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कन्या पूजन आज, जिनके हंसने से आती है खुशहाली

आठ वर्ष से कम उम्र की कुंवारी कन्याओं की भगवती के रूप में होती है पूजा

छोटी कन्याएं देंगी बुजुर्गों को आशीष खगड़िया. जिले में शारदीय नवरात्र को लेकर मंदिरों में पूजा-अर्चना की जा रही है. सुबह से लेकर शाम तक वैदिक मत्रोच्चार से दिशाएं गुंजायमान हो रहा है. वातावरण भक्तिमय हो गया है. मंदिरों तथा पूजा पंडालों में श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ती जा रही है. शुक्रवार को श्रद्धा के साथ कुंवारी कन्याओं का पूजन होगा. इस पूजा का विशेष महत्व है. जो वर्षों से चली आ रही है. कन्या पूजन का महत्व शारदीय नवरात्र में कुंवारी कन्या पूजन का विशेष महत्व है. ऐसी मान्यता है कि मां दुर्गा ने कुंवारी कन्या के रूप में ही अवतार लिया था. जो सर्वशक्तिमान है. शास्त्रों में वर्णित है कि ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश ने भी देवी की इस उपासना को स्वीकारा है. भगवान शिव स्वयं कहते हैं कि शक्ति के बिना शिव शव के समान है. ऐसा माना जाता है कि नवरात्र में जो भक्तगण मां के साथ साथ प्रतिदिन कन्या पूजन कर उन्हें भोग लगवाता है. उनकी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती है. शारदीय नवरात्र में कुंवारी कन्या पूजा करने तथा भोजन ग्रहण कराने से भक्तों को विशेष आशीर्वाद मिलता है. आठ वर्ष से कम उम्र की कुंवारी कन्याओं की भगवती के रूप में होती है पूजा श्री चतुर्भुजी दुर्गा मंदिर बिशौनी में बीते 40 वर्षों से पूजा के माध्यम से मां की सेवा करते आ रहे पंडित प्राण मोहन कुंवर बताते हैं कि आठ वर्ष से कम उम्र की कुंवारी कन्या को भगवती के रूप में पूजा जाता है. मां भगवती की कृपा उनके ऊपर विराजमान रहती है. नौवीं पूजा को दर्जनों कुंवारी कन्याओं की पूजा मां भगवती के सामने होती है. भक्तजन अपनी चिन्हित कन्याओं को नये वस्त्रों तथा श्रृंगार से सुशोभित कर मंदिर में लेकर आते हैं. मंदिर में इन कन्याओं को कतार में बिठाकर उनके पैरों पर फूल और जल चढ़ाकर उनकी पूजा की जाती है. खोईछा भरने की है परंपरा कुंवारी कन्या के माथे पर सिंदूर का टीका लगाकर खोईछा भरने की विशेष परंपरा है. इसमें मिष्टान एवं द्रव्य दिये जाते हैं. इस पूजन के माध्यम से भक्तगण कुंवारी कन्या के रूप में भगवती को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं. हंसती है कन्याएं कुंवारी कन्या पूजन के अंतिम क्षणों में उपस्थित महिला पुरुष भक्तजन हाथ जोड़कर कुंवारी कन्या से हंसने को विनती करते हैं. दुर्गारुपी कुंवारी कन्या भक्तों की विनती को स्वीकार कर हंस पड़ती हैं. वहां उपस्थित दो दर्जन से अधिक कुंवारी कन्याओं की हंसी से मंदिर परिसर और भी भक्तिमय हो जाता है. इन कन्याओं से आशीर्वाद लेने की होड़ सी लग जाती है. छोटी छोटी बच्चियों द्वारा बुजुर्गों के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देते देखना एक अविस्मरणीय प्रसंग के रूप में स्मृति में समाती है.

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