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सीट को लेकर खिचखिच

जिले में विधानसभा की सात सीटे हैं. यहां के आधा दर्जन विधायक अब तक मंत्री रह चुके हैं. कोढ़ा के विधायक रहे भोला पासवान शास्त्री मुख्यमंत्री का भी पद संभाल चुके हैं. इस बार के विधानसभा चुनाव में परिस्थितियां अलग हैं. भाजपा से बगावत कर पिछला विधानसभा चुनाव जीतनेवाले दुलालचंद गोस्वामी अब जदयू में हैं […]

जिले में विधानसभा की सात सीटे हैं. यहां के आधा दर्जन विधायक अब तक मंत्री रह चुके हैं. कोढ़ा के विधायक रहे भोला पासवान शास्त्री मुख्यमंत्री का भी पद संभाल चुके हैं. इस बार के विधानसभा चुनाव में परिस्थितियां अलग हैं. भाजपा से बगावत कर पिछला विधानसभा चुनाव जीतनेवाले दुलालचंद गोस्वामी अब जदयू में हैं और सरकार में मंत्री भी. पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ रामप्रकाश महतो राजद छोड़ जदयू में हैं. इस बार के लोकसभा चुनाव में राकांपा के तारिक अनवर ने भाजपा से यह सीट छीनी. विधानसभा में भी एनडीए व महागंठबंधन के बीच कांटे का मुकाबला होना तय है.

कटिहार
कटिहार विधानसभा सीट लगातार दो बार से भाजपा के कब्जे में है. वर्तमान में इस सीट पर दावेदारों को लेकर दिलचस्प स्थिति बनी हुई है. 2010 के चुनाव में यहां से भाजपा के तारकिशोर प्रसाद जीते थे. यह उनकी लगातार दूसरी जीत थी. वर्ष 2005 में हुए चुनाव में प्रसाद पहली बार विधायक बने थे. उन्होंने दोनों बार राजद के डॉ रामप्रकाश महतो को हराया. बाद में डॉ महतो राजद से नाता तोड़ कर जदयू में चले गये. लोकसभा 2014 में डॉ महतो ने जदयू प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा. हालांकि लोकसभा चुनाव में डॉ महतो की हार हुई. इस बार के चुनाव में राजद, कांग्रेस जदयू, राकांपा महागंठबंधन में किसी पार्टी के खाते में यह सीट जाएगी, इसको लेकर जिच बरकरार है. यही कारण है कि संभावित दावेदार जनसंपर्क में जुटे हैं और सभी दलों के वरीय नेताओं से संपर्क में हैं.
अब तक
यह सीट दो बार भाजपा, दो बार राजद, छह बार कांग्रेस, दो बार जनसंघ, एक बार जनतादल एवं एक बार सीपीआई के कब्जे में रहा है. राजद के डॉ रामप्रकाश महतो को राबड़ी देवी मंत्रीमंडल में जगह मिली थी.
इन दिनों
जदयू के पर्चा पर चर्चा व घर-घर दस्तक कार्यक्रम के बाद विस सम्मेलन किया जा रहा है. भाजपा की ओर से जनसंपर्क व विधानसभा सम्मेलन के बाद अब पंचायत व बूथ स्तर पर अभियान शुरू किया गया है.
मनिहारी (अजजा)
बदले समीकरण पर नजर
मनिहारी विधानसभा सीट पिछले चुनाव में परिसीमन के तहत अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हो गयी. वर्ष 2010 के चुनाव में आरक्षित सीट का फायदा जदयू के मनोहर प्रसाद सिंह को मिला. श्री सिंह राकांपा की गीता किस्कू को हराकर पहली बार विधानसभा पहुंचे थे. इस चुनाव में राजद-लोजपा गंठबंधन की ओर से लोजपा के चंपई किस्कू चुनाव लड़े तथा तीसरे स्थान पर रहे. हर वर्ष बाढ़-कटाव का सामना करने वाला यह विधानसभा क्षेत्र हमेशा ही राजनीतिक रूप से उपेक्षित रहा है. पिछले चुनाव की तरह ही इस बार भी मुकाबला आमने-सामने का होने के आसार हैं. पिछले चुनाव में भाजपा-जदयू तथा राजद-लोजपा साथ-साथ थे. जबकि कांग्रेस व राकांपा अलग-अलग चुनाव मैदान में उतरे थे. इस बार स्थिति बदली-बदली है. यद्यपि जदयू के कब्जे में होने की वजह से यह सीट जदयू को मिलने के आसार अधिक हैं. फिलहाल सीट बंटवारे के बाद ही पूरी तसवीर साफ हो सकेगी. हालांकि सभी राजनीतिक दलों तैयारी शुरू कर दी है.
