Katihar News : प्रचार के अभाव में जैविक उत्पाद बिक्री केंद्र पर नहीं आ रहे ग्राहक
कटिहार के जेजे इंपोरियम में जैविक उत्पाद की बिक्री को आये किसानों को लागत निकालना भी मुश्किल हो रहा है. जूट से बनी सामग्री भी कम बिक रही है. हालांकि प्रशासनिक पहल व प्रचार-प्रसार से बिक्री बढ़ने की उम्मीद है.
Katihar News : कटिहार. जिला ग्रामीण विकास अभिकरण कटिहार के सहयोग से कृषि विभाग कटिहार द्वारा जूट एवं जैविक उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए मिरचाईबाड़ी में बिक्री केंद्र खोला गया है. हरिशंकर नायक उच्च विद्यालय के सामने स्थापित बिक्री केंद्र जेजे इंपोरियम के उद्घाटन के तीसरे दिन से किसान परेशान हैं. प्रचार-प्रसार का अभाव व विभाग की उदासीनता किसान पसोपेश में हैं. 15 अगस्त को उद्घाटन और दूसरे दिन को छोड़ दिया जाये, तो जैविक उत्पादों की बिक्री काफी कम हो गयी है. हालांकि मड़ुवा की बिक्री अधिक हो रही है. शेष सामग्री की बिक्री कम होने के कारण किसान चितिंतहैं.
पांच दिन बाद दिया गया बिजली का कनेक्शन
किसानों का मानना है कि जितने सामान की बिक्री स्टॉल से हो रही है. ऐसे में नमक का दाम निकाल पाना भी मुश्किल साबित हो रहा है. बिक्री केंद्र पर बैठे अलग-अलग प्रखंडों के किसानों ने कहा कि पांच दिन बाद जूट एवं जैविक इंपोरियम में बिजली कनेक्शन लगाने से उनलोगों को राहत जरूर मिली है. लेकिन अब भी स्टॉल पर कई सामान की कमी है. इसका खामियाजा उनलोगों को भुगतना पड़ रहा है. खासकर शोकेस, फ्रीज से लेकर कई तरह की सामान अब भी लगाने शेष हैं. किसानों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि 15 अगस्त को बिक्री केंद्र उद्घाटन के दिन सबसे अधिक 3185 रुपये की बिक्री हुई. जबकि दूसरे दिन 16 अगस्त को 2750 रुपये की बिक्री हुई. उसके बाद 17, 18 को इतने कम सामान बिके कि बताना भी मुनासिब नहीं समझते. कई किसानों ने सब्जी तीन से चार सौ रुपये की बिक्री प्रतिदिन होने की बात कही. 19 अगस्त को रक्षाबंधन के दिन इंपोरियम बंद रहा. किसानों की मानें तो जूट से बने झोला, राखी, उल्लू आदि की 15 अगस्त को उद्घाटन के दिन 1200 रुपये की बिक्री हुई थी. उसके बाद से सामान बेच नहीं रहे, बल्कि उसकी रखवाली में लगे हुए हैं.
जैविक उत्पादों की कीमत देख लौट रहे ग्राहक
जूट एवं जैविक इंपोरियम में बिकने वाली सब्जी व अन्य सामान की कीमत को देखकर अधिकांश ग्राहक लौट जा रहे हैं. कई ग्राहकों की मानें तो परवल 70 रुपये किलो, करेली 60 रुपये किलो, नेनुआ 40 रुपये किलो, लौकी 45 रुपये पीस, कुंदरी 30 रुपये किलो, अमरूद 70 रुपये किलो, अरबी 55 रुपये प्रतिकिलो, भिंडी 30 रुपये किलो, करेला 50 रुपये किलो, नींबू 10 रुपये पीस, बरबट्टी 60 रुपये किलो, मड़ुआ रागी एक सौ रुपये किलो, खीरा 80 रुपये किलो मूल्य तालिका में दर्शाया गया है. कई ग्राहकों का यह भी कहना है कि पूर्णरूपेण जैविक उत्पाद कह कर इनकी बिक्री की जा रही है. इन सभी सब्जियों की कीमत बाजार में दस से बीस रुपये कम भाव में बिक रहे हैं. इस वजह से लोग दाम देख लौट रहे हैं.
प्रचार होगा, तो बढ़ेंगे ग्राहक
कटिहार के बिक्री केंद्र पर बैठे किसानों की मानें तो कृषि विभाग की ओर से इसके प्रचार-प्रसार की जरूरत है. अभी इसे लेकर पूरी जानकारी कई शहरी व ग्रामीण स्तर पर ग्राहकों को नहीं है. इस कारण ग्राहक कम आ रहे हैं. सरकारी विभागों के कर्मचारियों से लेकर पदाधिकारी तक स्टॉल पर पहुंचने लगेंगे, तो सामान की अधिक बिक्री होगी. मालूम हो कि डंडखोरा के किसान रामनरेश उरांव, रौतारा के उदय सिंह, उदामारहिका के लक्ष्माण प्रसाद सिंह, पंकज निराला, सिरसा के सुरेंद्र सिंह, नवीन पटेल, पंचलाल मंडल आदि जैविक उत्पाद व जूट से निमित सामान को जेजे इंपोरियम में देते हैं.
पारिस्थितिकी तंत्र के लिए आवश्यक हैं जैविक उत्पाद
कटिहार. जैविक खेती से प्राप्त सब्जी, फलों व अन्य फसलों को जैविक उत्पाद कहा जाता है. जैविक खेती, कृषि की वह विधि है जो संश्लेषित उर्वरकों एवं संश्लेषित कीटनाशकों के अप्रयोग या न्यूनतम प्रयोग पर आधारित है. इसमें भूमि की उर्वरा शक्ति बनाये रखने के लिए फसल चक्र, हरी खाद, कंपोस्ट आदि का प्रयोग किया जाता है. सन् 1990 के बाद विश्व में जैविक उत्पादों का बाजार बढ़ा है. बढ़ती जनसंख्या को भोजन की आपूर्ति के लिए मानव अधिक खाद्य उत्पादन के लिए तरह-तरह की रासायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों का उपयोग करता है. यह पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करता है. इससे भूमि की उर्वरा शक्ति नष्ट होती है. साथ ही वातावरण प्रदूषित होता है. मनुष्य के स्वास्थ्य में गिरावट आती है. प्राचीन काल में मानव स्वास्थ्य के अनुकूल तथा प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप खेती की जाती थी. इससे जैविक और अजैविक पदार्थों के बीच आदान-प्रदान का चक्र निरंतर चलता रहा था. फलस्वरूप जल, भूमि, वायु व वातावरण प्रदूषित नहीं होता था. जैविक उत्पाद की बिक्री व इसका चलन पर्यावरण व पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने की एक मुहिम है.