लाभकारी सिद्ध हो रहा दियारा के बालू रेत पर लगने वाला तारबूज का खेती
watermelon cultivation
कुरसेला. नदियों के क्षारण बालू रेत पर नगदी फसल के रूप में तरबूज की खेती किसानों को लिए वरदान साबित हो रहा है. दियारा क्षेत्र के भूभाग पर उपयुक्त भूमि जलवायु होने से किसान इस खेती को अपना रहे हैं. बालू रेत पर विपरित हालातों में कड़ी मेहनत सिंचाई खाद का प्रयोग कर किसान खेती को फलित कर लाभ उठाने का कार्य करते हैं. तकरीबन तीन माह के खेती में मौसमी फल तरबुज बिक्री के लिये तैयार हो जाता है. कृषकों से मिली जानकारी के अनुसार खेती पर प्रति एकड़ तीस हजार के लागत खर्च पर लगभग साठ हजार या उससे अधिक का लाभ मिलता है. किसानों को खेतों में फल के तैयार होने पर बाजार तक लाने में बड़ी परेशानी उठानी पड़ती है. नाव पर फलों को लेकर नदियों को पार करना पड़ता है. उसके बाद ट्रैक्टरों पर लाद कर बाजार तक बिक्री के लिये लाना पड़ता है. इस बीच किसानों को आर्थिक मानसिक रुप से परेशानियों का सामना करना पड़ता है. किसानों से मिली जानकारी के अनुसार तारबूज का फल थोक रुप से पांच से लेकर बीस रुपया प्रति किलो के दर से बिक्री होता है. स्थानीय स्तर पर फल का सीमित बाजार होता है. बाजार में फल का अधिक आवक होने से व्यापारियों किसानों द्वारा इसे नेपाल से लेकर देश प्रदेश के शहरों तक बिक्री के लिये भेजा जाता है. बताया जाता है कि फल के तैयार होकर पकने के बाद प्रतिदिन पच्चीस से पच्चास ट्रैक्टर तारबूज कुरसेला बाजार में बिक्री के लिये आता है. बाजार मांग से कई गुणा अधिक फलों के आने पर इसे कुरसेला से बाहर ट्रकों, पिकअप मालवाहक से बिक्री के लिये भेजा जाता है. जिम्मी रोड लाइन के ट्रांसपोर्टर सज्जाद अली ने बताया कि प्रतिदिन पांच से दस ट्रक तारबूज बिक्री के लिये नेपाल, कोलकाता, धुलांग, बरगछिया, पानागढ़, आसनसोल, उड़ीसा, झारखंड के रांची, छत्तीसगढ़, रायपुर, राजस्थान आदि जगहों पर ट्रकों से मंडी में बिक्री के लिये भेजा जाता है. इसी तरह प्रतिदिन छोटे पिकअप मालवाहक वाहन से गया, छपरा, बलिया, खगड़िया, बेगुसराय, मधेपुरा, सहरसा, सुपौल, अररिया बिक्री के लिये भेजा जाता है. तारबूज फल का एक माह के करीब तक बाजार में आवक बना रहता है. बताया गया कि अगामी एक पखवाड़े के करीब तक बाजारों में इस फल का आवक बना रहेगा.
गंगा, कोसी के क्षारण दियारा क्षेत्रों में होती है खेती
नदियों के क्षारण बालू रेत के साथ दियारा के बलधुसर भूमि पर तारबूज सहित ककड़ी, बतिया, खीरा आदि मौसमी फलों के सैकड़ों एकड़ क्षेत्र के भुभाग पर मौसमी फलों की खेती की जाती है. जानकारी अनुसार जनवरी माह में किसान बीजा रोपन कर तारबूज पौध लगाते हैं. पिछात में कुछ किसान फरबरी माह में इसका पौधा लगाते हैं. मार्च से अप्रैल माह तक इसका फल तैयार हो जाता है. तकरीबन ढाई से तीन महीने में खेती का फल बिक्री के लिये तैयार हो जाता है.गर्मियों में तारबूज सुपरफूड
तारबूज का फल गर्मियों में राहत दायक सुपरफुड माना जाता है. जानकारी अनुसार इस फल में 92 प्रतिशत पानी होता है. प्यास, भूख को राहत देने के स्वाद में मीठा होता है. अन्य मौसमी फलों के तरह इस फल की अलग महत्ता और मांग होती है. गर्मी के मौसम में इस फल को लोग बड़े चाव से खाते हैं. ठंडा कोल्ड ड्रिंक से इस फल का प्रयोग स्वास्थ्य के दृष्टी से बेहतर होता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है