वारा संबोधित करते हुए श्री विधि धान, शंकर धान, दलहन, तिलहन व मक्का की वैज्ञानिक खेती करने के तरीकों को बताया गया. इस दौरान कहा गया कि राज्य में धान की खेती मुख्यत: खरीफ मौसम में करीब 34 लाख हेक्टेयर में की जाती है. विगत वर्षों में वर्षा कम होने से या आवश्यकतानुसार समय पर वर्षा नहीं होने पर धान की रोपनी समय से नहीं हो पायी, साथ ही कृषि मजदूरों का पलायन होने से भी किसानों को धान की रोपनी संबंधी काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. वस्तुत: किसान धान की खेती करना धीरे-धीरे कम करते जा रहे हैं, ऐसी स्थिति में वैज्ञानिकों द्वारा किसानों को जीरो टिलेज द्वारा धान की बुआई करने की सलाह दी गयी. बताया गया कि जीरो टिलेज द्वारा धान की बुआई संसाधन संरक्षण खेती की एक तकनीक है, जिसमें 20 प्रतिशत जल तथा श्रम की बचत होती है. बताया गया कि जीरो टिलेज द्वारा धान की बुआई सही विधि व सही समय पर करनी चाहिए, इस तकनीक से मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार के साथ उत्पादन लागत घटाते हुए किसान अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं. # जीरो टिलेज क्या है? जीरो टिलेज आसानी से अपनायी जा सकने वाली ऐसी तकनीक है, जिसकी सहायता से उत्पादन लागत में कमी के साथ-साथ बिना जुताई के समय से धान की बुआई व उपज में वृद्धि सुनिश्चित की जा सकती है. जीरो सीड टिल ड्रिल से उर्वरक व बीज एक साथ प्रयोग कर धान की बुआई करने की विधि को जीरो टिलेज तकनीक कहते हैं. जबकि, पारंपरिक तौर पर धान की बुआई हेतु खेत की तैयारी के लिए पांच- छह बार जुताई की जरूरत होती है, परंतु इसका कोई विशेष लाभ नहीं होता है बल्कि इसकी वजह से बुआई में बेवजह देरी हो जाती है, इससे पौधों की संख्या में कमी, कम उपज, उत्पादन लागत में वृद्धि तथा कभी-कभी बहुत ही कम लाभ प्राप्त होता है. वहीं, जीरो टिलेज तकनीक अपनाने से न केवल बुआई के समय में 15 से 20 दिन की बचत संभव है, बल्कि उत्पादकता का उच्च स्थान बरकरार रखते हुए खेती की तैयारी पर आने वाली लागत पूर्णत: बचा जाती है. जीरो टिलेज मशीन आमतौर पर प्रयोग में लायी जाने वाली सीड ड्रिल जैसी ही होती है, अंतर सिर्फ इतना है कि सामान्य सीड ड्रिल में लगने वाले चौड़े फलों की जगह इसमें पतले फाल लगे होते हैं, जो कि बिना जूते हुए खेतों में कुंड बनाते जाते हैं, जिसमें धान के बीज व उर्वरक साथ-साथ गिरते रहते हैं. जीरो टिल ड्रिल को 35 से 45 हॉर्स पावर वाले ट्रैक्टर से आसानी से चलाया जा सकता है, नौ कतार वाली जीरो टिल ड्रिल मशीन से एक घंटे में एक एकड़ खेत की बुआई हो जाती है. इसलिए किसानों को चाहिए कि वे जीरो टिलेज मशीन से धान की बुआई समय पर करें और अच्छा लाभ प्राप्त करें. इस दौरान सभी प्रखंड कृषि समन्वयक, सभी कृषि सलाहकार, प्रतिक्षित राय, विनोद पांडेय, अजय सिंह, अशोक सिंह सहित बड़ी संख्या में किसान उपस्थित रहे.

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