Katihar news : गंगा, कोसी, महानंदा व कई सहायक नदियाें के मुहाने पर बसा कटिहार जिला अब 51 वर्ष का हो गया है. वर्ष 1973 में दो अक्तूबर को पूर्णिया से अलग होकर कटिहार स्वतंत्र जिला के रूप में अस्तित्व में आया. पिछले कुछ वर्षों से रस्म अदायगी के तौर पर जिला प्रशासन की ओर से जिला स्थापना दिवस मनाया जाता रहा है. इस बार जिला स्थापना पर जिला प्रशासन तीन दिवसीय समारोह का आयोजन कर रहा है. तीन दिवसीय कार्यक्रम की शुरुआत सोमवार को हो चुकी है तथा बुधवार को समापन होगा. दरअसल कटिहार जिले ने जंग-ए-आजादी में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है. आजादी के बाद से कटिहार स्वतंत्र जिला के रूप में आने के लिए बेताब था. पूर्णिया के साथ रहने की वजह से इसका चतुर्दिक विकास नहीं हो पा रहा था. ऐसे में यहां के बुद्धिजीवियों, सामाजिक, राजनीतिक कार्यकर्ताओं व विभिन्न संगठनों के लोगों ने मिलकर कटिहार जिला बनाओ संघर्ष समिति का गठन किया.
विकास तो हुआ, पर खोया भी बहुत कुछ
विभिन्न तरह के आंदोलन व संघर्ष के बाद कटिहार जिला अस्तित्व में आया. इस बीच कटिहार जिले ने उत्तरोत्तर विकास किया है. सामाजिक, शैक्षणिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक रूप से कटिहार जिला प्रगति की ओर अग्रसर है. हालांकि इन 51 वर्षों में जितना विकास कटिहार जिले का होना चाहिए था, उतना हुआ नहीं. बावजूद इसके अन्य जिलों की तुलना में कटिहार सांप्रदायिक सौहार्द एवं आपसी भाईचारे के मूल्यों को कायम रखते हुए विकास के पथ पर बढ़ने को आतुर है. विकास के पथ पर आगे बढ़ने के साथ-साथ कटिहार जिले को कई तरह की त्रासदी भी झेलनी पड़ती है. हर वर्ष यह जिला बाढ़ एवं कटाव का दंश झेलता है. कमोवेश हर साल बाढ़ व कटाव से लाखों की आबादी प्रभावित होती रही है. इस साल औसत से कम बारिश होने की वजह किसानों को अत्यधिक परेशानी झेलनी पड़ी है. दूसरी तरफ बाढ़ व कटाव से दो लाख से अधिक की आबादी प्रभावित हुई है.
संघर्ष के बल पर कटिहार को मिला जिला का दर्जा
जंग-ए- आजादी में कटिहार जिले के लोगों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. आजादी के कई दीवानों ने तो अपनी जान भी दे दी. आजादी मिलने के बाद कटिहार के लोगों को पूर्णिया से अलग कर स्वतंत्र जिला के रूप में लाने के लिए मुहिम चलाना पड़ा. साठ के दशक में यहां के बुद्धिजीवियों, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं, विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों, छात्रों आदि ने कटिहार को जिला का दर्जा देने के लिए आंदोलन शुरू किया. इसी क्रम में कटिहार जिला बनाओ संघर्ष समिति भी गठित की गयी. धरना- प्रदर्शन समेत विभिन्न तरह के लोकतांत्रिक आंदोलन के साथ-साथ यहां के लोगों ने समिति के बैनर तले कई तरह के संघर्ष किये. जिला बनाओ संघर्ष समिति में शामिल लोगों को जेल तक जाना पड़ा. संघर्ष के परिणामस्वरूप दो अक्तूबर 1973 को कटिहार को जिले का दर्जा प्राप्त हुआ.
अब उद्योग नगरी नहीं रहा कटिहार
कभी कटिहार जिला देशभर में औद्योगिक नगरी के रूप में जाना जाता था, लेकिन अब उद्योग के नाम पर वीरानगी की स्थिति बनी हुई है. एक से एक दिग्गज जनप्रतिनिधि होने के बावजूद उद्योग नगरी के रूप में चर्चित कटिहार अब उद्योग के मानचित्र से गायब हो चुका है. दो जूट मिल, दियासलाई, एल्यूमिनियम फैक्ट्री, फ्लावर मिल समेत कई तरह के उद्योग कटिहार में स्थापित थे. पर, आज उद्योग के मामले में कटिहार पूरी तरह वीरान है. बड़ी तादाद में लोग आज भी विस्थापन का दंश झेल रहे हैं. छोटी-बड़ी सभी तरह की औद्योगिक इकाइयाें के बंद होने की वजह से बड़ी संख्या में यहां बेरोजगारी की स्थिति है. युवा वर्ग दूसरे बड़े शहरों की ओर पलायन करते हैं. जानकारों की मानें, तो राजनीतिक उपेक्षा की वजह से औद्योगिक नगरी के रूप में कटिहार की यह स्थिति हुई है.
जिला बनाने की मांग पर कई लोगों को जाना पड़ा जेल
शिक्षाविद व केबी झा कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ राजेंद्र नाथ मंडल ने कहा कि कटिहार के कई लोगों ने कटिहार नागरिक संघर्ष समिति में शामिल होकर संघर्ष किया था. उनके अलावा प्रो आरपी भगत, प्रो वाईएन सिंह, नारद मुंशी, कन्हैया लाल जैन, रामलगन राय समेत अन्य लोग जिला बनाने की मांग को लेकर संघर्ष के दौरान जेल भी गये.समिति की बैठक भी लगातार होती रहती थी. इसमें बीएन सिन्हा, सीताराम चमरिया, कालीचरण प्रसाद, सूर्यदेव नारायण सिन्हा, उमानाथ ठाकुर टाली पारा इमरजेंसी कॉलोनी के राजेंद्र प्रसाद सिंह समेत स्थानीय लोगों ने सक्रिय भूमिका निभायी थी. जब आंदोलन चरम पर था और गिरफ्तारी की नौबत आयी, तो पूरा कटिहार आंदोलन के समर्थन में उमड़ पड़ा था. तब तत्कालीन एसडीओ ने उन सबको हिरासत में लेकर पूर्णिया जेल भेज दिया था. पूर्णिया जेल में 13 दिन रहना पड़ा था.