कटिहार में आवारा कुत्तों का आतंक, लोग बेबस
हर दिन औसतन 11 लोग बन रहे इनके शिकार कटिहार : बरेली के आमिर की मौत आवारा कुत्तों की वजह से हो गयी. करीब चार दिन पहले मासूम आमिर घर से कुछ सामान लेने निकला था. इसी बीच दुकान से लौटते समय आवारा कुत्तों ने घेर कर उसे मौत के मुंह में पहुंचा दिया. दरअसल […]
हर दिन औसतन 11 लोग बन रहे इनके शिकार
कटिहार : बरेली के आमिर की मौत आवारा कुत्तों की वजह से हो गयी. करीब चार दिन पहले मासूम आमिर घर से कुछ सामान लेने निकला था. इसी बीच दुकान से लौटते समय आवारा कुत्तों ने घेर कर उसे मौत के मुंह में पहुंचा दिया. दरअसल बरेली की यह घटना समाज के बीच बहस का एक बड़ा मुद्दा छोड़ गयी है. जिस तरह शासन-प्रशासन आवारा कुत्ताें व अन्य जानवरों की अनदेखी कर रहा है, इससे बरेली जैसी घटना कहीं भी हो सकती है.
कटिहार जिले में आवारा कुत्तों की भरमार है. इस जिले में सिर्फ मार्च में 346 लोग आवारा कुत्तों के शिकार बने हैं. यानी मार्च की घटना को देखें, तो औसतन हर दिन 11 लोग कुत्ते के शिकार बने हैं. हालांकि कुत्ताें के शिकार हुए लोगों के मौत की सूचना अबतक नहीं है. यह सिर्फ सरकारी आंकड़ा है,
जबकि ग्रामीण स्तर पर कुत्ता काटने के बाद लोग स्थानीय तांत्रिक से झाड़ फूंक भी करवाते हैं. इसलिए यह आंकड़ा बढ़ भी सकता है. जिले के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में झुंड के झुंड आवारा कुत्ते नजर आते हैं. प्रभात खबर ने स्थानीय स्वास्थ्य विभाग की रिर्पोट पर पड़ताल की है. साथ ही आवारा कुत्तों पर शासन प्रशासन की अनदेखी पर भी सवाल उठा है.
प्रशासन बना रहता है मूकदर्शक
आवारा कुत्तों के आतंक के प्रति प्रशासन मूकदर्शक बना रहता है. हालांकि जिले के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में आवारा कुत्तों का आतंक कोई बड़ा मुद्दा नहीं है, लेकिन जिस तरह शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में कुत्तों का आतंक बढ़ रहा है. यह बड़ी चिंता का विषय है. आपको शहर के अधिकांश गली-मोहल्लों व ग्रामीण क्षेत्रों में झुंड के झुंड कुत्ते गुर्राते-झपटते मिल जायेंगे. यद्यपि कुत्ताें के शौकीन लोग भी अपने पालतू कुत्ते का शिकार बनते रहे हैं.
भले ही आवारा कुत्ते समाज के लिए कोई बड़ा मुद्दा नहीं हैं, लेकिन कुत्ता काटने के बाद जिस तरह सरकार व निजी अस्पतालों में लोगों की भीड़ बढ़ रही है, इससे गंभीर समस्या उत्पन्न हो सकती है.
सरकारी अस्पतालों में कम पड़ रही रैबिज
कुत्ता काटने के बाद लोग सरकारी अस्पताल में रैबिज की सूई लगवाने पहुंचते हैं. कुत्ताें का आतंक अब इस कदर बढ़ने लगा है कि अस्पतालों में रैबिज की सूई कम पड़ने लगी है. वर्ष 2015-16 में करीब दो-तीन महीने तक रैबिज की सूई सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध नहीं थी. वैसे समय में कुत्तेे के शिकार लोग निजी अस्पतालों अथवा झाड़ फूंक से अपना उपचार करवाते रहे. सरकारी अस्पतालों में रैबिज जल्द समाप्त हो जायेगी, ऐसी उम्मीद नहीं थी, लेकिन दिन प्रतिदिन आवारा कुत्तों के बढ़ते आतंक ने रैबिज की आपूर्ति बढ़ाने को मजबूर कर दिया है.
लाखों के राजस्व का होता है नुकसान
आवारा कुत्तों पर नियंत्रण नहीं होने की वजह से रैबिज सूई के रूप में लाखों करोड़ों के राजस्व का चूना हर साल लगता है. जानकारों की मानें तो रैबिज सूई काफी महंगी होती है. सरकार द्वारा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, अनुमंडल अस्पताल एवं सदर अस्पताल में रैबिज की सूई मुफ्त उपलब्ध करायी जाती है. अगर आवारा कुत्तों पर नियंत्रण किया जाता है, तो बड़ी राशि खर्च होने से बच सकती है.
केवल मार्च में ही 346 लोगों को काटा
स्थानीय स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट पर भरोसा करें तो सिर्फ मार्च में 346 लोगों को कुत्ताें ने अपना शिकार बनाया. अगर वर्ष 2015-16 का आंकड़ा देखें, तो इस एक साल में 3926 लोग आवारा कुत्तों के शिकार बने. हालांकि कुत्तों के शिकार वैसे लोग भी हुए हैं, जो स्वयं कुत्ते को पालते हैं. अधिकांश लोग आवारा कुत्तों का ही शिकार बने. इन आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि औसतन हर दिन 11 लोग कुत्ते के शिकार बने हैं. सिविल सर्जन डा एससी झा द्वारा जारी प्रगति प्रतिवेदन में इन आंकड़ों का जिक्र है.