2007 में पूरा होना था काम
15 साल तक में फरकिया के लोग नहीं सुन पायेंगे रेल की सीटी खगड़िया-कुशेश्वर स्थान रेल निर्माण की यही स्थिति रही तो आगामी 15 साल तक और फरकिया के लोग रेल की सीटी नहीं सुन पाएंगे. फरकिया के लोग 19 साल बीत जाने के बाद भी रेल की सीटी की आवाज नहीं सुन पाये हैं. […]
15 साल तक में फरकिया के लोग नहीं सुन पायेंगे रेल की सीटी
खगड़िया-कुशेश्वर स्थान रेल निर्माण की यही स्थिति रही तो आगामी 15 साल तक और फरकिया के लोग रेल की सीटी नहीं सुन पाएंगे. फरकिया के लोग 19 साल बीत जाने के बाद भी रेल की सीटी की आवाज नहीं सुन पाये हैं. जब खगड़िया कुशेश्वर स्थान रेल परियोजना का सर्वे कार्य 2002 में हो गया था. तब फरकिया के लोगों को रेल की सीटी सुनने की उम्मीद जगी थी. लेकिन परियोजना अभी भी अधूरी है.
खगड़िया : यदि खगड़िया-कुशेश्वर स्थान रेल निर्माण की यही स्थिति रही तो आगामी 15 साल तक और फरकिया के लोग रेल की सीटी नहीं सुन पाएंगे. फरकिया के लोग 19 साल बीत जाने के बाद भी रेल की सीटी की आवाज नहीं सुन पाये हैं. जब खगड़िया कुशेश्वर स्थान रेल परियोजना का सर्वे कार्य 2002 में हो गया था. तब फरकिया के लोगों को रेल की सीटी सुनने की उम्मीद जगी थी. लेकिन अब लोगों में निराशा होने लगी है.
फरकिया क्षेत्र के बच्चे रेल परियोजना का नाम सुनते सुनते अब जवान हो चुके है. लेकिन परियोजना अभी भी अधूरी है. उल्लेखनीय है कि खगड़िया-कुशेश्वर स्थान रेल परियोजना की स्वीकृति 1998 में दी गयी थी. दस साल के बाद वर्ष 2007-2008 में काम शुरू हुआ जो आज तक कच्छप गति से चल रहा है.
रेल परियोजना के पूरा होने में विलंब होने का कारण आवंटन का अभाव बताया जा रहा है. जिसके चलते नतीजा यह हुआ कि सरकारी खजाना से चार गुणा लागत बढ़ने की नौबत आ गयी है. 2007-08 में रेल परियोजना को शुरू करने के लिए महज एक करोड़ रुपये का ही आवंटन मिल पाया था. ऐसे में अगर वर्तमान समय में तेज गति व आवंटन का अभाव नहीं हो तो भी कम से कम चार साल और ट्रेन दौड़ने में समय लग सकता है. जबकि यह परियोजना 9 साल पहले 2007 में ही पूरा हो जाना चाहिए था.
होता रहा है आंदोलन : पूर्वोत्तर बिहार रेल उपभोक्ता संघर्ष समिति के केंद्रीय संयोजक सुभाष चंद्र जोशी, सह संयोजक मांगी लाल शर्मा, युवा संयोजक अभिषेक शर्मा रेलवे की समस्याओं को लेकर बार बार आंदोलन करते रहते है. साथ ही खगड़िया रेलवे स्टेशनों पर ट्रेनों के ठहराव की बात हो या फिर स्टेशनों की समस्याओं को लेकर संघर्षरत है. रेल की समस्याओं की ओर रेल मंत्र का ध्यान आकृष्ट कराते आ रहे है.
जमीन मुआवजा का भी फंसा है मामला : वर्तमान में खगड़िया से कामाथन के बीच रेल लाइन बिछा दिया गया है. इसी बीच 65 पुल पुलिया बनाना है जिसमें 9 बड़े पुल के लिए टेंडर जारी किया जा चुका है. अधिग्रहित जमीन के भूस्वामियों को मुआवजा अब तक नहीं मिला है. जिस कारण यहां कुछ भी काम नहीं हो पाया.
बनाये जायेंगे सात स्टेशन : खगड़िया से कुशेश्वर स्थान के बीच सात रेलवे स्टेशन बनाया जाना है. विशनपुर, अलौली गढ, चेराखेरा, शहरबन्नी, पई, तिलकेश्वर, कुशेश्वर स्थान स्टेशन सहित सात स्टेशन बनाया जाना है. 2012 में ही रेल मंत्रालय ने खगड़िया से अलौली गढ़ तक रेल लाइन बिछा लेने की घोषणा की थी. जो पूरा नहीं किया जा सका.
रामविलास पासवान के गृह जिला में परियोजना भी पूरा नहीं कराई जा सकी. वर्तमान में केंद्र सरकार में मंत्री भी हैं. रेल परियोजना शुरू होने के बाद अब तक 46 करोड़ रुपये ही आवंटित की जा सकी है. जबकि यह रेल परियोजना 19 साल पहले 162 करोड़ की स्वीकृति दी गई थी.
बिहार से तीन रेल मंत्री रहे फिर भी योजना है अधूरी :बिहार से तीन रेल मंत्री बने फिर भी खगड़िया-कुशेश्वर स्थान रेल परियोजना रेल बजट में उपेक्षित ही रही. वर्ष 1998 में तत्कालीन रेल मंत्री रामविलास पासवान इस परियोजना को अपने पैतृक गांव से होते हुए कुशेश्वर स्थान को जोड़ने के लिए स्वीकृति दी थी. इसके बाद नीतीश कुमार व लालू प्रसाद यादव बिहार से रेल मंत्री रह चुके. नीतीश कुमार रेल मंत्री के रूप में तीन रेल बजट प्रस्तुत किया. उसमें भी इस परियोजना पर ध्यान नहीं दिया.
रेल उपभोक्ता संघर्ष समिति के संयोजक सुभाष चंद्र जोशी ने बताया कि खगड़िया-कुशेश्वर स्थान रेल परियोजना निर्माण की यही गति रही तो आगामी 15 साल में यह कार्य पूरा नहीं हो पाएगा. फरकिया के लोगों को रेल की सीटी सुनने में 35 से 40 साल लग जायेंगे. उन्होंने बताया कि यू रेल प्रशासन द्वार 2020 तक लक्ष्य पूरा करने के लिए समय निर्धारित किया गया है लेकिन राशि आवंटन की यही स्थिति रही तो कहना मुश्किल है. यदि रेल विभाग प्रति वर्ष 100 करोड़ रुपये का आवंटन करेगी तो समय पर कार्य पूरा हो सकता है.
किसने दी थी स्वीकृति
1998 में तत्कालीन रेल मंत्री रामविलास पासवान ने 162 करोड़ रुपये के लागत से खगड़िया-कुशेश्वर स्थान रेल परियोजना को स्वीकृति दी थी. 44 किलोमीटर लंबी रेल ट्रैक बिछाया जाना है.
वर्तमान में कामाथान व अलौली गढ़ स्टेशन के बीच निर्माण कार्य चल रहा है. यहां स्टेशन का निर्माण कार्य भी अब तक पूरा नहीं हो पाया है. वहीं शहरबन्नी के पास रेल परियोजना के लिए अधिग्रहीत की गयी जमीन का मुआवजा कई भूस्वामियों को नहीं मिल पाया है.