मकर संक्रांति को ले उमड़ी भीड़

मकर संक्रांति को ले उमड़ी भीड़प्रतिनिधि, खगड़ियामकर संक्रांति को लेकर सारी तैयारियों पूरी कर ली गयी हैं. सभी तबके के लोग इस त्योहार को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं. गुरुवार को त्योहार के लिए खरीदारी को लेकर बाजार में लोगों की भीड़ लगी रही़ फरकिया इलाका दूध-दही के लिए एक अलग पहचान रखता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 15, 2016 6:42 PM

मकर संक्रांति को ले उमड़ी भीड़प्रतिनिधि, खगड़ियामकर संक्रांति को लेकर सारी तैयारियों पूरी कर ली गयी हैं. सभी तबके के लोग इस त्योहार को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं. गुरुवार को त्योहार के लिए खरीदारी को लेकर बाजार में लोगों की भीड़ लगी रही़ फरकिया इलाका दूध-दही के लिए एक अलग पहचान रखता है. मकर संक्रांति को सूखा पर्व भी कहते हैं, क्योंकि घर-घर में लोग दो दिनों तक दही, चूड़ा, तिलकुट, तिलवा, गुड़ आदि खाते हैं तथा चूल्हे नहीं जलाते हैं.विलुप्त हो रही संस्कृति मकर संक्रांति के मौके पर एक विशेष परंपरा देखने को मिलता थी, जो आज विलुप्त हो रही है. जिले के पशु पालक दूध उत्पादन बड़े पैमाने पर करते हैं. मकर संक्रांति के मौके पर अंग की धरती से उपजाऊ सुगंधित चावल का चूड़ा, गन्ने के रस का भूरा, गुड़ आदि अपने रिश्तेदार के यहां लेकर जाते थे. वहीं मिट्टी के बर्तन में जमी हुई दही एवं तिलवा, तिलकुट अपने रिश्तेदार के यहां ले जाते थे. दहीं, चूड़ा, तिलकुट का आदान-प्रदान क्रमश: एक सप्ताह तक चलता था. जो आज देखने को नहीं मिल रहा है. बदलते जमाने ने पुरानी परंपरा को विलुप्त कर दिया. मकर संक्रांति के एक सप्ताह पूर्व से ही बसों, ट्रेनों एवं निजी वाहनों में चूड़ा एवं मिट्टी के बर्तन में दही लेकर लोग अपने रिश्तेदार के यहां ले जाते हुए देखने को मिलते थे. घर के नए रिश्तेदार को मकर संक्रांति का बेसब्री से इंतजार रहता थ. क्योंकि इस मौके पर आदान प्रदान की एक विशेष परंपरा की रस्म अदा होती थी. कई पिता अपनी नवविवाहिता बेटी के यहां मकर संक्रांति के मौके पर मिट्टी के बर्तन में जमे हुए दही को अपने माथे पर लेकर जाते थे. इस पुरानी परंपरा के पीछे मधुर रिश्ते की मजबूती थी. आस पड़ोस सभी अपने रिश्तेदार की उम्मीद लगाए रहते थे. मकर संक्रांति ही एक ऐसा त्योहार है कि सभी तबके के लोग अपने रिश्तेदार को याद करते हैं. लोगों की भाग दौड़ की जिंदगी ने ऐसा मोड़ लिया कि पुरानी संस्कृति सभी विलुप्त हो गए हैं. मकर संक्रांति की तैयारियों लोग एक सप्ताह पूर्व से ही करते हैं. मकर संक्रांति में दूध की खपत काफी मात्रा में होती है. मकर संक्रांति के बाद ठंड कम हो जाती है और प्रकृति नये रूप में प्रवेश करती है. किसानों की लहलहाती फसलें देश की समृद्धि की ओर ले जाती हैं. वहीं आज के बाद से मांगलिक कार्य का श्री गणेश हो जायेगा. मकर संक्रांति पर मलमास का समापन होता है. विवाह, गृह प्रवेश, देव प्रतिष्ठा, गृह निर्माण आदि मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जायेंगे. वहीं विभिन्न गंगा तटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी है.

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