बरारी
टिकट की चाहत में बढ़ी चिंता
बरारी विधानसभा क्षेत्र में विधानसभा चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज हो गयी है. पिछले दो चुनाव से इस सीट पर भाजपा के विभाष चंद्र चौधरी का कब्जा है. चौधरी पिछले दो चुनाव से राकांपा के मो सकूर को शिकस्त दे रहे हैं. पिछले चुनाव में चौधरी को जदयू का समर्थन प्राप्त था. लेकिन इस बार जदयू महागंठबंधन के साथ है. चुनाव को लेकर सियासी गतिविधियां तेज हो गयी है. कमोबेश सभी दलों ने प्रत्याशी खड़ा करने के उद्देश्य से तैयारी शुरू कर दी है. भाजपा की ओर से चौधरी की दावेदारी मजबूत मानी जा रही है. जबकि महागंठबंधन की ओर से कई दावेदार सामने दिख रहे हैं. हालांकि इस सीट पर दल-बदल की स्थिति उत्पन्न नहीं हुई है. माना जा रहा है कि महागंठबंधन में सीट बंटवारा के बाद नेताओं के बीच भागमभाग की स्थिति उत्पन्न हो सकती है. सियासी हलचल के बीच दबी जुबान से यह भी चर्चा है कि आसन्न चुनाव में सभी प्रमुख प्रत्याशियों को भितरघात का सामना करना पड़ सकता है. यद्यपि अब-तक की चुनावी गतिविधियों के बीच क्षेत्र के विकास व अन्य मुद्दे गायब हैं.
कदवा
दावेदारों की खड़ी है फौज
कदवा विधानसभा क्षेत्र भाजपा के कब्जे में था. फिलहाल विधायक भोला राय के निधन के बाद चार माह से यह सीट रिक्त है. पिछले चुनाव में भाजपा के भोला राय ने राकांपा के हिमराज सिंह को पराजित किया था. भाजपा विधायक के निधन के कारण उनका उतराधिकारी बनने के लिए एक दर्जन से अधिक दावेदार हैं. इस सीट में भाजपा की स्थिति एक अनार सौ बीमार वाली हो गयी है. दूसरी तरफ राकांपा, जदयू, कांग्रेस, राजद ने भी चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है. हालांकि महागंठबंधन की तरफ से यह सीट किस दल के खाते में जाती है, इस पर बहुत कुछ निर्भर करेगा. कयास लगाया जा रहा है कि दूसरे स्थान पर रहने की वजह से यह सीट राकांपा के खाते में जा सकती है. हालांकि यह सीट निर्दलीयों के लिए भी उत्तम माना जाता है. अब तक छह बार निर्दलीयों ने इस सीट पर कब्जा जमाया है. गंठबंधन में सीट बंटवारे के बाद नेताओं के इधर-उधर जाने की पूरी संभावना है. माना जा रहा है कि इस बार भाजपा व राकांपा गंठबंधन के बीच मुकाबला होगा.
अब तक
यह सीट चार बार कांग्रेस, दो बार भाजपा, दो बार राकांपा तथा चार दफा निर्दलीय के कब्जे में रहा है. निर्दलीय हिमराज सिंह मंत्री भी रहे.
इन दिनों
जदयू के पर्चा पर चर्चा व घर-घर दस्तक कार्यक्रम के बाद विस सम्मेलन हुआ तो भाजपा सम्मेलन के बाद पंचायत व बूथ स्तर पर अभियान शुरू किया है.
प्राणपुर
पाला बदल की आशंका से हलकान
अल्पसंख्यक बहुल इस विधानसभा सीट में पिछले चुनाव में समाजवादी नेता व राजद प्रत्याशी महेंद्र नारायण यादव को चौथे स्थान पर जाना पड़ गया था. यह सीट फिलहाल भाजपा के विनोद कुमार सिंह के कब्जे में है. सिंह ने पिछले चुनाव में पहली बार चुनाव मैदान में उतरी राकांपा प्रत्याशी इशरत परवीन को मामूली वोटों के अंतर से हराया था. कांग्रेस के अब्दुल जलील व राजद के महेंद्र नारायण यादव क्रमश: तीसरे व चौथे स्थान पर रहे थे. इस बार भी भाजपा की ओर से सिंह की दावेदारी तय मानी जा रही है. महागंठबंधन की ओर से राकांपा के खाते में यह सीट मिलने के कयास लगाये जा रहे हैं. यह भी कयास जोरों पर है कि इशरत परवीन राकांपा की उम्मीदवार होंगी. हालांकि जदयू, राजद, कांग्रेस ने भी अपनी-अपनी तैयारी शुरू कर दी है. सियासी हल्कों में यह कयास लगाया जा रहा है कि टिकट बंटवारे के साथ ही नेताओं के बीच दल बदलने की होड़ लग जायेगी. हालांकि चुनावी सरगर्मी के बीच मुख्य मुद्दा पूरी तरह से ओझल हो चुका है.
