कुरसेला. कड़ाके की पड़ रही ठंड व शीतलहर से आलू फसल में पाला लगने का खतरा बढ़ गया है. पाला के बढ़ते खतरे को लेकर किसान कीटनाशी दवाओं का लगतार छिड़काव कर रहे हैं. साथ ही सिंचाई कार्य से फसलों की सुरक्षा करने में भी लगे हैं. किसान आलू फसल पर मौसम के कुप्रभाव को लेकर चिंतित हैं. क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सैकड़ों हेक्टियर क्षेत्र में किसानों ने आलू की खेती की है. आलू फसल के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायू होने से किसान अच्छी उपज प्राप्त करते आये हैं. हालांकि पिछले डेढ़ दशक में आलू की खेती में कमी आयी है. मौसम का प्राकृतिक कुप्रकोप से किसान इस खेती को करने से विमुख हुए हैं. अन्य वजहों में आलू भंडारण के लिए स्थानीय स्तर पर शीतगृह का नहीं होना भी एक कारण रहा है. किसानों का कहना है कि आलू पैदावर के बाद भंडारण का साधन नहीं होने से किसानों को औने-पौने दाम में फसल बेचने को मजबूर होना पड़ता है. किसानों को खेती में लाभ के बजाय घाटा सहना पड़ता है. नतीजन किसानों ने आलू की खेती करना कम कर दिया है. जबकि क्षेत्र की मिट्टी, जलवायू आलू खेती के लिए उपयुक्त है. इस साल किसानों ने बड़े पैमाने पर आलू की खेती की है. साठी आलू में पाला लगने का खतरा कम होता है. अधिक ठंड व शीतलहर पड़ने के पूर्व यह आलू फसल तैयार हो जाता है. समय पर आलू फसल तैयार होने से किसानों को बिक्री का अधिक लाभ प्राप्त होता है. कृषक वर्ग क्षेत्र में कई तरह के आलू किस्मों की खेती करते है. आलू किस्मों के आधार पर खेती का पैदावार अलग होता है.
मक्का फसल पर ठंड का दुष्प्रभाव
ठंड व शीतलहर से मक्का फसल पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है. मक्का फसल पर शीतलहर प्रकोप से वूद्धि रुक जाती है. फसल में कई तरह के रोग लगने का खतरा बढ़ जाता है. किसान फसल बचाव में सिंचाई के साथ अनेक जतन करने में लगे रहते हैं. पाला लगने से मक्का पौधे के सूखने का खतरा बढ़ जाता है. किसानों का मानना है कि ठंड के प्रभाव से मानव पशु-पक्षियों के साथ फसलों के लिए घातक साबित होता है. फसल सुरक्षा की अनदेखी पर किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है. इसी तरह तेलहन, दलहन फसलों पर ठंड का कुप्रभाव पड़ रहा है.
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