कटिहार : जिले के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में आवारा कुत्तों की भरमार है. जिले में सिर्फ मार्च 2019 में 517 लोग आवारा कुत्तों के शिकार बने हैं. यानी मार्च की घटना को देखें, तो औसतन हर दिन 16 से अधिक लोग कुत्ते के शिकार बने हैं. हालांकि कुतों के शिकार हुए लोगों के मौत की सूचना अबतक नहीं है.
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कुत्तों का आतंक: हर दिन औसतन 16 लोग बन रहे शिकार
कटिहार : जिले के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में आवारा कुत्तों की भरमार है. जिले में सिर्फ मार्च 2019 में 517 लोग आवारा कुत्तों के शिकार बने हैं. यानी मार्च की घटना को देखें, तो औसतन हर दिन 16 से अधिक लोग कुत्ते के शिकार बने हैं. हालांकि कुतों के शिकार हुए लोगों के मौत […]
सिविल सर्जन की ओर से जारी प्रगति प्रतिवेदन के अनुसार वित्तीय वर्ष 2018-19 में 5283 लोग कुत्ते के शिकार बने हैं. यह सिर्फ सरकारी आंकड़ा है, जबकि ग्रामीण स्तर पर कुत्ता काटने के बाद लोग स्थानीय तांत्रिक से झाड़ फूंक भी करवाते हैं. इसलिए यह आंकड़ा बढ़ भी सकता है. जिले के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में झुंड के झुंड आवारा कुत्ते नजर आते हैं. प्रभात खबर ने स्थानीय स्वास्थ्य विभाग की रिर्पोट पर पड़ताल की है.
साथ ही आवारा कुत्तों पर शासन प्रशासन की अनदेखी पर भी सवाल उठाया है. जिस तरह आवारा कुत्ते लोगों को अपना शिकार बनाते है. वह चिंता का विषय है. साथ ही कुत्ते के काटने के बाद लोग उपचार कराते हैं. कुत्ते के शिकार लोगों को सरकारी अस्पतालों में रेबीज की सूई दी जाती है. यह सूई काफी महंगी होती है. अगर आवारा कुत्तों पर नियंत्रण हो जाय तो सरकारी राजस्व का चूना लगने से बचाया जा सकता है.
मार्च में ही 517 लोगों को काटा: स्थानीय स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट पर भरोसा करें तो सिर्फ मार्च 2019 में 517 लोगों को कुत्ताें ने अपना शिकार बनाया. जबकि इसी वर्ष अप्रैल व मई में क्रमशः 483 व 318 लोगों को कुत्ताें ने काटा है. अगर वर्ष 2018-19 का आंकड़ा देखें, तो इस एक साल में 5283 लोग आवारा कुत्तों के शिकार बने.
हालांकि कुत्तों के शिकार वैसे लोग भी हुए हैं, जो स्वयं कुत्ते को पालते हैं. अधिकांश लोग आवारा कुत्तों के ही शिकार बने हैं. इन आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि औसतन हर दिन 14 से अधिक लोग कुत्ते के शिकार बने हैं. सिविल सर्जन डॉ मुर्तजा अली की ओर से जारी प्रगति प्रतिवेदन में इन आंकड़ों का जिक्र है.
प्रशासन बना रहता है मूकदर्शक: आवारा कुत्तों के आतंक के प्रति स्थानीय प्रशासन मूकदर्शक बना रहता है. हालांकि जिले के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में आवारा कुत्तों का आतंक कोई बड़ा मुद्दा नहीं है, लेकिन जिस तरह शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में कुत्तों का आतंक बढ़ रहा है. यह चिंता का विषय है. आपको शहर के अधिकांश गली-मोहल्लों व ग्रामीण क्षेत्रों में झुंड के झुंड कुत्ते गुर्राते-झपटते मिल जायेंगे. यद्यपि कुत्तों के शौकीन लोग भी अपने पालतू कुत्ते का शिकार बनते रहे हैं.
भले ही आवारा कुत्ते समाज के लिए कोई बड़ा मुद्दा नहीं है. लेकिन कुत्ता काटने के बाद जिस तरह सरकार व निजी अस्पतालों में लोगों की भीड़ बढ़ रही है. इससे गंभीर समस्या उत्पन्न हो सकती है.
सरकारी अस्पतालों में कम पड़ रही रैबिज की सूई
कुत्ता काटने के बाद लोग सरकारी अस्पताल में रैबिज की सूई लगाने पहुंचते हैं. कुत्तों का आतंक अब इस कदर बढ़ने लगा है कि अस्पतालों में रैबिज की सूई कम पड़ने लगी है. वर्ष 2018-19 में करीब कुछ महीने तक रैबिज की सूई सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध नहीं थी.
इस दौरान कुत्तों के शिकार लोग निजी अस्पतालों अथवा झाड़ फूंक से अपना उपचार करवाते रहे. दिन प्रतिदिन आवारा कुत्तों के बढ़ते आतंक ने रैबिज की आपूर्ति बढ़ाने को मजबूर कर दिया है. आवारा कुत्तों पर नियंत्रण नहीं होने की वजह से रैबिज सूई के रूप में लाखों-करोड़ों के राजस्व का चूना हर साल लगता है.
जानकारों की मानें तो रैबिज सूई काफी महंगी होती है. सरकार द्वारा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, अनुमंडल अस्पताल एवं सदर अस्पताल में रैबिज की सूई मुफ्त उपलब्ध करायी जाती है. अगर आवारा कुत्तों पर नियंत्रण किया जाता है, तो बड़ी राशि खर्च होने से बच सकती है.
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