मोबाइल से टेलीफोन बूथ के कारोबार ठप

खगड़िया : रेलवे स्टेशन पर संचालित टेलीफोन बूथ अच्छे दिनों की आस में रेलवे स्टेशन पर अब भी बूथ चला रहे दुकानदार बूथ की बिक्री से परिवार चलाना हुआ मुश्किल रेलवे से रहम की आस में अब तक टेलीफोन बूथ चला रहे संचालक(कोट ) टेलीफोन बूथ के संचालक अगर इस बाबत गुहार लगाते हैं तो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 29, 2015 8:59 PM

खगड़िया : रेलवे स्टेशन पर संचालित टेलीफोन बूथ अच्छे दिनों की आस में रेलवे स्टेशन पर अब भी बूथ चला रहे दुकानदार बूथ की बिक्री से परिवार चलाना हुआ मुश्किल रेलवे से रहम की आस में अब तक टेलीफोन बूथ चला रहे संचालक(कोट ) टेलीफोन बूथ के संचालक अगर इस बाबत गुहार लगाते हैं तो वरीय अधिकारियों के मार्गदर्शन के अनुसार आगे की कार्रवाई की जायेगी. –

प्रवीण कुमार, स्टेशन प्रबंधक. खगड़िया प्रतिनिधि, खगड़िया. एक वो दिन था जब टेलीफोन बूथ पर फोन करने के लिये लंबी लाइन लगी रहती थी. लेकिन अब तो स्थिति ऐसी है कि दिन भर में दो चार ग्राहक भी आ जाये तो गनीमत है.

लोगों के पॉकेट में पहुंचे मोबाइल ने टेलीफोन संचालक को भूखे मरने को मजबूर कर दिया. अब तो भूले-भटके लोग ही बूथ पर बात करने के लिये पहुंचते हैं. साथ ही बूथ चलाने वाले दुकानदार को खाने के लाले पड़े हैं. अधिकांश टेलीफोन बूथ तो अब बंद हो चुके हैं.

रेलवे से रहम की आस खगड़िया रेलवे स्टेशन पर पिछले 20 वर्षों से टेलीफोन बूथ चलाने वाले दुकानदार ने बताया कि संजीव कुमार ने बताया कि अब तो स्थिति ऐसी हो गयी है कि दुकान का किराया तक नहीं निकल पाता है. आने वाले दिनों में रेलवे की रहम से कुछ होने की उम्मीद पाले दुकान को अब तक ढो रहे दुकानदार ने पुराने दिनों की याद ताजा करते हुए बताया कि पहले फोन करने के लिए बूथ पर मारामारी की स्थिति रहती थी लेकिन अब कभी-कभार कोई आदमी इधर का रुख करते हैं.

जिसके कारण पेट पालना भी मुश्किल है. मोबाइल का आया जमाना एक वह दिन था जब बूथ पर सगे संबंधियों से बात करने के लिये लोग कतार में खड़े रह कर अपनी बारी का इंतजार करते थे. एक आज का समय है कि हर घर में मोबाइल है और मिनटों में दिल्ली, मुंबई में रह रहे संबंधियों से बात कर लेते हैं.

1996 के पूर्व जिले के पान दुकान एवं टेलीफोन बूथ कॉर्नर लगभग 900 था. लेकिन मोबाइल का संचार होते ही टेलीफोन से बात करने वाले ग्राहक में धीरे धीरे कमी आती गयी और आज जिले के किसी भी प्रखंड में बूथ नहीं दिखते. टेलीफोन बूथ मालिक अपना व्यवसाय बदलने को मजबूर हो रहे हैं. कभी बूथ पर लगती थी लाइन वर्ष 1996 के पूर्व एक टेलीफोन बूथ पर प्रतिदिन सैकड़ों ग्राहक द्वारा देश विदेश बात करवाया जाता था. एक दुकानदार की मानें तो उस वक्त प्रतिदिन चार से पांच हजार रुपये तक की बिक्री हो जाती थी. लेकिन अब तो चाय पान का खर्चा भी नहीं निकल पाता है.

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