नोटबंदी की याद दिला रही लॉकडाउन में बैंकों के बाहर उमड़ी लोगों की भीड़

भभुआ : सरकार द्वारा कमजोर तबके के लोगों की मदद के लिए उनके खातों में जो पैसा भेज रही है, उसे निकालने की होड़ में बैंक शाखाओं में उमड़ी भीड़ कोरोना वायरस के संक्रमण की दृष्टि से अब खतरे की घंटी बन सकती है और सरकार द्वारा घोषित लॉकडाउन के उद्देश्य को ही तार-तार कर […]

By Prabhat Khabar News Desk | April 16, 2020 4:06 AM

भभुआ : सरकार द्वारा कमजोर तबके के लोगों की मदद के लिए उनके खातों में जो पैसा भेज रही है, उसे निकालने की होड़ में बैंक शाखाओं में उमड़ी भीड़ कोरोना वायरस के संक्रमण की दृष्टि से अब खतरे की घंटी बन सकती है और सरकार द्वारा घोषित लॉकडाउन के उद्देश्य को ही तार-तार कर सकती है. क्योंकि, भीड़ खास कर महिलाएं सोशल डिस्टैंसिंग का पालन करने की जरूरत ही नहीं समझ रही है.

दरअसल, कोरोना महामारी के चलते सरकार ने अपनी घोषणा के मुताबिक समाज के कमजोर तबके के लोगों की मदद के उद्देश्य से उनके बैंक खातों में पैसा भेजना शुरू कर दिया है. पांच सौ रुपये की पहली किश्त जरूरतमंदों के खातों में पहुंचने के बाद पैसा निकालने के लिए लोगों की भीड़ जिस तरह से बैंक शाखाओं में उमड़ रही है, उसने लॉकडाउन की व्यवस्था को ही तार-तार कर दिया है और पैसे निकालने को लेकर उमड़ रही बैंकों और सीएसपी के बाहर इस भीड़ ने सोशल डिस्टैंसिंग की अवधारणा को ही चकनाचूर करके रख दिया है. तीनों दिनों बाद सोमवार को खुले बैंकों में जबर्दस्त भीड़ देखने को मिली.

इसको नियंत्रित व सोशल डिस्टैंसिंग का पालन के लिए कोई विशेष पहल नहीं दिख रहा था. हालांकि, धन निकासी के लिए पहुंचने वाले लोगों को बैंक परिसर के अंदर प्रवेश देने में तो बैंक सावधानी बरत रही हैं और लोगों को बाहर खड़े रख बैंक आये महिला व पुरुषों का काम किया जा रहा है. लेकिन, इस कवायद में बैंक परिसर के बाहर लंबी भीड़ लग रही हैं और इसमें सामाजिक दूरी का कोई ध्यान नहीं रखा जा रहा है और सबसे बड़ी बात कि बैंकों के बाहर भीड़ लगने की यह समस्या काफी दिन से है. लेकिन, कोई भी इस भीड़ को व्यवस्थित करने का प्रयास नहीं कर रहा है.आठ बजे से ही लग गयी भीड़शनिवार व रविवार को बैंकों के बंद रहने के चलते सोमवार की सुबह आठ बजे ही एसबीआइ, पीएनबी, इंडियन बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, इलाहाबाद बैंक, दक्षिण बिहार ग्रामीण बैंक के बाहर अधिक संख्या में महिला व पुरुषों की लाइन लग गयी और बैंक के खुलते ही लोग सोशल डिस्टैंसिंग का पालन करना छोड़ एक-दूसरे से पहले काम कराने के होड़ लगाने लगे.

दोपहर 12 बजे एसबीआइ के अखलासपुर बस स्टैंड स्थित सीएसपी सेंटर में काफी संख्या में महिलाएं व पुरुष खाते में आये राशि को निकालने पहुंचे हुए थे. इसके चलते बैंक के बाहर दर्जनों की भीड़ रही. हालांकि, इस दौरान स्टैंड में लॉकडाउन का पालन कराने के लिए खड़े पुलिस जवानों ने भीड़ को सोशल डिस्टेंस मेनटेन करने को कहा. लेकिन, महिलाएं पैसे के लिए झुंड में खड़ी रही. कमोवेश यही स्थित पीएनबी मुख्य ब्रांच के बाहर रही. यहां सोशल डिस्टेंस के पालन के लिये पैसे निकालने आये लोगों से एक मीटर की दूरी बना कर खड़े रहने को कहा जाता रहा. लेकिन, भीड़ की शक्ल में खड़े लोग इसको दरकिनार कर पैसे के लिए एक दूसरे पर चढ़े जा रहे थे.इनसेट भीड़ को नियंत्रित करने को बनानी होगी रणनीतिभभुआ सदर. इन दिनों बैंकों में लग रही भीड़ को नियंत्रित करने के लिए रणनीति बनानी होगी.

दरअसल, केंद्र व राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत एसबीआइ, पीएनबी, बैंक ऑफ इंडिया समेत सभी बैंकों में विधवा, वृद्धा, दिव्यांग पेंशन, पंजीकृत, अपंजीकृत और असंगठित क्षेत्र के दिहाड़ी कामगारों के खातों में एक-एक हजार व पांच सौ रुपये की धनराशि हस्तांतरित कराये जाने के बाद से लोगों की बैंकों में जबर्दस्त भीड़ बढ़ी है. इस दौरान खातों में पैसे पहुंचे या नहीं इसे देखने और पैसे निकालने के लिए लोगों की भीड़ बैंकों बाहर लग रही है. हालांकि, यहां तैनात पुलिसकर्मी लोगों को लाइन में लगाने के लिए जूझते रहते हैं. भभुआ शहर में एसबीआइ की शाखा और पीएनबी, दक्षिण बिहार ग्रामीण बैंक व बैंक ऑफ बड़ौदा आदि पर सबसे ज्यादा भीड़ उमड़ रही है, जहां कतार में खड़ी महिलाएं लॉकडाउन का पालन नहीं कर रही है और पैसा निकालने व अपटूडेट कराने में एक दूसरे पर चढ़ने लग रही हैं. इधर, सोमवार को भी सुबह से बैंक शाखाओं में लोग पहुंचने शुरू हो गये. इनमें महिलाओं की संख्या अधिक थी. बैंकों में लगी लाइनों में अधिकतर लोग खातों में आये 500 रुपये की धनराशि निकालने आये थे. इन खाताधारकों की भीड़ लॉकडाउन के शारीरिक दूरी के नियम पर भारी पड़ी. शहर या फिर देहात बैंकों में जबर्दस्त भीड़ का आलम रहा. हालांकि पुलिस कतार में लगे लोगों में परस्पर दूरी बनाने में जुटी रही. लेकिन, पुलिस प्रशासन के बार-बार समझाने के बावजूद लाइनों में लगी महिलाएं सुनने को तैयार नहीं थीं.

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