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ई-वे बिल की सीमा बढ़ाकर तीन लाख करने की जरूरत : चेंबर

चेंबर ने जीएसटी को लेकर आयोजित बैठक के लिए भेजा सुझाव

By Prabhat Khabar News Desk | August 4, 2024 10:45 PM

कटिहार. नॉर्थ ईस्टर्न बिहार चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज ने केन्द्रीय माल सेवाकर एवं उत्पाद शुल्क रांची जोन, पटना की ओर से जीएसटी को लेकर आयोजित बैठक के लिए अपना सुझाव भेजते हुए बिहार में ई-वे बिल की सीमा को बढ़ाकर तीन लाख रुपये करने की जरूरत पर बल दिया. लिखे गये पत्र की जानकारी देते हुए महासचिव भुवन अग्रवाल ने बताया कि नियम 37ए में यह प्रावधान है. जहां कोई आपूर्तिकर्ता किसी व्यक्ति को जीएसटी के तहत कोई वस्तु या सेवा या दोनों की आपूर्ति करता है. उसने उक्त कर अवधि के लिए जीएसटीआर- 3बी रिटर्न दाखिल नहीं किया है. तो क्रेता उक्त खरीद के लिए आईटीसी का दावा करने के लिए पात्र नहीं होता है. क्रेता को सारा आइटीसी वापस करना पड़ता है. वो भी पूरे ब्याज के साथ. इसका खामियाजा खरीदार को नहीं उठाना पड़े. ऐसा कुछ संशोधन किया जाना चाहिए. अगर कोई क्रेता किसी रजिस्टर्ड डीलर से माल खरीदता है. इसका भुगतान बैंकिंग चैनल से करता है. आईटीसी का क्लेम जीएसटीआर-2बी में रिफ्लेक्ट होने के बाद करता है. इसके बावजूद जीएसटी कार्यालय से नोटिस आता है कि आपने जिस डीलर से माल खरीदा है. वह डीलर फॉड है. इसलिए आपका आईटीसी डिसेबल्ड किया जाता है. जबकि उस डीलर को जीएसटी विभाग के द्वारा रजिस्टर्ड किया गया है. इसलिए सेलर को दण्डित किया जाना चाहिए ना कि खरीदार को. जीएसटी को लेकर जो स्क्रूटनी की जाती है या नोटिस की जाती है. वो कंप्यूटर से रेंदुम सलेक्ट होकर फेसलेस की हेयारिंग होनी चाहिए.| ईंट भट्टा उद्योग में खनन विभाग को दिए जानेवाले कर (रोयल्टी) पर वाणिज्य कर विभाग द्वारा 18% जीएसटी की मांग की जा रही है. जो न्यायसंगत नहीं है. कोयले के आयात पर ईंट (कच्ची ईंट का निर्माण खुले आसमान के नीचे होता है. बारिश में कच्ची ईंट के गल जाता है. पानी में कोयला बह जाता है. जो उत्पादन की गणना को प्रभावित करता है. ऐसे में मनमाने तरीके से अत्यधिक टैक्स की जवाबदेही बनाकर वाणिज्य कर विभाग द्वारा वसूली की जा रही है. गणना एवं कर वसूली को न्यायसंगत बनाने की आवश्यकता है. 53वीं जीएसटी काउन्सिल की बैठक में लिये गये फैसले अंडर सेक्शन 73 में सत्र 2017-18 से लेकर 2019-20 तक में ब्याज और जुर्माना को हटाने की बात की गयी है. इस सन्दर्भ में कहना है कि जिन व्यापारियों ने वर्णित अवधि में कर के साथ ब्याज और जुर्माना भी जमा कर दिया है तो वह राशि व्यापारियों को मिलने का क्या प्रावधान होगा. कई व्यापारी किसी कारणवश पिछला जीएसटी रिटर्न दाखिल नहीं कर पाए हैं. ऐसे व्यवसायियों के लिए रिटर्न दाखिल करने के लिए तय जुर्माना राशि 50/- रुपये प्रतिदिन को घटाकर एक निश्चित न्यूनतम राशि जुर्माना लेकर व्यापार करने का मौका उपलब्ध कराया जाना चाहिए. एक लाख या उससे अधिक मूल्य का माल खरीदगी पर जीएसटी कानून के तहत ई-वे बिल की आवश्यकता होती है. व्यवहार में देखा गया है कि छोटे एवं मझले व्यापारी समूह बनाकर स्थानीय मालवाहक गाड़ी से सामूहिक खरीदकर परिवहन करते हैं. इसी क्रम में विभागीय चेकिंग के दौरान ई-वे बिल की मांग की जाती है. जबकि परिवहन माल प्रत्येक व्यापारी का एक लाख से कम का होता है. ऐसी स्थिति में जुर्माना होने पर छोटे एवं मझले व्यापारियों पर अतिरिक्त भार पड़ता है. इस कानून को और अधिक व्यावहारिक बनाने की आवश्यकता है. कम्पोजीशन स्कीम में टर्न ओवर पर 1% जीएसटी लगता है. जिसको घटाकर 0.50% किया जाना चाहिए. महासचिव ने आग्रह करते हुए व्यवसायियों और संबंधित अधिवक्ताओं से मिले सुझावों को बैठक में प्रमुखता के साथ रखने की मांग की है.

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