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राष्ट्रीय औसत से दो किलोग्राम कम मछली खाते हैं शहरवासी

कटिहार : केंद्र एवं राज्य सरकार भले ही कृषि आधारित उद्योग या कारोबार को बढ़ावा देने के लिये तरह- तरह के कार्यक्रम चला रही हो या घोषणा किया जा किया जा रहा हो. पर उसका परिणाम सामने नहीं आ रहा है. यूं तो सरकार की योजना के तहत जिले में कई गतिविधियां चलायी जाती है. […]

कटिहार : केंद्र एवं राज्य सरकार भले ही कृषि आधारित उद्योग या कारोबार को बढ़ावा देने के लिये तरह- तरह के कार्यक्रम चला रही हो या घोषणा किया जा किया जा रहा हो. पर उसका परिणाम सामने नहीं आ रहा है. यूं तो सरकार की योजना के तहत जिले में कई गतिविधियां चलायी जाती है. लेकिन अब तक उसका लाभ नहीं दिख रहा है. प्रशासनिक उदासीनता की वजह से कई महत्वकांक्षी योजना भी जमीन पर नहीं उतर पा रहा है.

पशुपालन एवं मत्स्य पालन के मामले में भी कटिहार निचले पायदान पर है. खासकर मछली उत्पादन के मामले में कटिहार अब तक लक्ष्य हासिल नहीं कर सका है. यह तो सर्वविदित है कि कई देसी मछलियां अब विलुप्ति के कगार पर है. उन्हें बचाने के लिए अब तक कोई ठोस पहल नहीं हो सकी है. दूसरी तरफ कटिहार जिले को जितनी मछली की जरूरत है.
उसकी भरपायी भी यह जिला नहीं कर पा रहा है. फलस्वरूप कटिहार जिलावासियों को मछली के लिये आंध्रप्रदेश या दूसरे बड़े राज्यों के मछली पर निर्भर रहना पड़ रहा है. सरकारी सूत्रों के अनुसार मछली के कम उत्पादन की वजह से कटिहार के लोग राष्ट्रीय औसत से करीब 2.5 किलोग्राम कम मछली खाते है. राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति 11.2 किलोग्राम मछली का सेवन करते है.
जबकि कटिहार जिला में प्रत्येक व्यक्ति प्रतिवर्ष औसतन करीब नौ किलोग्राम मछली का सेवन करते है. ऐसा नहीं है कि मछली उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया है. सरकार ने मछली उत्पादन को बढ़ावा देने के उद्देश्य कई योजना शुरू की है.
पर योजनाओं के क्रियान्वयन में उदासीनता की वजह से इसका लाभ कटिहार के लोगों को नहीं मिल रहा है. अब तो ऐसी स्थिति बन रही है कि मछली पालक अपने इस व्यवसाय से तौबा करने के मूड में है. हर साल जिस तरह मछली पालन में नुकसान उठाना पड़ रहा है. इससे मछली पालक हताश चुके है.
लक्ष्य के अनुरूप नहीं हो रहा है मछली उत्पादन : कटिहार जिले के लोगों को के लिए हर साल करीब 27000 मीट्रिक टन मछली की जरुरत पड़ती है. पर विभागीय सूत्रों की माने तो कटिहार जिला में करीब 23000 मेट्रिक टन मछली का उत्पादन होता है. हलाकि विभागीय स्तर पर पिछले कई वर्षों से कोशिश हो रही है कि लक्ष्य के अनुरूप मछली का उत्पादन हो. पर अब तक यह नहीं हो सका है. विभागीय सूत्रों की माने तो कई तरह की कठिनाई है. जिससे मछली उत्पादन लक्ष्य के अनुरूप नहीं हो रहा है.
खासकर माइक्रो फाइनेंस की कमी की वजह से मछली पालक बंगाल पर निर्भर रहता है. दूसरी तरफ लोगों को इन दिनों मखाना उत्पादन के प्रति अधिक है. कई सरकारी तालाब में अब मखाना की खेती होने लगी है. मनरेगा से तालाब बनाने की योजना भी रफ्तार नहीं पकड़ सका.
आंध्रा के मछली का करते हैं उपयोग : मछली का सेवन करने के लिए कटिहार जिले के लोग आंध्र प्रदेश की मछली पर निर्भर है. बड़ी संख्या में लोग आंध्र प्रदेश से पहुंचने वाली बर्फ की मछली का उपयोग खाने में करते हैं. जबकि कटिहार जिले में मछली उत्पादन की भरपूर संभावनाएं हैं.
यद्यपि विभागीय सूत्रों के अनुसार माइक्रो फाइनेंस में कमी की वजह से यहां के मछली पालक पश्चिम बंगाल में मछली बेच देते हैं. सूत्रों के अनुसार पश्चिम बंगाल से कर्ज पर यहां के मछली पालक सीड लाकर अपने तालाब में छोड़ते है. जब मछली तैयार होता है तो उसे पश्चिम बंगाल के मार्केट में बेच देते है. यही वजह है कि कटिहार जिले के लोगों को आंध्र प्रदेश की मछली पर निर्भर रहना पड़ता है.
जिले के डंडखोरा प्रखंड अंतर्गत सौरिया में एकमात्र हैचरी मत्स्य विभाग के द्वारा संचालित है. विभाग ने लोक निजी भागीदारी के तहत स्थानीय निवासी चंदन मंडल को दिया है. हैचरी में मछली का सीड तैयार किया जाता है. पर कई तरह की स्थानीय समस्या होने की वजह से इसका लाभ मछली पालकों को नहीं मिल पाता है. फलस्वरुप मछली पालक अभी बंगाल के सीड पर निर्भर है.
विलुप्त होने के कगार पर देसी मछली
जिले के विभिन्न तालाब एवं नदियों से अब देसी मछली विलुप्त होने लगी है. देसी मछली को बचाने के लिए सरकार की ओर से कोई ठोस कॉल नहीं हो रही है. फलस्वरुप व्यवसायिक दृष्टिकोण से अब लोग हाईब्रिड या अन्य दूसरे तरह की मछली का उत्पादन कर रहे है. देसी मछली में खासकर कबइ, टेंगरा, मांगुर, सौरी, पोप्ता, सिंघी, पोठिया, झींगा आदि देसी प्रजाति की कई मछलियां विलुप्त हो रही है.
हताशा में हैं मछली पालक
दूसरी तरफ मछली पालक हताशा में है. स्थिति यह बन गयी है कि मछली उत्पादन के कारोबार को छोड़कर दूसरा कारोबार अपनाने की तैयारी भी करने लगे है. जिस तालाब व नदी में मछली पालन होता था. अब ऐसे तालाब एवं नदियों में लोग मखाना की खेती करने लगे है.
कई मछली पालकों ने बताया कि हर साल बैसाख महीने में नदी जगाने के नाम पर सैकड़ों की तादाद में लोग आकर मछली लूट लेते है. प्रशासन को सूचना देने पर भी कोई कार्रवाई नहीं होती है. उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ वर्षों से विभिन्न प्रखंडों में नदी जगाने के नाम पर मछली लूट ली जाती है. प्रभात खबर ने इस मामले में कई दिनों तक लगातार खबर प्रकाशित करती रही. पर प्रशासन के ओर से मछली लूट की रोकथाम को लेकर कोई ठोस पहल नहीं हो सकी.

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