तीन वर्षों में मात्र 1582 सौ बच्चियों को मिला लाभ
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जिले में कन्या सुरक्षा योजना को नहीं मिल रही गति
तीन वर्षों में मात्र 1582 सौ बच्चियों को मिला लाभ बैंक व आंगनबाड़ी केंद्र की भूमिका पर सवाल बैंक ने अब तक 12 हजार 978 फॉर्म कराया उपलब्ध आंगनबाड़ी केंद्रो ने जमा किया 3229 फॉर्म खगड़िया : जिले में एक महत्वपूर्ण योजना की अनदेखी हो रही है. गरीब घरों में जन्म लेने वाली बच्चियेां के […]
बैंक व आंगनबाड़ी केंद्र की भूमिका पर सवाल
बैंक ने अब तक 12 हजार 978 फॉर्म कराया उपलब्ध
आंगनबाड़ी केंद्रो ने जमा किया 3229 फॉर्म
खगड़िया : जिले में एक महत्वपूर्ण योजना की अनदेखी हो रही है. गरीब घरों में जन्म लेने वाली बच्चियेां के लिए करीब 3 वर्ष पूर्व संचालित कन्या सुरक्षा योजना को गति नहीं मिल पायी है. जिस कारण एक बड़ी संख्या बच्चियों को इस योजना के लाभ से वंचित रहना पड़ रहा है. वित्तीय वर्ष 2014-15 के जुलाई माह से अब तक इस योजना के तहत जो उपलब्धि आई है. वह अच्छी नहीं है. जानकार बताते हैं कि इन तीन वर्षों के दौरान जिले के हजारों गरीब परिवारों में बच्चियां ने जन्म लिया है. लेकिन इस येाजना का लाभ महज 1582 बच्चियों को ही दिया गया है.
क्या है योजना
कन्या सुरक्षा योजना पूर्णरूपेण गरीब घरों में जन्म लेने वाली कन्याओं के लिए है.
सूबे में कन्या भ्रूण हत्या को रोकने, कन्या के जन्म को प्रोत्साहित करने, लिंग अनुपात में वृद्धि लाने एवं जन्म निबंधन को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री कन्या सुरक्षा योजना चलायी गयी है. इस योजना का लाभ बीपीएल परिवार में जन्म लेने वाली कन्याओं को जन्म के एक साल के भीतर निबंधन के बाद दिया जाता है. इस योजना के तहत कन्या के जन्म के समय दो हजार रुपये अनुदान के रूप में यूटीआई म्यूचुअल फंड के चिल्ड्रेन कैरियर बैलेंस्ड प्लान में कन्या के नाम से निवेश कर प्रमाण पत्र उपलब्ध कराया जाता है. कन्या के 18 वर्ष के होने के बाद एक निर्धारित राशि इन्हें दी जाती है. जानकार बताते हैं कि एक परिवार में जन्मी अधिकत्तम देा कन्याओं को ही सीएम कन्या सुरक्षा येाजना का लाभ दिया जाता है.
क्या है उपलब्धि, कौन हैं जिम्मेवार
आंकडों के अनुसार इस जिले में 15 सौ 82 कन्याओं को अब तक लाभ दिया गया है. जबकि 3229 कन्याओं के आवेदन बैंकों के पास भेजे गये थे. जिसके विरुद्ध बैंक ने 1582 को ही प्रमाण दिया है. अगर इस खराब उपलब्धि के जिम्मेवार की बात करें तो बैंक और आंगनबाड़ी केंद्र दोनों ही इसके बराबर जिम्मेवार है. हालांकि ये दोनों विभाग एक दूसरे को ही खराब उपलब्धि के लिए जिम्मेवार बताते हैं. आंगनबाड़ी केन्द्र का तर्क है कि बैंक उन्हें समय पर फार्म उपलब्ध नहीं करा पा रही है.
जिस कारण फॉर्म का अभाव रहता है. वहीं, यूको बैंक का तर्क है कि अब तक बैंक ने सभी सीडीपीओ कार्यालय को इन तीन वर्षों में 12 हजार 978 फॉर्म उपलब्ध कराये गये हैं. जिसे भरकर आंगनबाड़ी केंद्रों के द्वारा जमा ही नहीं कराया गया है. लेकिन हकीकत है कि इन खराब उपलब्धि के लिए दोनों की जिम्मेवार हैं. यह सही है कि बैंक द्वारा उपलब्ध कराये गये 12 हजार 978 फॉर्म को भड़ा नहीं गया. लेकिन जमीनी हकीकत यह भी है कि कई आंगनबाड़ी केंद्रों पर प्राय: फॉर्म का अभाव रहता है. जब बैंक को 32 सौ फॉर्म भरकर दिये गये तो मात्र 15 सौ 82 को ही स्वीकृति पत्र क्यों दिया गया. यह दोनों ओर से की गयी लापरवाही है.
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