हद है . पल्स पोलियाे अभियान में भी लिया जा रहा बाल मजदूर से काम, अधिकारी बेखबर
बचाना है बच्चों का जीवन कर रहे भविष्य बरबाद बाल श्रम उन्मूलन के तमाम दावों के बीच जिला मुख्यालय में नाबालिग से मजदूरी करवायी जा रही है. पल्स पोलियो अभियान में नाबालिग से खुलेआम काम करवाया जा रहा है. बाल मजदूरी के खुलासे के बाद यूनिसेफ के अधिकारी भले ही जांच कर कार्रवाई की बात […]
बचाना है बच्चों का जीवन कर रहे भविष्य बरबाद
बाल श्रम उन्मूलन के तमाम दावों के बीच जिला मुख्यालय में नाबालिग से मजदूरी करवायी जा रही है. पल्स पोलियो अभियान में नाबालिग से खुलेआम काम करवाया जा रहा है. बाल मजदूरी के खुलासे के बाद यूनिसेफ के अधिकारी भले ही जांच कर कार्रवाई की बात कह रहे हों, लेकिन 150 रुपये की मामूली मजदूरी पर नाबालिग से काम लेने वाले यूनिसेफ के बाबुओं पर क्या कार्रवाई होगी, यह देखने वाली बात होगी.
21 फरवरी से शुरू होने वाले पल्स पोलियो अभियान के प्रचार-प्रसार में बाल मजदूरी पर उठे सवाल
शहरी क्षेत्र में प्रचार-प्रसार के लिए बैनर-पोस्टर लगाने में नाबालिग से करायी जा रही मजदूरी
150 रुपये की मामूली मजदूरी पर विभिन्न जगहों पर 200 पोस्टर चिपकाने में लगायी नाबालिग की ड्यूटी
आठवीं कक्षा में अध्ययनरत रहीमपुर के छोटू ने कहा काम समाप्त होने के बाद मिलती है मजदूरी
खगड़िया : पल्स पोलियो अभियान में बाल मजदूरी का खुलासा होने के बाद खलबली मच गयी है. पूरा मामला 21 फरवरी से शुरू होने वाले पल्स पोलियो अभियान से जुड़ा हुआ है. इसके प्रचार -प्रसार के लिए बैनर-पोस्टर चिपकाने के काम में नाबालिग छात्र से मजदूरी करवायी जा रही है.
मनरेगा में मिलने वाली मजदूरी से भी कम पैसे में आठवीं कक्षा के छात्र रहीमपुर निवासी छोटू कुमार, पिता मुन्ना साह को यूनिसेफ वालों ने काम पर लगा दिया है.बुधवार को सिविल सर्जन कार्यालय की दीवारों पर पोस्टर चिपका रहे नाबालिग छोटू ने बताया काम करने के बाद यूनिसेफ के बीएमसी द्वारा 150 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी दी जाती है.
200 पोस्टर चिपकाओ 150 रुपये मजदूरी पाओ
साइकिल में लटके बाल्टी में गोंद, पोलियो अभियान का पोस्टर लेकर 13 वर्षीय छोटू पूरे शहर में पोस्टर चिपकाने के बाद सीएस कार्यालय पहुंचा था. सीएस कार्यालय की दीवार पर बुधवार की शाम पोस्टर चिपका रहे छोटू ने बताया कि पूरे दिन में 200 पोस्टर चिपकाने के बाद 150 रुपये मजदूरी देने की बात हुई है. बताया कि सुबह से पोस्टर चिपकाने के काम में लगे हुए हैं. अभी शाम के चार बज गये हैं. काम खत्म होने के बाद यूनिसेफ के कर्मी शंभू कुमार मजदूरी का भुगतान करेंगे.
पल्स पोलियो अभियान से पूर्व इसके प्रचार -प्रसार के लिए बड़ी रकम खर्च की जाती है. यूनिसेफ अधिकारी अरशद रिजवी बताते हैं कि शहरी क्षेत्र में अभियान के प्रचार-प्रसार के लिए यूनिसेफ बीएमसी को कार्यभार सौंपा गया है. वही बैनर पोस्टर चिपकाने के बाद मजदूरों को मजदूरी का भुगतान करते हैं.
मजबूरी में इतनी कम मजदूरी… क्या होगा
नाबालिग छोटू ने बताया कि वह रहीमपुर स्थित मध्य विद्यालय में आठवीं कक्षा का पढ़ता है. पिताजी मजदूरी करते हैं. मां घर में रहती है. पिताजी की मजदूरी की रकम से पढ़ना-लिखना सहित परिवार का खर्च चलाना मुश्किल देख वह भी काम पर लग गया है. इसी बीच उसके परिचित दिलखुश कुमार ने पल्स पोलियो अभियान में काम दिलवाने के लिए यूनिसेफ कार्यालय ले गये. वहां पर 150 रुपये मजदूरी में काम करने का निर्देश दिया गया. मजबूरी में स्कूल छोड़ कर काम करना पड़ रहा है.
मजदूरी में कहीं घालमेल तो नहीं
ऐसे में सवाल उठता है आखिर मजबूरी में मजदूरी की रकम मनरेगा से कम दिये जाने के पीछे कोई घालमेल है या सरकार ने इतनी ही मजदूरी निर्धारित कर रखी है. इधर, यूनिसेफ के अधिकारी अरशद रिजवी ने कहा कि विभिन्न इलाकों के लिए मजदूरी की अलग-अलग रकम निर्धारित है. जब उनसे खगड़िया शहर में बैनर पोस्टर चिपकाने के एवज में प्रतिदिन मजदूरी के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि बाद मेंं बतायेंगे.