लोक आस्था का महापर्व छठ शुरू हो चुका है. इस पर्व में समाज के सभी तबके के लोग पूरी आस्था और विश्वास के साथ सूर्य भगवान की पूजा करते हैं, छठ में जितनी अनेकता में एकता दिखती है उतनी शायद ही किसी और पूजा में ही दिखती है. छठ पर्व की आस्था ऐसी है की ऊंच-नीच, अमीरी-गरीबी, जाति -धर्म और लिंग तक की बाध्यता मिट जाती है. शायद ही कहीं किसी दूसरे पर्व में ऐसे अनूठे संगम देखने को मिलते होंगे.
छठ महापर्व के दौरान पूरा परिवार एक साथ जुट जाता है, दोस्त, रिश्तेदार, पड़ोसी सभी मिलकर इस पर्व में किसी न किसी तरह अपना योगदान देना चाहते हैं. ऐसी ही एक कहानी है बसवरिया की कलावती देवी की वो अपनी वृद्धावस्था में भी छठ व्रतियों की सेवा करती हैं. उनकी मदद से छठ पूजा के दौरान व्रतियों को छठ माता की पूजा करने में आसानी होती है .
कलावती देवी की अब उम्र हो चली है, इसी कारण से उनका शरीर भी कमजोर हैं. लेकिन छठ पूजा में उनकी आस्था उन्हें छठ व्रतियों की सेवा करने की ताकत देती है. कलावती इस उम्र में भी छठ पर्व के लिए मिट्टी का चूल्हा बनाती हैं. उनके बनाए चूल्हे से सैकड़ों छठ व्रतियाओं को लाभ होता है. वैसे तो कलावती देवी स्वयं भी छठ किया करती थी. लेकिन वृद्धावस्था की वजह से अब वो छठ पूजा नहीं कर पाती हैं.
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कलावती देवी ने छठ पूजा करना भले ही छोर दिया पर उन्होंने छठ माता की सेवा के लिए एक नया तरीका ढूंढ निकाला. कलावती देवी अपने आस पास के इलाके में व्रतियों को छठ पूजा के लिए मुफ़्त में मिट्टी का चूल्हा बना कर देती हैं. उनकी इस सेवा से व्रति काफी खुश होते हैं क्योंकि उन्हें पूजा के लिए शुद्ध और पवित्र चूल्हा उपलब्ध हो जाता है. वो भी मुफ़्त.