रसोइयों को मिले छह हजार रुपये मानदेय
रसोइयों को मिले छह हजार रुपये मानदेय
क्रांति दिवस पर शुक्रवार को किसानों, मजदूरों, महिलाओं और युवाओं ने सदर अस्पताल चौक से मांगों के समर्थन में मार्च निकाला. विभिन्न मार्ग होते हुए मांगों के समर्थन में नारे लगाते हुए समाहरणालय पहुंचा. बाद में मार्च सभा में तब्दील हो गया. नेताओं ने कहा कि किसानों के लम्बे संघर्षों का ही नतीजा है कि 2024 के आम चुनाव में केंद्र में भाजपा की सरकार जो 400 पार का नारा लगा रही थी. वह स्पष्ट बहुमत से दूर रह गयी. मजबूरन उसे बैसाखी के सहारे सरकार गठन को मजबूर होना पड़ा. कहा कि तीन काले कृषि कानून के खिलाफ पिछले 2020 में चले एक साल से ज्यादा आंदोलन में केंद्र सरकार द्वारा किये गये समझौते. जिसमें खास कर एमएसपी को कानूनी दर्जा देने, मंडी व्यवस्था बहाल करने, किसान आंदोलन के दौरान दिल्ली के बोर्डरों पर मारे गए 750 किसानों को शहीद का दर्ज देने और उनके आश्रितों को मुआवजा देने, लखीमपुर खीरी में आंदोलनकारी किसानों पर केंद्र सरकार के मंत्री को जेल में बंद कर उसे सजा देने, श्रमिकों के खिलाफ चार श्रम कानून को रद्द करने पर बनी सहमति को ठंडे बस्ते में डाल दिया. केंद्र में भी एनडीए और बिहार में भी एनडीए की सरकार है. तो ऐसे में नौवीं अनुसूची में शामिल कराने में बिहार सरकार की क्या मजबूरी है. विशेष राज्य का दर्जा बिहार को क्यों नहीं मिला, नेताओं ने बिहार गिरती हुई कानून व्यवस्था को ठीक करने, महिलाओं पर लगातार यौन उत्पीड़न की घटनाओं पर रोक लगाने, युवाओं को बड़े पैमाने पर रोजगार देने, स्कूली रसोइया को प्रति माह 6000 रुपये मानदेय की मांग की. इसके अलावे बेघर सभी भूमिहीनों को 5 डिसमिल जमीन उपलब्ध कराने एवं जिले भर में वर्षों से बसे भूमिहीनों को तुरंत बासगीत का पर्चा देने की मांग की है.
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