कुरसेला : वेद ग्रंथो में वर्णित संगम उत्तरवाहिन गंगा तट पापहरणि मोक्षदायनी माना जाता है. ऐसे स्थलों पर जप तप ध्यान साधना गंगा सेवन और स्नान विशेष रूप से फलित समझा जाता है. भारत वर्ष में ऋषिकेश हरिद्वार प्रयाग काशी सुल्तानगंज व कुरसेला का त्रिमोहनी संगम उत्तर वाहनी गंगा तटों के अनुरूप कुरसेला के संगम उत्तरवाहिनी तट को महत्ता को प्रसिद्धि नहीं मिल सकी है. कोसी नदी और कलवलिया नदी की धारायें यहां गंगा नदी से संगम करती है.
यहां गंगा नदी दक्षिण से उत्तर दिशा में प्रवाहित होती है. सूर्योदय से ही उत्तर दिशा में प्रवाहित होती है. सूर्योदय की किरणें सीधे गंगा के लहरों पर पड़ती है. जिससे प्रकृति का अनुपम दृश्य उपस्थित हो जाता है. नेपाल से निकलने वाली कोसी के सप्तधाराओं में एक सीमांचल क्षेत्र के कई जिलों से गुजरते हुए यहां आकर गंगा नदी से संगम कर अपना वजूद खो देती है. कलवलिया नदी की एक छोटी धारा इस उत्तरवाहिनी गंगा तट से मिलकर संगम करती है. गंगा नदी पार दूसरे छोड़ पहाड़ों के बीच बाबा बटेशवरनाथ का प्रसिद्ध पौराणिक मंदिर है.
धार्मिक रूप से उत्तरवाहनि गंगा तट का यह क्षेत्र उपकाशी समझा जाता है. इस बाबत संगम बाबत कहते हैं कि सवा हाथ धरती के कम पड़ने से यह क्षेत्र काशी नहीं बन सका. पुण्य भूमि काशी की सारी धार्मिक स्थितियां यहां विद्यमान है. बाबा ने खुद का जीवन गंगा मैया के नाम समर्पण कर इस स्थल के समीप राणेश्वर कामना लिंग स्थापना के लिए मंदिर का निर्माण प्रारंभ कर दिया है. मंदिर निर्माण कार्य प्रगति पर है. इस तट के ख्याति के लिए संगम बाबा अनवरत प्रचार में जुटे हैं. तट के लिए इस क्षेत्र को बाबा द्वारा सुंदर नगरम का नाम दिया गया है.