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जमानत नहीं मिलने के कारण कई लोग बंद हैं जेल में

कटिहार : शराब से जुड़े मामलों का विचारण न्यायालय में शुरू नहीं होने से हजारों मामले जस के तस पड़े हैं. कई मामलों में तो अभियुक्त आरोप गठन नहीं होने के कारण बेवजह जेल में बंद है. अब इसे सरकारी व्यवस्था की खामी कहे या न्यायलय प्रशासन की कमी. कहीं ना कहीं ऐसे मामलों का […]

कटिहार : शराब से जुड़े मामलों का विचारण न्यायालय में शुरू नहीं होने से हजारों मामले जस के तस पड़े हैं. कई मामलों में तो अभियुक्त आरोप गठन नहीं होने के कारण बेवजह जेल में बंद है. अब इसे सरकारी व्यवस्था की खामी कहे या न्यायलय प्रशासन की कमी. कहीं ना कहीं ऐसे मामलों का विचारण शुरू नहीं किया जाना मानवाधिकार के विरुद्ध है. कई मामलों में निर्दोष अभी जेल में बंद हैं. बिहार उत्पाद अधिनियम के प्रभावी होने के लगभग येक साल पूरा होने को है.
इस अधिनियम के तहत जेल में बंद कई अभियुक्त जमानत संबंधी दिये न्यायिक आदेश के तहत या तो आरोप गठित होने तक या फिर येक निश्चित अवधि के बाद जमानत के लिये आवेदन फिर से फाइल करने जैसे आदेश दिये जा रहे हैं. शराब के साथ कम मात्रा में या पीने में पकड़े गये अभियुक्तों को निम्न न्यायालय से जमानत मिल रहे हैं. लेकिन बड़ी मात्रा में पकड़े गये अभियुक्त के मामले में निम्न न्यायालय से लेकर उच्च न्यायालय तक ऐसे आदेश दिये जा रहे हैं. जिससे जेल में बंद अभियुक्तों को ज्यादा मददगार साबित नहीं हो रहे हैं.
निश्चित न्यायाधीश को सुनने की शक्ति नहीं होना बड़ी वजह : जानकारी के अनुसार बिहार उत्पाद अधिनियम के तहत दर्ज मामले जब से अजमानतीय बना दिया गया है. तो इसके ट्रायल के लिये भी विशेष न्यायाधीश होंगे या फिर किसी सत्र न्यायधीश को शक्ति प्रदान की जायेगी. लेकिन अधिनियम के पूर्ण रूप से प्रभावी होने के लगभग पांच महीने से अधिक हो चले हैं. लेकिन किसी विशेष न्यायाधीश को अब तक सुनने की शक्ति नहीं प्रदान करना ट्रायल शुरू नहीं होने का बड़ा कारण माना जा रहा है. सरकार ने यह निर्णय अब तक नहीं किया है कि ऐसे मामलों में किस न्यायिक पदाधिकारी के न्यायालय में मामले की सुनवाई होगी.
अधिवक्ताओं का है कहना : व्यवहार न्यायालय के अधिवक्ता कुलदीप नारायण सिन्हा का कहना है कि शराब से जुड़े मामलों का ट्रायल शुरू नहीं करना मानवाधिकार का सीधा उल्लंघन है.
अधिवक्ता अरविंद कुमार चौधरी का कहना है कि सरकार को जल्द ही इस मामले में निर्णय ले लेना चाहिये कि किस न्यायिक पदाधिकारी के द्वारा शराब से जुड़े मामलों का ट्रायल चलेगा. अधिवक्ता इस्लाम अख्तर का कहना है कि कई ऐसे मामले में निर्दोष जेल में बंद हैं सिर्फ ट्रायल का शुरू नहीं होना ऐसे लोगों को न्याय पाने से वंचित करने जैसा है.
बिहार उत्पाद अधिनियम 2015 तत्पश्चात बिहार उत्पाद अधिनियम 2016 के 2 अक्टूबर 2016 प्रभावी होने के पश्चात सभी नियम अजमानतीय बना दिये गये. इस अधिनियम के तहत जुर्माने की राशि को भी जबरदस्त बढ़ोतरी कर दी गयी है. वर्ष 2016 में इस अधिनियम के तहत उत्पाद विभाग ने लगभग 12 साल से अधिक मामले दर्ज किये.
वहीं दूसरी ओर जिले के विभिन्न थानों में लगभग 1000 मामले दर्ज किये गये. वर्ष 2017 में जानकारी के अनुसार विगत 2 महीनों में उत्पाद विभाग ने लगभग 300 मामले दर्ज की है. वही जिले के विभिन्न थानों में विगत दो महीनों में लगभग 100 मामले दर्ज किये हैं. जिसका ट्रायल अब तक शुरू नहीं हुआ है. यदि इस प्रकार मामले की दर्ज होने की गति रहे तो इस वर्ष लगभग ढाई हजार और मामले दर्ज होने की संभावना है.

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