कटिहार : जिले के प्रारंभिक विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य व पोषण को लेकर कई तरह की पहल की जा रही है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए मध्यान भोजन योजना शुरू की गयी. इस जिले में मध्याह्न भोजन योजना का क्रियान्वयन पूरी तरह भगवान भरोसे है. मध्याह्न भोजन योजना निदेशालय द्वारा जारी ताजा रिपोर्ट पर भरोसा करें तो विद्यालय में अध्ययनरत अधिकांश बच्चे मध्याह्न भोजन योजना के लाभ से वंचित है.
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महीने में सात दिन विद्यालय के लाखों बच्चों को नहीं मिलता मध्याह्न भोजन
कटिहार : जिले के प्रारंभिक विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य व पोषण को लेकर कई तरह की पहल की जा रही है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए मध्यान भोजन योजना शुरू की गयी. इस जिले में मध्याह्न भोजन योजना का क्रियान्वयन पूरी तरह भगवान भरोसे है. […]
अभी हाल ही में मध्यान भोजन योजना निदेशालय की ओर से बिहार के सभी जिले में एमडीएम के परफारमेंस रिपोर्ट जारी की गयी है. यह रिपोर्ट काफी चिंताजनक है. हालांकि रिपोर्ट के आधार पर एमडीएम के निदेशक ने सभी डीपीओ को दिशानिर्देश भी भी दिया है. अगर इस रिपोर्ट पर यकीन करें तो कटिहार जिले में 641720 बच्चे विद्यालयों में नामांकित है. इसके विरुद्ध औसतन प्रतिदिन 169177 बच्चों को मध्याह्न भोजन योजना का लाभ मिल रहा है. जिले के 2011 विद्यालयों में से 1979 विद्यालयों में एमडीएम का संचालन किया जा रहा है.
निदेशालय द्वारा जारी इस परफॉर्मेंस रिपोर्ट में एमडीएम के तहत बच्चों को दी जाने वाली भोजन की गुणवत्ता एवं मेनू को लेकर कोई जिक्र नहीं है. जबकि ग्राउंड रियलिटी यह भी है कि जिन बच्चों को एमडीएम के तहत दोपहर का भोजन दिया जा रहा है. उसमें गुणवत्ता का भी घोर अभाव है. साथ ही मेनू के अनुरूप बच्चों को भोजन नहीं मिलता है.
भगवान भरोसे चल रहा है एमडीएम
एमडीएम निदेशालय की ताजा रिपोर्ट से यह साफ हो गया है कि स्थानीय प्रशासन एमडीएम के संचालन में कितना गंभीर है. हालांकि एमडीएम के मामले में ग्राउंड रियलिटी और भी बदतर है. अगर यह कहा जाए कि विद्यालय में एमडीएम का संचालन भगवान भरोसे हो रहा है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. दरअसल एमडीएम संचालन को लेकर जिस तरह की मॉनिटरिंग व्यवस्था की गयी है. वह भी प्रभावी तरीके से काम नहीं करती है. यह अलग बात है कि सरकारी अभिलेखों में उसे प्रभावी मॉनीटरिंग जरूर दिखाया जाता है.
चावल में भी घालमेल
स्कूल में एमडीएम के तहत चावल आवंटन को लेकर भी कई तरह की बातें प्रचलित हैं. आमतौर पर सुना जाता है कि पैकेट में चावल का जितना वजन प्रदर्शित रहता है, उससे काफी कम चावल उसमें रहता है. विद्यालय प्रधान के ऊपर भी दबाव रहता है कि जितना चावल है, उसे रिसीव कर लें. चावल की क्वालिटी को लेकर भी आम लोगों में शिकायतें रहती हैं. जिले के किसी विद्यालय के पोषक क्षेत्र में जाने पर स्थानीय लोग एमडीएम को लेकर तरह-तरह की कहानी सुनाएंगे. लोग यह भी कहते हैं कि शिकायत करने का भी कोई असर नहीं दिखता है.
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