प्राकृतिक आपदा को न तो रोका जा सकता है और टाला जा सकता है, लेकिन विभाग के सुझाव व खुद की समझदारी से इन आपदाओं से बचा जा सकता है या फिर इसे कम किया जा सकता है. हम बात कर रहे हैं वज्रपात की, जिसे गांव-देहातों में लोग ठनका के नाम से अधिक जानते हैं. वज्रपात कहें या फिर ठनका. इस प्राकृतिक आपदा से लोग आये दिन प्रभावित होते रहे हैं. आसमानी बारिश व तेज आंधी के साथ जुलाई-अगस्त महीने के बीच वज्रपात/ठनका गिरता है. ठनका की चपेट में आने से पिछले साल भी जिले में कई लोगों मौतें हुई थी, जबकि कई घायल भी हुए थे. इस साल भी ठनका से मरने का सिलसिला शुरू हो गया है. हादसे के बाद यह बातें सामने आयी है कि वज्रपात से जिनकी भी मौतें हुई है या फिर जो घायल हुए हैं. वो हादसे के दौरान खेत-खलियान या फिर खुले में थे. मतलब घर से बाहर थे. आपदा सलाहकार प्रदीप कुमार ने कहा कि वज्रपात को रोका नहीं जा सकता है, लेकिन इससे बचा जा सकता है. इसके लिए लोगों को आपदा विभाग के द्वारा वज्रपात से बचाव के तौर-तरीकों की प्रर्याप्त जानकारी होना जरूरी है. कहा कि वज्रपात भी ऐसी ही आपदा है, जिससे लोगों की जान-माल को नुकसान होता है. वज्रपात के चपेट में आने से लोगों को जान भी गंवानी पड़ती है. यह स्थानीय प्राकृतिक आपदा ( वज्रपात ) लोगों को समय से पहले मौत के मुंह में धकेल देती है. वज्रपात से हर साल राज्यभर में दर्जनों लोगों की मौत हो जाती है. इस प्राकृतिक आपदा से खगड़िया जिला भी अछुता नहीं है. यहां भी हर साल वज्रपात/ठनका से लोगों की मौत होती रही है और लोग घायल भी हुए हैं.
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