खगड़िया. खुरहा एवं मुंह पका रोग (एफएमटी) यानी भंजहा (देहाती नाम) की चपेट में आने से पिछले साल जिले के हजारों पशु बीमार पड़े थे. पशुओं के बीमार होने से पशुपालक परेशान हुए थे. भंजहा की चपेट में आने से दुधारु पशुओं में दुग्ध उत्पादन कमी आ जाती है, जिसके कारण पशुपालक के रोजी-रोटी प्रभावित हो जाते हैं. उल्लेखनीय है कि पिछ्ले साल खगड़िया सहित अलौली, मानसी, बेलदौर, चौथम, गाेगरी तथा परबत्ता प्रखण्ड में अच्छी-खासी संख्यां में भंजहा से पशु बीमार पड़े थे. कुछ जगहों से भंजहा बीमारी के कारण नवजात पशु के मौंत होने की बातें सामने आई थी. भंजहा बीमारी का सबसे कारगर इलाज/बचाव टीकाकरण है. ये लक्षण हैं भंजहा बीमारी के.. अन्य पशुओं की तुलना में कहीं अधिक गाय, भैंस, बछड़े भंजहा के चपेट में आते हैं. पशु चिकित्सक डॉ० बिनोद कुमार की माने तो शुरुआत में पशुओं के मुंह व नाक से काफी मात्रा में पानी/लाड़ टपकने लगता है. जिसके बाद पशुओं के मुंह में लाल दाने, पैर में घाव तथा तेज बुखार आ जाता है. मुंह के फोड़े फूटने तक पशु काफी तकलीफ रहता है. मुंह में जख्म/फोड़े की वजह से पशु खा नहीं पाता तथा पैर में घाव रहने के कारण चलने में भी पशु को तकलीफ होती है. चारा नहीं खा पाने या कम खाने की वजह से पशु कमजोर हो जाता है. अगर बीमार पशु दुधारु हो तो दुग्ध उत्पादन भी काफी कम जाते हैं. लाड़ से फैलता है यह बीमारी. बीमार पशु लाड़ से भंजहा फैलता है,जो दूसरे स्वस्थ्य पशु को भी बीमार बना देता है. इसलिये पशुपालक भंजरा रोग से बीमार पशु को अन्य पशु के संपर्क से दूर रखें. बीमार पशु को दूसरे स्वस्थ्य पशु साथ खाना/पानी न दें,एक नदीं/तालाब में न पानी पिलावें और न नहलाए. बीमार पशु का दुघ निकालने वाले चारवाहा से स्वस्थ पशु का दुघ न निकलवावे. क्योंकि इससे दूसरे पशु भी भंजहा की चपेट में आ जाएंगे.भंजगा से बीमार गाय/भैंस का दूघ उनके छोटे बच्चे (बाछा,बाछी,पाड़ा,पाड़ी) को न पीने दें. पशु चिकित्सक बतातें हैं कि बीमार पशु के छोटे बच्चे के लिये उसका दूध जानलेवा साबित हो सकता है. कहा कि बड़े पशुओं के लिये भंजहा जानलेवा नहीं हैं. इस बीमारी से पशुओं को पीड़ा होती है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है