प्रखंड क्षेत्र की बावनगंज पंचायत स्थित बड़गांव दुर्गा मंदिर अपने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को लेकर इस क्षेत्र में काफी प्रसिद्ध है. दुर्गा मंदिर की प्रसिद्धि बहुत दूर-दूर तक फैली हुई है. मंदिर न केवल अपनी अलौलिक व चमत्कारिक शक्ति के लिए जाना जाता है. बल्कि मंदिर की अलौलिक शक्ति को लेकर आसपास ग्रामीण क्षेत्र समेत सीमांचल के साथ-साथ पड़ोसी राज्य झारखंड से श्रद्धालु पहुंचकर माता दुर्गा की पूजा अर्चना करते हैं. विजयादशमी के दूसरे दिन भारी तादाद में आदिवासी समाज के लोग अपने परंपरागत पद्धति से यहां एकत्रित होते हैं. पूरी श्रद्धा व आस्था के साथ पूजा अर्चना करते हैं. जबकि मंदिर में पूजा अर्चना के बाद अपने रीति रिवाज के अनुसार आदिवासी जोड़े एक दूसरे को चुनकर विवाह की अटूट बंधन में बंधते हैं. वन दुर्गा के नाम से है प्रसिद्ध स्थानीय मान्यता के अनुसार बड़गांव का यह दुर्गा मंदिर वन दुर्गा के नाम से काफी प्रसिद्ध है. जबकि कथाओं के अनुसार काफी अरसा पहले इस क्षेत्र में खूब घने जंगल हुआ करते थे. लोगों ने यहां माता दुर्गा को शेर की सवारी करते देखा था. प्रारंभ में झोपड़ी में मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा अर्चना शुरू की गयी. यहां बलि प्रथा का भी प्रचलन है जो आज तक वह प्रचलन बरकरार है. बाद में श्रद्धालुओं के सहयोग से भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया. शारदीय नवरात्र के अवसर पर दुर्गा मंदिर के मैदान में भव्य मेला का आयोजन किया जाता है. कहते हैं पूजा व मेला कमेटी के अध्यक्ष दुर्गा पूजा मेला कमेटी के अध्यक्ष सुरेश राम ने कहा कि प्रत्येक वर्ष पूजा के पावन अवसर पर भव्य मेले का भी आयोजन किया जाता है. इस वर्ष तीन दिन तक रामलीला कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है. कहते हैं मंदिर के पुजारी बड़गांव दुर्गा मंदिर के पुजारी रामू झा ने कहा कि मां दुर्गा काफी शक्तिशाली है. मां के दरबार में जो भी अपने व्यथा कष्ट और दुख दर्द लेकर आते हैं. दुर्गा माता उनके कष्ट को हर लेती हैं. आदिवासी युवक-युवती चुनते हैं जीवन साथी विजयादशमी के एक दिन बाद मंदिर परिसर में आदिवासी समाज के लोगों के द्वारा विशेष मेला लगाया जाता है. आदिवासी समाज के रीति रिवाज के अनुसार पूजा अर्चना की जाती है. मेला को लेकर आदिवासी समाज के लोगों में काफी उत्साह रहता है. अनेकों प्रकार के खेल का आयोजन किया जाता है. इस दौरान विवाह योग्य युवक युवतियां यहां लगने वाले मेले व मंदिर परिसर में अपने जीवनसाथी को चुनते हैं और दोनों पक्षों की सहमति से विवाह संपन्न करते हैं. यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है.
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