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टमाटर व आलू की कीमतों ने बढ़ायी टेंशन

ले में खाद्य पदार्थों के साथ-साथ अब सब्जियों के दाम भी एक बार फिर से बढ़ने लगे हैं. उदाहरण के तौर पर बाजार में 10 दिन पहले जहां टमाटर 20 रुपये किलो बिक रहा था, वहीं टमाटर अब 40 से 50 रुपये किलो बिकने लगा है.

भभुआ सदर. जिले में खाद्य पदार्थों के साथ-साथ अब सब्जियों के दाम भी एक बार फिर से बढ़ने लगे हैं. उदाहरण के तौर पर बाजार में 10 दिन पहले जहां टमाटर 20 रुपये किलो बिक रहा था, वहीं टमाटर अब 40 से 50 रुपये किलो बिकने लगा है. यही हाल गरीबों की सब्जी कहे जानेवाले आलू की होने लगी है. जिस लाल आलू की कीमत 10 दिन पहले 100 रुपये प्रति पांच किलो और सफेद आलू 90 रुपये प्रति पांच किलो था, अब वही आलू क्रमश: 150 और 160 रुपये प्रति पांच किलो है. इसी प्रकार से हरी सब्जियां जैसे परवल, बैंगन, भिंडी, करैला आदि भी जो कुछ दिन पहले बाजार में सस्ती बिक रही थी, वह भी अब महंगी होने लगी है. परवल तो 60 रुपये किलो से छलांग लगाते हुए 100 से 120 रुपये प्रतिकिलो हो गया है. टमाटर व आलू की कीमतों ने टेंशन बढ़ायी है. इधर, सब्जियों के महंगे होने से इसका असर अब लोगों के जेब पर पड़ रहा है. लोगों का कहना था कि शासन-प्रशासन के ध्यान नहीं देने से बाजार में सब्जी व्यवसायी हो या किराना व्यवसायी सबकी अपनी मनमानी चल रही है. दरअसल, कोरोना के बाद से जिस प्रकार लोगों की आय घटी है, उसको देखते हुए बाजार व्यवस्था के तहत वस्तुओं की कीमतों का निर्धारण सबसे जरूरी बात हो गयी है. लेकिन, शहर सहित जिले में अमूमन ऐसा देखा जाता है कि बाजार व्यवस्था पर प्रशासनिक नियंत्रण नहीं होने के कारण वस्तुओं की कीमतों में आये दिन अंतर व मनमानापन दिखता है. अब इन वजहों के चलते नतीजा यह हो रहा कि उपभोक्ता हर दिन किसी न किसी सामान के कीमतों में कर दी जा रही बढ़ोतरी से ठगे और लुटे जा रहे हैं और शोषण के शिकार हो रहे हैं. ऐसी ही स्थिति फिलहाल शहर के किराना व सब्जी बाजार की है.यहां,अपने शर्त और तय कीमत पर ही किराना के सामान और सब्जियां दुकानदार बेचते है. अब इससे कोई मतलब नहीं है कि महंगी बेची जा रही इन वस्तुओं का भाव कितना तय होना चाहिए. = ग्राहकों की आनाकानी नहीं चलती जहां तक शहरों की बात है तो भभुआ शहर भी उन्हीं शहरों में शुमार है, जहां वस्तुओं की कीमतों पर कोई लगाम नहीं हैं. यहां जिस दुकानदार को जो मन में आता है कीमत बताता है और उसी कीमत पर सामान बेचता है. ऐसा लगता है जैसे बाजार में वही कीमत तय करते हैं और उनकी ही मनमानी चलती है, अब सब्जी का ही हाल देख लीजिये. शहर में प्रशासनिक सुस्ती से इसकी कोई कीमत निर्धारित नहीं है. सब्जी विक्रेता के मुंह से जो कीमत निकल जाये वही सही है. उस पर ग्राहकों की आनाकानी नहीं चलती है. शहर के एकता चौक, सब्जी मंडी, जेपी चौक, ब्लॉक मोड़ सहित मोहनिया के स्टूवरगंज, कुदरा के लालापुर, चैनपुर के हाटा आदि जगहों पर सब्जी की मंडी सजती है, लेकिन इन सभी जगहों पर भी सब्जियों का भाव एक सा नहीं है. = बाजार में कीमतें तय होना जरूरी शहर के रहनेवाले रंजन जायसवाल, हरिशंकर सिंह, अनूप पटेल आदि का कहना था कि कोरोना काल के बाद से रोजी रोजगार पर असर होने के चलते वैसे ही लोगों को दोहरी मार पड़ी है. ऊपर से पिछले कुछ महीने से लगातार खाद्य वस्तुओं के दामों में हो रही बढ़ोतरी भी अब आम आदमी की कमर तोड़ने लगी है और इसका सीधा असर आम जनता की जेब पर पड़ रहा है. शहर के किराना दुकानदार संजय अग्रवाल ने बताया कि बाहर से ही सामान बढ़े हुए दामों में आ रहा है. कई खाद्य वस्तुओं के प्रिंट रेट में भी 10 से 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो रही है.

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