गुलजार होने लगा कुरसेला का मक्का मंडी
अच्छे भाव नहीं मिलने से किसान मायूस
मक्का फसल की तैयारी शुरु होते ही कुरसेला का मक्का मंडी गुलजार होने लगा है. थोक व खुदरा खरीदार व्यवसायियों के यहां मक्का बिक्री की आवक बढ़ गयी है. मौसम के अनुकूल होने से किसान मक्का की तैयारी में जुटे है. मक्का खरीदारी के लिए कुरसेला बड़ा मंडी के रूप में उभरा है. कुरसेला सहित आसपास क्षेत्रों में अनेकों धर्मकांटा और भंडारण के लिए बड़े-बड़े गोदामों का निर्माण हो चुका है. तैयार मक्का का आवक बढ़ने से रैक प्वांइट का रौनक बढ़ गयी है. मंडी में मक्का लदे ट्रैक्टरों ट्रकों के आवाजाही बढ़ने लगा है. वर्तमान दर से किसानों के खेती का लागत खर्च निकल पाना कठिन बना हुआ है. फसल तैयारी के लिए मौसम अनुकूल होने से किसान आनन-फानन में मक्का तैयारी करने में जुटे है. ताकि फसल को अच्छे मूल्यों पर मक्का की बिक्री का लाभ उठा सकें. किसानों को यह आशंका घेरे रहती है कि मक्का के दर में गिरावट से उसे अधिक नुकसान उठाना पड़ सकता है. इस साल किसानों को मक्का फसल का उचित लाभ मिलने की उम्मीद है. हालांकि मक्का के वर्तमान दरों से किसान खुश नहीं है. किसानों का कहना है कि मक्का का दर तीन हजार प्रति क्विंटल से अधिक होना चाहिए था. रासायनियक खाद, बीज, जुताई, सिंचाई के बढ़ते खर्च से मक्का के खेती में लागत पूंजी कई गुणा बढ़ चुका है. डीजल सहित खेती करने के संसाधन का खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है. उस हिसाब से मक्का के वर्तमान दर से खेती का लागत पूंजी का निकल पाना कठिन है. परिक्षेत्र के किसान मुख्य नगदी फसल के रूप में सैकड़ों हेक्टयर क्षेत्र में खेती करते आये है. मक्का फसल पैदावार के लिए जिले के सीमावर्ती क्षेत्र का भूभाग अहम साबित होता आया है. उधर रैक प्वांइट पर मक्का खरीदारी और माल गाड़ियों में मक्का लोडिंग के लिए आने वाले कुछ सप्ताहों में चहल-पहल बढ़ने की उम्मीद है.
दर पर अंकुश रखने की नहीं होती है व्यवस्था
जानकारी अनुसार सरकारी स्तर पर मक्का मूल्य पर अंकुश बनाये रखने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. सरकार के घोषणा अनुरूप स्थानीय स्तर पर मक्का के खरीदारी में अंतर बना रहता है. जिसका नुकसान कृषकों को विवशता में मक्का बेच कर उठाना पड़ता है. खास कर छोटे और साधन विहिन किसानों को तैयार मक्का फसल को बेचने की मजबूरी होती है. खेती कर्ज और आर्थिक लाचारी में किसान बाजार के तय दरों में मक्का बिक्री कर जाते है. किसान कर्ज के गिरफ्त से बाहर नहीं निकल पाते है.
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