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बाबा साहेब के सपनों को साकार कर रहा सुमित

बाबा साहेब के सपनाें को साकार कर रहा सुमित फोटो. 11 में कैप्सन. सुमित कुमार ————अंधेरी गली में रोशनी बन कर आया सुमित, दलितों की बस्ती में जला रहा शिक्षा का लौ दलित परिवारों के बीच शिक्षा की रोशनी फैला कर बांट रहा ज्ञान दलित बहुल अम्बाटोला गांव में अब खेतों में नहीं, स्कूल जा […]

बाबा साहेब के सपनाें को साकार कर रहा सुमित फोटो. 11 में कैप्सन. सुमित कुमार ————अंधेरी गली में रोशनी बन कर आया सुमित, दलितों की बस्ती में जला रहा शिक्षा का लौ दलित परिवारों के बीच शिक्षा की रोशनी फैला कर बांट रहा ज्ञान दलित बहुल अम्बाटोला गांव में अब खेतों में नहीं, स्कूल जा रहे बच्चे दलित उत्थान के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए सुमित को मिला डॉ आंबेडकर राष्ट्रीय फेलोशिप सम्मान नयी दिल्ली में हुए समारोह में कुमरचक्की गांव के सुमित को सम्मान मिलने से खगड़िया में खुशी ————असहाय व मानसिक रूप से पिछड़े लोगों के बीच शिक्षा की रोशनी जला कर उन्हें मुख्यधारा से जोड़ना ही अब मेरी जिंदगी का मकसद है. इसके लिए वह जी-जान से जुटे हैं. आप आकर देख लीजिये, अब अंबाटोला के दलित बच्चे खेतों में नहीं स्कूल में ककहरा सीख रहे हैं. सुमित कुमार, डॉ आंबेडकर फेलोशिप सम्मान प्राप्त शिक्षक. सुमित की कोशिश का नतीजा है कि अंबाटोला के अधिकतर दलित बच्चे स्कूल आ रहे हैं. इनकी प्रेरणा से ही यहां के बच्चे व अभिभावक शिक्षा के प्रति जागरूक हुए हैं. सुमित के जज्बे से दूसरे शिक्षकों को भी सीख लेने की जरूरत है, जो अंधेरी गलियों में शिक्षा की रोशनी जला कर अंधेरा मिटाने में लगे हुए हैं. अशोक पासवान, प्रधानाध्यापक, प्राथमिक विद्यालय अंबाटोला. —————-प्रतिनिधि, खगड़ियाबड़े शहरों की नौकरी छोड़ कर खगड़िया के दुर्गम इलाकों में शिक्षा की लौ जलाने की ललक ने सुमित को आज आम से खास बना दिया है. आज वह बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर के सपनों को साकार करने में जी-जान से लगे हुए हैं. उनकी मेहनत रंग लायी है. कल तक खेतों में माता-पिता का हाथ बंटाने वाले दलित बच्चे अब स्कूल में ककहरा सीख रहे हैं. खगड़िया के कुमरचक्की निवासी सुमित की लगन को देखते हुए उन्हें इस वर्ष का डॉ अंबेडकर राष्ट्रीय फेलोशिप सम्मान से नवाजा गया है. दलितों के बीच शिक्षा की रोशनी जगा कर उन्हें मुख्य धारा में जोड़ने की कोशिश की आज देशभर में चर्चा हो रही है. प्राथमिक विद्यालय अंबाटोला के प्रधानाध्यापक अशोक पासवान कहते हैं कि सुमित द्वारा दलित टोलों में फैलाये गये जागरूकता के कारण आज विद्यालय में बच्चों की संख्या दोगुनी हो गयी है. —————बड़े शहरों की नौकरी छोड़ गांव आया सुमित भागलपुर विश्वविद्यालय से शोध कर रहे कुमरचक्की गांव निवासी सुमित का दलिताें व पिछड़ों के प्रति प्रेम जगजाहिर रहा है. झारखंड के जमशेदपुर सहित राजधानी में शिक्षक की नौकरी से सुमित की जिंदगी मजे से कट रही थी. पर, गांव की अंधेरी गलियों में शिक्षा की रोशनी फैलाने की जिद ने उन्हें नौकरी छोड़ने पर मजबूर कर दिया. बड़े शहर की नौकरी छोड़ सुमित गांव चले आये. यहां शिक्षक के पद पर नौकरी भी लग गयी. वह बताते हैं कि उनके गांव से करीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर अंबाटोला गांव दलित बहुल है. पर, यहां शिक्षा के प्रति उदासीनता कायम रहने के कारण दलित परिवारों की जिंदगी मुश्किलों भरी रही है. यहां सात से आठ वर्ष की उम्र में बच्चों को स्कूल भेजने की बजाय अभिभावक अपने साथ खेतों में काम पर ले जाने लगते हैं. इन सारी बाधाओं के बीच सुमित ने दलित बस्ती में शिक्षा की रोशनी फैलाने की ठानी और जागरूकता फैलाना शुरू किया. थोड़ा प्यार, थोड़ा दुलार देने की जरूरत कहते हैं अंधेरे को कोसने से अच्छा है एक दीपक जला देना. दलितों के गांव में जाकर अभिभावकों को समझाना काफी कठिन काम था. पर, सुमित ने हार नहीं मानी. इस दौरान लोगों ने उनका मजाक भी बनाया, लेकिन वह अपने मिशन पर अडिग रहे. गांवों में घूम-घूम कर अभिभावकों को समझाने के दौरान कई बातें सामने आयीं. सुमित बताते हैं कि दलित परिवारों में अशिक्षा सारी समस्याओं की जड़ है. इस कलंक को शिक्षा की रोशनी फैला कर ही मिटाया जा सकता है. अभिभावकों को शिक्षा की अहमियत बताते हुए बच्चों के भविष्य से सपने बुने गये. वे बताते हैं अब तक असहाय व मानसिक रूप से पिछड़े इन परिवारों को ‘कुछ दुलार, थोड़ी राहत, थोड़ी चाहत और थोड़े प्यार की जरूरत है.’ तब जाकर हम लोग बाबा साहेब अंबेडकर के सपनों को साकार कर पायेंगे. इधर, सुमित की कोशिशें रंग लायीं. कल तक खेतों में हाथ बंटाने वाले मासूम बच्चों के हाथ अब स्लेट और पेंसिल है. इस गांव के अधिकांश दलित बच्चे अब खेतों में काम पर नहीं जाते, बल्कि स्कूल में ककहरा सीख रहे हैं. कुछ महीने पहले तक इस स्कूल में करीब 60 बच्चाें का नामांकन था. अब इस विद्यालय में ढाई गुना ज्यादा बच्चे स्कूल आ रहे हैं. इसमें से अधिकांश दलित वर्ग से आते हैं.

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