कटिहार. सदर अस्पताल के नये भवन हाल में बुधवार को जिला स्वास्थ्य विभाग की ओर से विश्व सिकल सेल दिवस मनाया गया. इस मौके पर सिकल सेल के बारे में लोगों को जागरूक करते हुए इसकी पहचान और रोकथाम को लेकर लोगों को जन जागरूक किया गया. कार्यक्रम का उद्घाटन सदर विधायक तारकिशोर प्रसाद, सिविल सर्जन डॉ जितेंद्र नाथ सिंह, डॉ जेपी सिंह ने संयुक्त रूप से फीता काट कर किया. इस मौके पर अस्पताल उपाधीक्षक डॉ आशा शरण, गुणवत्ता सलाहकार डॉ किसलय के अलावा सदर अस्पताल के कई डॉक्टर अस्पताल मैनेजर चंदन कुमार सिंह आदि उपस्थित रहे. मौके पर विधायक तारकिशोर प्रसाद ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिकल सेल जैसी घातक बीमारी को काबू पाने के लिए प्रतिबद्ध है. उनके द्वारा राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन शुरू किया गया है. पूरे देश को सिकल सेल जैसी बीमारी से उन्मूलन को लेकर कार्य किये जा रहे हैं. मौके पर सिविल सर्जन डॉ जितेंद्र नाथ सिंह ने कहा की दुनिया भर में हर साल 19 जून को वर्ल्ड सिकल सेल डे मनाया जाता है. यह रेड ब्लड सेल डिसऑर्डर से जुड़ी एक बीमारी है. जो खून में मौजूद हीमोग्लोबिन को बुरी तरह प्रभावित करती है. ऐसे में बॉडी में रेड ब्लड सेल्स की कमी हो जाती है और सेहत के लिए गंभीर खतरा पैदा हो जाता है. इस बीमारी में लाल रक्त कोशिकाओं का आकार बिगड़ जाता है. सिविल सर्जन ने बताया की यह एक जेनेटिक ब्लड डिसऑर्डर होता है, जो लाल रक्त कोशिकाओं (आरबीसी) को प्रभावित करता है. ऐसे में आरबीसी की कमी देखने को मिलती है. जिससे शरीर के अंगों को ठीक तरह से ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती है. इसमें रेड ब्लड सेल्स की शेप बिगड़ जाती है और शरीर को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन भी नहीं मिल पाता है. क्योंकि हीमोग्लोबिन में असामान्य (एचबी) चेन बन जाती है. इसके वजह से सिकल सेल एनीमिया, सिकल सेल थैलेसीमिया जैसी कई बीमारियां अपनी चपेट में ले लेती हैं. इसलिए जरूरी है कि वक्त रहते ही इसका इलाज करा लिया जाय. मौके पर डॉ जेपी सिंह ने कहा कि सिकल सेल बीमारी के लक्षण हड्डियों-मांसपेशियों का दर्द हाथ-पैरों में सूजन थकान और कमजोरी एनीमिया के कारण पीलापन किडनी की समस्याएं बच्चों के विकास में बाधा, आंखों से जुड़ी दिक्कतें इन्फेक्शन की चपेट में आने के लक्षण है. सिकल सेल डिजीज से बचाव के लिए सबसे पहले इसके कारणों को समझना बेहद जरूरी है. ज्यादातर केस में यह बीमारी अनुवांशिक कारणों के चलते होती है. यानी अगर माता-पिता या दोनों में से कोई एक भी इसकी चपेट में है, तो बहुत हद तक बच्चे में भी इसके ट्रांसफर होने का रिस्क रहता है. इस बीमारी के जीन के एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ट्रांसफर होने की बड़ी आशंका रहती है. इसके अलावा इस बीमारी के लक्षणों को भूलकर भी अनदेखा न करें. तुरंत नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में अपनी जांच करायें.
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