10.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

धार्मिक आस्था का केंद्र है कुरसेला का उत्तरवाहिनी गंगा तट

कुरसेला : वेद ग्रंथो में वर्णित संगम उत्तरवाहिन गंगा तट पापहरणि मोक्षदायनी माना जाता है. ऐसे स्थलों पर जप तप ध्यान साधना गंगा सेवन और स्नान विशेष रूप से फलित समझा जाता है. भारत वर्ष में ऋषिकेश हरिद्वार प्रयाग काशी सुल्तानगंज व कुरसेला का त्रिमोहनी संगम उत्तर वाहनी गंगा तटों के अनुरूप कुरसेला के संगम […]

कुरसेला : वेद ग्रंथो में वर्णित संगम उत्तरवाहिन गंगा तट पापहरणि मोक्षदायनी माना जाता है. ऐसे स्थलों पर जप तप ध्यान साधना गंगा सेवन और स्नान विशेष रूप से फलित समझा जाता है. भारत वर्ष में ऋषिकेश हरिद्वार प्रयाग काशी सुल्तानगंज व कुरसेला का त्रिमोहनी संगम उत्तर वाहनी गंगा तटों के अनुरूप कुरसेला के संगम उत्तरवाहिनी तट को महत्ता को प्रसिद्धि नहीं मिल सकी है. कोसी नदी और कलवलिया नदी की धारायें यहां गंगा नदी से संगम करती है.

यहां गंगा नदी दक्षिण से उत्तर दिशा में प्रवाहित होती है. सूर्योदय से ही उत्तर दिशा में प्रवाहित होती है. सूर्योदय की किरणें सीधे गंगा के लहरों पर पड़ती है. जिससे प्रकृति का अनुपम दृश्य उपस्थित हो जाता है. नेपाल से निकलने वाली कोसी के सप्तधाराओं में एक सीमांचल क्षेत्र के कई जिलों से गुजरते हुए यहां आकर गंगा नदी से संगम कर अपना वजूद खो देती है. कलवलिया नदी की एक छोटी धारा इस उत्तरवाहिनी गंगा तट से मिलकर संगम करती है. गंगा नदी पार दूसरे छोड़ पहाड़ों के बीच बाबा बटेशवरनाथ का प्रसिद्ध पौराणिक मंदिर है.

धार्मिक रूप से उत्तरवाहनि गंगा तट का यह क्षेत्र उपकाशी समझा जाता है. इस बाबत संगम बाबत कहते हैं कि सवा हाथ धरती के कम पड़ने से यह क्षेत्र काशी नहीं बन सका. पुण्य भूमि काशी की सारी धार्मिक स्थितियां यहां विद्यमान है. बाबा ने खुद का जीवन गंगा मैया के नाम समर्पण कर इस स्थल के समीप राणेश्वर कामना लिंग स्थापना के लिए मंदिर का निर्माण प्रारंभ कर दिया है. मंदिर निर्माण कार्य प्रगति पर है. इस तट के ख्याति के लिए संगम बाबा अनवरत प्रचार में जुटे हैं. तट के लिए इस क्षेत्र को बाबा द्वारा सुंदर नगरम का नाम दिया गया है.

स्थल का ऐतिहासिक महत्व है
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के मृत्यु के उपरांत उनके अस्थी भस्म को देश के अन्य संगम तटों के साथ इस त्रिमोहनी उत्तर वाहिनी संगम तट पर विसर्जित किया गया था. जिसकी स्मृति में इस तिथि पर यहां भव्य कृषि मेला लगा करता था. तट के महत्त के वजह से इस स्थान पर पूज्य बापू के अस्थी को प्रवाहित किया गया था. धार्मिक अस्थाओं के साथ यह स्थल का ऐतिहासिक रूप से पहचान कायम है.
बंदरगाह पर्यटन का आसार
रेल और सड़क सुविधाओं के आस पास होने के जल परिवहन में इस स्थल को बंदरगाह के रूप में प्रयोग में लाने की संभावना छिपी है. जल परिवहन व्यवस्था से इस देश के व्यापारिक महानगरों से जोड़ा जा सकता है. सड़क रेल यातायात व्यवस्था को तट के करीब पहुंचाकर एक बेहतर बंदरगाह के रूप में कारगर किया जा सकता है. पर्याटन क्षेत्र में उपनदियां और छारननुमा झीलों से पर्यटन के विकल्प मौजूद है् क्षेत्र का तटीय दृश्य बरबस ही लोगों का आकर्षित करती रहती है.
गंगा तट पर उमड़ती है भीड़
कार्तिक व माघी पूर्णिया के साथ अन्य धार्मिक अवसरों पर यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है. इस तट पर जप साधना गंगा स्नान और सेवन कर श्रद्धालु पूण्य बटोरने का कार्य करते है. माघी पूर्णिा पर सहरसा, सुपौल, मधेपूरा, कटिहार पूर्णिया के हजारों श्रद्धालु यहां गंगा स्नान को आया करते है. यज्ञो के साथ यहां धार्मिक आयोजन हुआ करता है. इस स्थल से तकरीबन चार किलोमीटर की दूरी पर तीनटेंगा तट पर माघी पूर्णिमा में भव्य मेला लगा करता है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें