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कल मां कुलेश्वरी का वार्षिक शृंगार के साथ शुरू हो जायेगा कुल्हड़िया मेला

शाहाबाद क्षेत्र के अति प्राचीन शक्ति पीठों में प्रखंड क्षेत्र के कुल्हड़िया गांव स्थित मां कुलेश्वरी भगवती शक्ति पीठ भी शामिल है. यहां आस्थावान भक्तजन इस देवी धाम में पहुंचकर पूजा-अर्चना करते हैं

दुर्गावती. शाहाबाद क्षेत्र के अति प्राचीन शक्ति पीठों में प्रखंड क्षेत्र के कुल्हड़िया गांव स्थित मां कुलेश्वरी भगवती शक्ति पीठ भी शामिल है. यहां आस्थावान भक्तजन इस देवी धाम में पहुंचकर पूजा-अर्चना करते हैं. देवी भगवती की स्थापना कई शताब्दी वर्ष पूर्व होने की बात बतायी जाती है. यहां पिछले कई वर्षों से चैत नवरात्र में सप्तमी व अष्टमी तिथि से एक पखवारे तक मेले का आयोजन होता है. खास बात यह है कि क्षेत्रीय आस्थावान कुल देवी के रूप में भी माता कुलेश्वरी की पूजा-अर्चना करते हैं. मां की महिमा का बखान मार्कण्डेय महापुराण, देवी भागवती पुराण आदि धार्मिक ग्रंथों में भी किया गया है. इसके अलावा दुर्गा सप्तशती में भी कुलो रछैत कुलेश्वरी का उल्लेख मिलता है. मां के इस दरबार में पूजा पाठ तो निमित रूप से हर दिन तो होती ही रहती है, लेकिन नवरात्र अष्टमी तिथि को प्राचीन काल से चली आ रही देवी कुलेश्वरी भगवती की शृंगार पूजा परंपरागत ढंग से मनायी जाती है. इस वार्षिक उत्सव में क्षेत्र सहित विभिन्न जगहों से भी लोग पहुंचकर मां के चौखट पर मत्था टेकते हैं. खास बात यह है कि वार्षिकोत्सव पर यहां पहुंचे कुछ विशेष आस्थावानों द्वारा मां की विशेष रूप से कुल देवी के रूप में पूजा आराधना कर मंगल कामना की जाती है. मंदिर के पुजारी महंत ललन गिरी पांडे की मानें तो इस वर्ष भी अष्टमी तिथि दिन मंगलवार को मां का वार्षिकोत्सव शृंगार विधि विधान से वैदिक मंत्रोच्चार के साथ हवन-पूजन कर किया जायेगा. बताया जाता है कि मां कुलेश्वरी भगवती के वार्षिकोत्सव आगमन होने के एक दिन पूर्व यानी आज सप्तमी तिथि दिन सोमवार से ही शाहाबाद के अति प्राचीन कुल्हड़िया मेले का शुभारंभ हो जायेगा. हालांकि, मेले में विभिन्न जगहों से दुकानदार अपनी दुकानें लगाने के लिए स्थान का चयन करने पहुंचने लगे हैं. बताया जाता है कि यह प्राचीन मेला एक पखवारे तक चलता है. मेले में घरेलू सामान जैसे ओखल, मुसल, चारपाई के सामान, चौकी, बेलन आदि उपयोग की सभी वस्तुएं, मनोरंजन के लिए थियेटर कंपनी, सर्कस, चिड़ियाघर, झूला, मीना बाजार, लकड़ी से बने सामान, नाश्ता, भोजन आदि की दुकानें भी लगायी जाती हैं. मेले में बिहार, यूपी, एमपी, झारखंड उत्तरांचल बंगाल आदि राज्यों से भी श्रद्धालु व दुकानदार अपनी दुकानों को लगाते हैं. मेले में आवश्यक विधि व्यवस्था की तैयारियां जिला प्रशासन व अन्य सुविधाओं को स्थानीय स्तर पर पूरा किया जाता है. # जड़ी-बूटियों के लिये प्रसिद्घ था मां कुलेश्वरी का जंगल प्राचीन काल में उक्त धाम परिसर हरे भरे वृक्षों के बीच जंगल जैसा दृश्य हुआ करता था. यहां विभिन्न प्रकार के जड़ी बूटियों की भरमार थी. जानकार बताते हैं कि कई रोगों की जड़ी बूटियां पहले यहां आसानी से मिल जाती थी. लेकिन समय बीतने के साथ-साथ पुराने पेड़ पौधे उजड़ते चले गये और नये पेड़ भी जिस हिसाब से लगने चाहिए थे, नहीं लगाये गये. हालांकि, जो लगाये भी गये हैं वे अभी पूर्ण रूप से तैयार नहीं है. पूर्व की अपेक्षा धाम परिसर में आने वाले श्रद्धालु अब पेड़ की छांव के लिए तरसते नजर आते हैं . – देवी धाम के तालाब में स्नान से असाध्य रोगों से मिलती है मुक्ति लोगों की माने तो प्राचीन काल से ही धाम के तालाब में जो स्नान करता था, उसे कुष्ठ जैसे असाध्य रोगों से निजात मिल जाती है तथा नवरात्र के समय जो उपासक माता का नौ दिनों तक विशेष रूप से हवन पूजन करता है, उसकी मन चाही मुरादें पूरी होती हैं. मां की कृपा से महिलाओं को पुत्र रत्न की भी प्राप्ति होती है. मंदिर के पुजारी की माने तो धाम परिसर में अक्सर मुंडन संस्कार व विवाह प्रतिवर्ष होते रहते हैं तथा श्रद्धालुओं का पूजा- आराधना के निमित हर समय यहां आना-जाना लगा रहता है. – धाम पहुंचने का रास्ता कैमूर जिले के दुर्गावती प्रखंड मुख्यालय से पश्चिम दिशा में धाम की दूरी लगभग छह किलोमीटर है. दूसरी तरफ कर्मनाशा रेलवे स्टेशन से पूर्वी दिशा में करीब तीन किलोमीटर कुल्हड़िया गांव के सामने पहुंचने के बाद एनएच टू से एक किलोमीटर उत्तर दिशा में माता कुलेश्वरी का धाम है. वहीं क्षेत्र के धनेछा रेलवे स्टेशन से पश्चिम तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. साथ ही यूपी के जमनिया की तरफ से दुर्गावती-ककरैत घाट पथ होते व रामगढ़ प्रखंड से भी देवहलीया नहर मार्ग से धाम में पहुंचा जा सकता है. हालांकि, आस्थावान दुर्गम रास्ते से भी माता भगवती के आशीर्वाद से मां के दरबार में पहुंच जाते हैं.

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