Bihar: भागलपुर में कहीं सोने से लदी रहती हैं मां काली, तो कहीं खुले आसमान के नीचे ही पिंड पूजन, जानें वजह

Bihar Kali Puja: भागलपुर की काली पूजा बेहद खास होती है. यहां कई मंदिर ऐसे हैं जहां सौ साल से अधिक समय से पूजा होती आ रही है. कुछ मंदिर विशेष हैं. ऐसी ही कहानी है भागलपुर के सोनापट्टी और इशाकचक की काली मां की. जानें क्यों है खास..

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 25, 2022 10:21 AM

Bihar Kali Puja: बिहार के भागलपुर में काली पूजा का आयोजन बेहद अलग और भव्य तरीके से होता है. मां काली की मूर्ती स्थापना से लेकर प्रतिमा विसर्जन तक नियमों के हिसाब से ही होते हैं. सौ साल से अधिक समय से चली आ रही परंपरा के तहत ही यहां काली पूजा का आयोजन होता है. काली पूजा के दौरान खास तौर पर पुलिस प्रशासन के सामने बड़ी चुनौती होती है.

इस बार 100 से अधिक काली प्रतिमाओं का पूजन

भागलपुर में इस बार 100 से अधिक काली प्रतिमाओं का पूजन किया जा रहा है. यहां की काली पूजा बेहद खास होती है. कई जगहों पर लोग आज भी अंजान ही हैं कि पूजा कितने साल पहले शुरू की गयी होगी. परबत्ती बुढ़िया काली, मंदरोजा स्थित हड़बड़िया काली, उर्दु बाजार की मसानी काली, इशाकचक की बुढ़िया काली, जोगसर की बम काली, मुंदीचक की मतवाली काली समेत कई जगहों पर पूजन खास श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र हर साल होता है.

काली पूजा भागलपुर में बेहद खास

परबत्ती स्थित बुढ़िया काली भागलपुर में बेहद खास हैं. मां काली की भव्य प्रतिमा का दर्शन करने बड़ी तादाद में यहां श्रद्धालु उमड़ते हैं. वहीं भागलपुर जो सिल्क सिटी के नाम से जाना जाता है वहां के दो पूजन स्थल की चर्चा यहां करते हैं. एक सोनापट्टी की मां काली और दूसरी इशाकचक की बुढ़िया काली. दरअसल स्वर्ण व्यवसाइयों के दुकानों के ही बीच स्थित मां काली मंदिर में पूजा के दौरान सोना चढ़ाने की पुरानी परंपरा है. काली पूजा के दिन यहां मां काली सोने से लदी रहती हैं. वहीं इशाकचक की बुढ़िया काली खुले आसमान के नीचे ही रहती हैं.

सोनापट्टी में सोने के आभूषण से लदी मां काली

सोनापट्टी बीच बाजार का क्षेत्र कहलाता है जहां स्वर्ण व्यवसाइयों की दुकानें हैं. ये दुकानों मां काली की मंदिर के इर्द-गिर्द हैं. यहां मां काली की पूजा बेहद खास होती है. मां काली को यहां लोग मन्नत पूरी होने के बाद सोने के आभूषण चढ़ाते हैं. काली पूजा के दिन माता का श्रृंगार सोने के आभूषणों से होता है. मां सोने के गहनों से लदी रहती हैं.

Also Read: Bihar Weather Report: बिहार में तूफान सितरंग का दिखा असर, छठ पर्व तक जानें कैसा रहेगा मौसम
इशाकचक की बुढ़िया काली खुले में ही विराजमान

इशाकचक की बुढ़िया काली खुले में ही विराजी हुई हैं. करीब सवा सौ साल से यहां पूजा-अर्चना हो रही है. यहां के स्थानीय लोग बताते हैं कि इस मंदिर का जीर्णोद्धार 1990 से पहले हुआ था. मंदिर के बगल में रेललाइन बनने का काम जब शुरू हुआ तो मां काली का पिंड उस जगह स्थापित किया गया जहां आज मां विराजमान हैं. लेकिन कई बार लोगों ने छत बनाने का निर्णय लिया जरुर पर इसमें कामयाबी नहीं मिल सकी. मां खुले में ही विराजी हुई हैं.

Posted By: Thakur Shaktilochan

Next Article

Exit mobile version