अब तक
यह सीट छह बार कांग्रेस दो बार जद, राजद व भाजपा, एक -एक बार पीएसपी व एक बार जनता पार्टी के कब्जे में रही है.
इन दिनों
जदयू के पर्चा पर चर्चा व घर-घर दस्तक कार्यक्रम के बाद विस सम्मेलन हो है. भाजपा ने सम्मेलन के बाद अब बूथ स्तर पर अभियान शुरू किया है.
बलरामपुर
विरोधियों में खोट दिखाने की होड़
बलरामपुर विधानसभा सीट की स्थिति काफी दिलचस्प है. पिछले चुनाव की तुलना में इस दफे कई उतार-चढ़ाव देखने को मिलेंगे. इस बात की झलक अभी से क्षेत्र में मिलने लगी है. अल्पसंख्यक बहुल इस क्षेत्र में निर्दलीय दुलाल चंद्र गोस्वामी विधायक बने. वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में यह सीट जदयू के खाते में गयी. तब भाजपा के प्रबल दावेदार रहे दुलालचंद्र गोस्वामी निर्दलीय खड़ा हो गये और चुनाव जीत गये. उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी भाकपा माले के महबूब आलम को हराया. जदयू प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गयी थी. इस बार स्थिति वर्ष 2010 की तुलना में ज्यादा रोमांचक हो गयी है. नीतीश मंत्रिमंडल में श्रम संसाधन मंत्री हैं गोस्वामी. कयास लगाया जा रहा है कि वह विधानसभा चुनाव जदयू के टिकट पर लड़ेंगे. दूसरी ओर माले की ओर से महबूब आलम की दावेदारी को पक्का माना जा रहा है. एनडीए को लेकर अब भी असमंजस की स्थिति है. किसी भी नेता का नाम अभी तक सामने नहीं आया है. लेकिन, लगभग आधा दर्जन दावेदार ताल ठोंक
रहे हैं.
अब तक
यह सीट तीन बार कांग्रेस, एक बार भाजपा, दो बार भाकपा माले एवं एक -एक बार जनसंघ, जनता पार्टी, जद व निर्दलीय के कब्जे में रहा है.
इन दिनों
हर पार्टी अपने वोटरों
को साधने में लगी है. विस सम्मेलन का भी आयोजन हो रहा है. जदयू कार्यकर्ता घर-घर दस्तक दे रहे हैं.
भोला पासवान शास्त्री से रही है पहचान
कोढ़ा विधानसभा सीट पूर्णिया संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है. यहां से भाजपा के महेश पासवान कांग्रेस की सुनीता देवी को शिकस्त देकर विधानसभा पहुंचे. अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित यह सीट काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है. पूर्व मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री से लेकर लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान का यह चुनावी क्षेत्र रहा है. इस कारण इस सीट पूर सबकी नजर रहती है. पिछले चुनाव में भाजपा के पासवान व कांग्रेस की सुनीता देवी के बीच टक्कर हुई थी. उस चुनाव में काफी वोटों के अंतर से सुनीता देवी को शिकस्त मिली थी.
जबकि लोजपा व राकांपा के उम्मीदवार भी चुनाव में उतरे थे. इस बार की स्थिति थोड़ी बदली हुई है. हालांकि भाजपा की ओर से पासवान की दावेदारी को मजबूत माना जा रहा है. जबकि कांग्रेस में सुनीता के अलावा कई दावेदार सामने आये हैं. इस बार महागंठबंधन होने की वजह से यह सीट किस के खाते में जाती है, इस पर अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है. लेकिन, महागंठबंधन में शामिल सभी दलों को यह उम्मीद है कि यह सीट उन्हीं के पाले में आएगी. यह मानकार सबने तैयारी शुरू कर दी है. पिछले चुनाव में यहां राकांपा तीसरे व लोजपा चौथे स्थान पर थी. महागंठबंधन में यह सीट किस दल के हिस्से में जाती है, इस पर भी इस बार का चुनाव बहुत हद तक निर्भर करेगा.

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