kali puja 2022: शुम्भ ने किया था गौरी के अपहरण का प्रयास, जानें काली को क्यों फैलाना पड़ा था अपना मुंह
दुर्गासप्तशती के उत्तर चरित में शुम्भ एवं निशुम्भ दैत्यों के वध का प्रसंग है. शाक्त संप्रदाय के जानकार पंडित भवनाथ झा कहते है कि वो स्पष्ट रूप से अकेली कन्या के अपहरण करने का मामला था. शुम्भ ने हिमालय पर अकेली घूमती हुई पार्वती को अपने अधिकार में कर लेने का मन कर लिया था.
पटना. सनातन धर्म की शाक्त परंपरा में पुरुषों के समान ही महिलाओं को भी पूजन का अधिकार मिला हुआ है. इस संप्रदाय की मान्यता रही है कि कन्या अबला नहीं होती, वह साक्षात् पार्वती है. दुर्गासप्तशती के उत्तर चरित में शुम्भ एवं निशुम्भ दैत्यों के वध का प्रसंग है. शाक्त संप्रदाय के जानकार पंडित भवनाथ झा कहते है कि वो स्पष्ट रूप से अकेली कन्या के अपहरण करने का मामला था. उनके शरीर के कोश से पहले कौशिकी का अवतार हुआ, फिर पार्वती काली बनकर अपने एक विशेष स्वरूप में बाहर निकल गयीं. अतः पार्वती का शरीर पुनः गौर वर्ण का हो गया. इसी गौरवर्ण के स्वरूप में वे गौरी कहलाने लगीं.
राजा शुम्भ की प्रशंसा कर गौरी को ले जाने का हुआ था प्रयास
दुर्गासप्तशती के अनुसार शुम्भ ने हिमालय पर अकेली घूमती हुई पार्वती को अपने अधिकार में कर लेने का मन कर लिया था. शुम्भ ने कन्या समझकर गौरी के अपहरण की योजना बनायी. शुम्भ ने पहले दूत को भेजा. उस दूत ने राजा शुम्भ की प्रशंसा कर गौरी को ले जाने का प्रयास किया. गौरी ने हँसते हँसते युद्ध करने का प्रस्ताव दिया. दूत युद्ध हार गया. तब शुम्भ ने धूम्रलोचन को भेजा. धूम्रलोचन तो देवी के हुँकार से ही मर गया. तब आये उससे भी बलशाली चण्ड और मुण्ड. उन्हें अपने बल पर बड़ा घमण्ड था. उसके पास बहुत बड़ी सेना भी थी. सेना के देखकर देवी ने भोंहे टेढीं की तो काली साकार रूप में सामने आयीं. काली का ही एक नाम चामुण्डा है.
ऐसे पड़ा था काली का नाम चामुण्डा
चण्ड-मुण्ड के साथ युद्ध करने के लिए काली की उत्पत्ति हुई, तो उनके गले में नरमुण्ड की माला लटक रही थी. हाथों में मुद्गर शोभित थे. हाथी का चर्म उनके शरीर पर वस्त्र के रूप में शोभित हो रहा था. उनके शरीर के मांस सूखे हुए थे, यानी लटक रहे थे, शरीर पर कोई मांसल सौन्दर्य नहीं था. वह काली अत्यन्त विकराल रूप में थीं. जब चण्ड ने देखा कि उनकी सेना खत्म हो चुकी है, तब वह काली की ओर मारने के लिए दौड़ा. काली ने अपना मुख खोला तो चण्ड के द्वारा फेंके गये सारे शस्त्र इस प्रकार दिखाई पड़े जैसे काले मेघ के भीतर सूर्य की किरणें सिमटती हुई दिखाई देती है. काली ने चण्ड एवं मुण्ड का संहार किया, तो देवी पार्वती ने कहा कि आपने चण्ड-मुण्ड का विनाश किया है. अतः आज से आपका ही एक नाम चामुण्डा होगा.
रक्तबीज के असंख्य शरीर के साथ रक्त का पान कर गयीं काली
चण्ड-मुण्ड के विनाश के बाद शुम्भ ने रक्तबीज को भेजा. उसकी विशेषता थी कि इसके शरीर से लहू की जितनी बूंद पृथ्वी पर गिरती उतने की रक्तबीज निकल आते थे. देवी के शस्त्रों से मारा जाता था एक रक्तबीज तो हजारों पैदा हो जाते थे. इस प्रकार तीनों लोक रक्तबीज से भर गया. तब शिव की शक्ति पार्वती ने काली से कहा कि अपना मुख आप फैला लें और रक्तबीज के शरीर से गिरे रक्त को पी जावें ताकि उसकी बूँद पृथ्वी पर न गिर पाये. काली ने अपना मुख फैला दिया और रक्तबीज के असंख्य शरीर के साथ रक्त का पान कर गयीं। इस प्रकार धीरे धीरे रक्तबीज का नाश हुआ.