प्राकृतिक की मार से कुंद पड़ गयी केलांचल खेती की ख्याति

कुरसेला सहित आसपास के क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर होती थी केला की खेती

By Prabhat Khabar News Desk | June 2, 2024 10:42 PM

कुरसेला. केलांचल से केला की हरियाली कुंद पड़ती जा रही है. सोहरत की यह खेती क्षेत्र में अब नहीं के बराबर रह गयी है. करोड़ों का केला कारोबार मंद पड़ गया है. हताश किसानों ने इस खेती से तौबा कर लिया है. किसानों का कभी खुशहाली का आधार बनने वाला केला का खेती बदहाली का कारण बन रहा है. खेती में फायदे से अधिक घाटे की परिस्थितियां होती गयी है. केलांचल से यह खेती दूर होती जा रही है. तीन दशक पूर्व कृषि में केला का खेती तरक्की का साधन बन कर आया था. जिला के कुरसेला, समेली, फलका, बरारी, कोढ़ा सहित अन्य प्रखंड क्षेत्रों के हजारों एकड़ के भू-भाग पर केला की खेती ने विस्तार ले लिया था. हर तरफ केला की हरियाली नजर आती थी. जिसने इन क्षेत्रों को केलांचल का नाम दिया था. देश के बड़े मंडियों के व्यापारी केला खरीदारी के लिए खेतों के मेड़ों पर विचरण किया करते थे. देश के कोने-कोने में यहां के केला ने ख्याति हासिल किया था. केला खेती को लेकर किसानों के हौसला बढ़ता जा रहा था. खेती ने जमीन के महत्व उसके मुल्यों को बढ़ाने का काम किया था. हजारों मजदूरों के हाथों को काम मिल गया था. केलांचल मे हरित क्रांति का दौर बन आया था. वर्ष का चार माह इस खेती के करोड़ों का कारोबार हुआ करता था. किसानों मजदूरों को केला खेती की रट लगी रहती थी. एक दशक की शुरुआती वक्त में इस खेती ने किसानों के प्रगति का मार्ग प्रशस्त किया था. कृषकों को खेती के लाभ ने तरक्की उम्मीद का हौसला दिया था.

प्राकृतिक की मार ने केला की खेती को किया बरबाद

बाढ़, आंधी, ओलावृष्टी, पनामा बिल्ट रोग के कुप्रकपों ने खेती को चौपट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. सैकड़ों एकड़ के केला फसल तबाही से बर्वाद होते रहे. प्राकृतिक के एक के बाद एक आपदाओं ने केला कृषकों का आर्थिक रुप से कमर तोड़ना जारी रखा. किसानों के आगे बचाव के यतन विफल होते चले गये. केला खेती पर आपदाओं का कहर जो एक बार प्रारम्भ हुआ. उसने ठहरने का नाम नहीं लिया. बावजूद कृषक कई वर्षो तक खेती से लाभ का उम्मीद पालते रहे. वर्ष 1987 व 1998 और 2016 के बाढ़ ने इस खेती को भारी क्षति पहुंचाई. उसके बाद आंधी ओलावृष्टी प्रकोपो ने केला खेती को सिमटाना शुरु कर दिया. विगत के पांच साल के बीच गलवा रोग के बढ़ते असर ने बचे खुचे केला खेती को उजाड़ना शुरु कर दिया. भरसक प्रयास के बाद भी अधिकतर किसान गलवा रोग से केला खेती का बचाव करने में असफल रहे.

लागत खर्च अनुरूप लाभ नहीं

गुजरते वक्त के साथ केला खेती का लागत खर्च बढ़ गया. महंगे होते रसायनिक खाद जोत सिंचाई के लिये बढ़ते डीजल के दाम आदि खेती के लागत खर्च को बढ़ा कर रख दिया. लागत खर्च के अनुपात मे खेती पर मुनाफा कम होकर रह गया. लागत पुंजी मेहनत के अनरूप यह खेती घाटे का सौदा साबित होता चला गया. हताश कृषक इस खेती से विमुख होते चले गये. इस तरह केलांचल की यह खेती थोड़े मे सिमट कर रह गयी. केलांचल नाम की ख्याति धूमिल पड़ती चली गयी. क्षेत्र के कृषकों ने इस खेती के बदले नगदी फसल के तौर पर मक्का खेती को अपना लिया. जिसमे किसानों को लाभ उम्मीद की गुंजाई दिखाई पड़ी. हालांकि केलाचंल में सिमित क्षेत्र में अब भी केला की खेती की जाती है. जिसके कृषक लाभ पाने के लिये परेशान बने रहते है.

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