खगड़िया : जिले के सभी प्रखंड के लोग दूषित जल का सेवन करने को मजबूर हैं. हालांकि सरकार द्वारा लोगों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए कई प्रकार की योजनाएं चलायी गयी. जिले के सातों प्रखंड में जलमीनार का निर्माण भी कराया गया. लेकिन एक भी जलमीनार से शुद्ध पेयजल लोगों को नसीब नहीं हो रहा है.
यानी यह कहा जाये कि करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी जलमीनार से एक बुंद शुद्ध पानी नहीं टपक रहा है तो यह ज्यादा नहीं होगा. दूसरी तरफ कोई लाख-दो लाख रुपये की पूंजी लगा कर शहर के गिने चुने लोग लाखों रुपये प्रत्येक माह की कमाई कर रहे हैं. वह भी बगैर टैक्स दिये हुए.
यानी दोनों ही प्रकार से सरकार को ही नुकसान उठाना पड़ रहा है. जबकि जमीन से पानी निकाल कर उसका सरकार को बगैर टैक्स दिये व्यवसाय करना अपराध की श्रेणी में आता है.जिले में लगाये गये हैं दर्जनों प्लांटजिले में ऐसे दर्जनों प्लांट हैं. जिनकी सरकार के उदासीनता के कारण बल्ले-बल्ले हो रही है. यहां जार से पानी का व्यवसाय हो रहा है.
एक जार का 30 से 40 रुपया व्यवसायी आम लोगों से वसूल कर रहे हैं. जबकि लागत बड़ी मुश्किल से 5 से 7 रुपये होगी. इसके अलावा ले जाने तथा ले आने का खर्च भी उसमें जोड़ा जाता है. यह पानी लोगों को सिक्योरिटी मनी दिये जाने के बाद दिया जाता है.किसने कहा पीने योग्य है पानीक्या आप जानते हैं कि आप जिस पानी को स्वच्छ जल समझ कर खरीद रहे हैं,
वह आपके सेहत के लिए नुकसानदेह भी साबित हो सकता है. जिस पानी को आप मिनीरल वाटर समझ कर खरीद रहे हैं उसका सत्यापन किस विभाग ने किया है. यह जानने का आपका अधिकार है. उसमें कौन सा तत्व की मात्रा कितनी होनी चाहिए इसका उल्लेख भी नहीं रहता है. जानकारी के अनुसार दर्जन भर से अधिक लोग इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं.
लेकिन किसी के भी उत्पाद पर इस बात की जानकारी नहीं रहती है साथ ही न तो पानी के जांच की जानकारी ही लोगों को दी जाती है.क्यों बंद पड़ा है जलमीनारसवाल यह भी है कि जब सरकार ने करोड़ों रुपये की लागत से जलमीनार का निर्माण कराया तो वह बंद क्यों है. आखिर जब जलमीनार बना तो उसके साथ अन्य योजनाएं भी क्रियान्वित हुई होंगी. तो उसे पूरा क्यों नहीं किया गया.
कभी इसकी जांच क्यों नहीं की गयी. कुछ जगहों पर जलमीनार से पानी की आपूर्ति हो भी रही है तो वहां गंदा पानी निकल रहा है. जिस वजह से लोग उस पानी का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं.वर्ष 2012 में हुआ था सर्वेवर्ष 2012 में एक संस्था ने जिले में विभिन्न स्थानों पर जाकर जमीन से निकलने वाले पानी में आर्सेनिक तथा आयरन की मात्रा की जांच की थी.
इस दौरान जितने भी चापानल से ये दोनों चीजें अधिक मात्रा में निकल रही थी, वहां से लोगों को पानी पीने की मनाही कर दी गयी. इसमें गंगा किनारे का इलाका परबत्ता, कोसी किनारे का इलाका चौथम, बेलदौर तथा खगडि़या के अलावा अलौली को भी पानी के मामले में दूषित क्षेत्र माना गया था. कुछ दिनों तक लोग चिह्नित स्थान से पानी का इस्तेमाल बंद रखे.
उनलोगों ने सोचा की सरकार उनलोगों के लिए कोई विशेष व्यवस्था करेगी. लेकिन जब कोई व्यवस्था नहीं की गयी तो फिर से उसी चापानल के पानी का इस्तेमाल करने लगे. मानसी, महेशखूंट व गोगरी में भी खूब बिक रहा है सिलबंद पानी प्रखंड क्षेत्र में आयरन युक्त पानी के सेवन से हो रहीं परेशानियों की वजह से सीलबंद पानी का कारोबार काफी फल फुल रहा है.
प्रखंड में भी वाटर प्लांट खुल रहे है. पिछले कुछ सालों से सीलबंद पानी की शुरुआत आज घर घर तक होने लगा है. इसके अलावे शादी विवाह सहित अन्य कार्यक्रमों के अलावे व्यवसायिक प्रतिष्ठनों में सीलबंद पानी का उपयोग किया जाने लगा है. इसमेें सीलबंद पानी का कारोबार लाखों में पहुंच गया है. छोटे से इस प्रखंड में कई लोग इस कारोबार से जुड़ कर अपना जीविका चला रहे है. सूत्रों के अनुसार वाटर प्युरि फायर प्लांट लगाने में लगभग पांच लाख की लागत आती है.
जबकि मुनाफा कई गुणा अधिक होता है. प्रखंड के पानी में आयरन की मात्रा अधिक रहने के कारण लोग पेट की बीमारी सहित कई अन्य बीमारियों के शिकार हो रहे है. हो रही है बीमारी चिकित्सक प्रेम कुमार ने बताया कि अशुद्ध जल के सेवन से कब्ज ,गैस ,पाचन शक्ति कमजोर, भुख की कमी जैसी कई बीमारी के शिकार हो सकते है .
आज के दौर में 60 प्रतिशत लोगों को इस तरह की परेशानी देखी जा रही है.कहते हैं चिकित्सक वहीं दंत चिकित्सक डॉ देव व्रत कुमार ने बताया कि बताया कि आयरन युक्त जल के सेवन से दांत में पीला पन एवं अन्य रोग हो जाते है. जिससे दांत कमजोर हो जाता है.