अली अहमद, फलका. हात्मा गांधी 1942 आंदोलन के बाद कटिहार जिला के फ़लका प्रखंड स्थित बरेटा गांव पहुंचे थे. यहां उन्होंने आजादी कैंप गांधी भवन में एक रात ठहरकर अपने नजदीकी बैद्यनाथ चौधरी व अन्य सहयोगियों के साथ विचार विमर्श किया था. बापू की इन्हीं यादों को सहजने के लिए बरेटा गांव में गांधी भवन व मदन गोपाल पुस्तकालय का निर्माण किया गया था. भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के हाथों मदन गोपाल पुस्तकालय का उद्घाटन भी हुआ था. इस ऐतिहासिक अनमोल धरोहर को सहजने की बात तो दूर वर्तमान प्रशासन को शायद इसकी जानकारी तक नहीं है. आज प्रशासनिक उदासीनता के कारण यह भवन खंडहर में तब्दील है. गांधीग्राम बरेटा का गौरवमय इतिहास रहा है. आज भी गांधी भवन स्वतंत्रता सेनानी की कुर्बानी की याद ताजा करती है. सन 1947 स्वाधीनता संग्राम के दौरान यहां की भूमि भारतीय वीरों के संघर्ष की गवाह रही थी. राष्ट्रीय पिता महात्मा गांधी, प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद, मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री जैसे शीर्ष नेताओं के चरण धुली से यह गांव पवित्र भी हुआ है. आजादी से पूर्व बने गांधी भवन की स्थिति काफी जर्जर हो गयी है. कभी यह भवन पूर्णिया जिला कमेटी का कार्यालय हुआ करता था. जो बाद में गोकुल कृष्ण आश्रम पूर्णिया बना बरेटा गांधी भवन के उत्तर में अंग्रेजों की फौजी छावनी थी. आजादी के लड़ाई के दौरान अंग्रेजों से लूटे गये हथियार इसी भवन में रखे जाते थे. बरेटा कैंप ने आजादी की लड़ाई में मुख्य भूमिका निभायी थी. सीमांचल का यह मुख्य केंद्र था. बापू ने इस कैंप का दायित्व बैद्यनाथ बाबू को सौंपा था. यहां महात्मा गांधी, आचार्य विनोबा भावी, जयप्रकाश नारायण सहित कई वरिष्ठ नेताओं के साथ विचार विमर्श किया था. आजादी के बाद उपराष्ट्रपति कृष्णकांत सिंह, मुख्यमंत्री डॉ कृष्णा सिंह व अन्य महापुरुष गांधी भवन आये थे. देवगंत बैद्यनाथ बाबू के उत्तराधिकारी 77 वर्षीय पौत्र भावनाथ चौधरी ने बताया कि हर बार प्रशासन से इस ऐतिहासिक धरोहर सहित भूदान कमेटी की 24 एकड़ तीन डिसमिल भूमि दबंग के कब्जे से मुक्त करने की मांग की. लेकिन इस दिशा में अब तक कोई पहल नहीं की गयी. बरहाल फलका की धरती स्वतंत्रता सेनानी से भरा पड़ा था. बेरेटा सहित भंगहा, पोठिया, शब्दा, चंदवा गांव के दर्जनों स्वतंत्रता सेनानी देश के आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभायी थी. बरंडी नदी के किनारे अंग्रेजों की कोठी थी. वहां बड़े पैमाने पर नील की खेती की जाती थी. जिसका विरोध नक्षत्र मालाकार के नेतृत्व में फलका के स्वतंत्रता सेनानी ने जमकर विरोध किया था. जिसमें दर्जनों स्वतंत्रता सेनानी जेल गये थे.
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