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आज मां दुर्गा के चौथे स्वरूप कुष्मांडा की होगी पूजा

मां दुर्गा की पूजा-अर्चना में डूबे लोग, नवरात्र के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की हुई पूजा

कटिहार. जिले में आहिस्ता-आहिस्ता मां दुर्गा की पूजा-अर्चना को लेकर उत्साह का माहौल बनता जा रहा है. यूं तो श्रद्धालु नवरात्र की पहली पूजा से ही मां की भक्ति में लीन हो चुके है. पर श्रद्धालुओं के अलावा आम लोगों में मां दुर्गा की पूजा-अर्चना को लेकर उत्साह बढ़ता जा रहा है. एक ओर जहां पूजा पंडाल एवं सार्वजनिक दुर्गा मंदिर को सजाया संवारा जा रहा है. दूसरी तरफ मां दुर्गा की प्रतिमा को भी अंतिम रूप देने की तैयारी चल रही है. ऐसे में लोगों में उत्साह होना लाजमी है. दुर्गापूजा को लेकर नये परिधानों की खरीददारी भी जोर शोर से चल रही है. अपने-अपने आर्थिक संपन्नता के आधार पर लोग अपने तथा परिजनों कपड़े की खरीददारी कर रहे है. इस बीच शनिवार को नवरात्र के तीसरे दिन श्रद्धालुओं ने मां चंद्रघंटा की पूजा अर्चना पूरे विधि विधान के साथ किया. शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के मंदिर एवं पूजा पंडालों में मां चंद्रघंटा की पूजा अर्चना को लेकर भीड़ लगी रही. अहले सुबह से ही लोग अनुष्ठान की तैयारी में जुट गये. जबकि रविवार को नवरात्र के चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा अर्चना की तैयारी की जा रही है. आरती में उमड़ रही है भीड़

नवरात्रा को लेकर पूरा माहौल भक्तिमय में हो गया है. शहर के सार्वजनिक दुर्गा मंदिर व मिरचाईबाड़ी स्थित सर्वमंगला मंदिर में दिन भर पूजा-अर्चना को लेकर तांता लगा रहा. बड़ी संख्या में श्रद्धालु दुर्गा पाठ कार्यक्रम में सम्मिलित हो रहे है. दूसरी तरफ संध्या में महाआरती में भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु सम्मिलित होते है. नवरात्र को लेकर जिले का पूरा वातावरण भक्ति में हो गया है. शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के खानपान के प्रतिष्ठानों में भी बदलाव दिखने लगा है. अधिकांश व्यंजन बगैर लहसुन प्याज के बनाये जा रहे है.

आज होगी मां कुष्मांडा की पूजा

नवरात्र के चौथे दिन रविवार को मां दुर्गा के कुष्मांडा स्वरूप की पूजा-अर्चना होगी. ऐसी मान्यता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब कुष्मांडा देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी. अपनी मंद-मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की उत्पत्ति करने के कारण ही इन्हें कुष्मांडा के नाम से जाना जाता है. इसलिए ये सृष्टि की आदि-स्वरूपा- आदिशक्ति के रूप में प्रसिद्ध है. बताया जाता है कि मां कुष्मांडा का निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है. जहां निवास कर सकने की क्षमता व शक्ति केवल उन्हीं में है. इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य के समान ही अलौकिक है. माता के तेज व प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित होती है. ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में मौजूद तेज मां कुष्मांडा की छाया है. मां कुष्मांडा की आठ भुजाएं है. इसलिए मां कुष्मांडा को अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है. इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है. आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है.

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