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किसानों को नहीं मिल रही है मक्का की वाजिब कीमत

किसानों को नहीं मिल रही है मक्का की वाजिब कीमत

गोगरी. अनुमंडल क्षेत्र व आसपास के इलाके में पीला सोने के नाम से विख्यात मक्का की उचित कीमत नहीं मिलने से किसान अपने आप को काफी ठगा महसूस कर रहे हैं. मक्का की कीमत कम रहने से किसानों को लागत मूल्य भी निकालना असंभव दिख रहा है. लिहाजा मक्का उत्पादक किसान जहां दिनों दिन आर्थिक रूप से कमजोर होकर कर्जदार होते जा रहे हैं. वहीं नगदी फसलों में शुमार मक्का की खेती से किसानों का मोह भंग होता जा रहा है. किसानों का कहना है कि अनुमंडल सहित जिले के सीमावर्ती मुंगेर जिले के दियारा इलाके में 75 किसान आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए मक्का की वृहत पैमाने पर खेती करते हैं. हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में मक्के की खेती के प्रति किसानों का रुझान काफी बढ़ा है. अन्य फसलों के मुकाबले अधिक लाभ के कारण मक्का खेती में लगातार बढ़ोतरी भी हो रही है. लेकिन फसल तैयारी के समय मक्का उत्पादक किसानों को अपने उत्पाद की बिक्री करने के लिए नजदीक में बड़ी मंडी उपलब्ध नहीं है. वहीं मक्का आधारित कोई भी उद्योग स्थापित नहीं रहने से किसानों की परेशानी काफी बढ़ गयी है. किसान दिन रात मेहनत करके व्यापक पैमाने पर मक्का की बेहतर उपज प्राप्त करने के बावजूद भी किसानों को वाजिब कीमत नहीं मिलने से वे काफी हताश हैं. इससे नगदी फसल के रूप में चर्चित मक्का की खेती से किसानों का मोह भंग होता जा रहा है. इतनी कड़ी मेहनत के बावजूद मक्का का उचित भाव नहीं मिलने से दिनों दिन आर्थिक रूप से कमजोर होते जा रहे हैं. अधिकांश किसानों के पास अपने उत्पाद के भंडारण के लिए कोई भी समुचित व्यवस्था नहीं है. इस वजह से किसान खासकर मक्का फसल को अपनी खेत में एवं खलियानों से ही उन्हें पौने कम पर बेचने को मजबूत हो जाते हैं. अनुमंडल क्षेत्र के दर्जनों किसानों ने बताया कि इस साल मक्के का मूल्य जहां 1900 से 2000 रुपये प्रति क्विंटल है. जबकि मक्का की लागत मूल्य 25 से 35 हजार रुपए प्रति एकड़ है. अधिकांश किसानों का कहना है कि प्रतिवर्ष महाजनों से कर्ज लेकर मक्का की फसल लगते हैं. करीब 5 महीने से अधिक दिनों तक बिना धूप छांव की परवाह किये कड़ी मेहनत कर फसल तैयारी होने का इंतजार करते हैं. इसी फसल पर बेटे-बेटियों की शादी सहित अन्य महत्वपूर्ण घरेलू कार्य निर्भर करता है. लेकिन उम्मीद के मुताबिक उत्पादन की कीमत नहीं मिलने से शादी विवाह सहित घरेलू कार्य की बात तो दूर महाजन से लिए गये कर्ज भी चुकाना उन्हें भारी पड़ रहा है. किसानों ने बताया कि इतने बेहद पैमाने पर मक्का की खेती होने के बावजूद इस क्षेत्र में मक्का आधारित उद्योग नहीं रहने एवं मक्का बेचने के लिए इस इलाके में बड़ी मंडी एवं रेक पॉईंट नहीं होने से हर वर्ष किसानों की परेशानी काफी बढ़ जाती है. व्यापारियों के हाथों औने-पौने दाम पर पर मक्का बेचने को मजबूर हो जाते हैं.

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