किशनगंज : पूंजीगत सब्सिडी के साथ न्यूनतम 25 लाख और अधिकतम पांच करोड़ रुपए की लागत वाली चाय परियोजनाओं का लाभ अब किशनगंज के चाय क्षेत्र से जुड़े लोगों को मिल सकेगा. बिहार में पिछले दो दशकों से चाय की जमकर खेती हो रही है और चाय का उत्पादन भी हो रहा है. पिछले कुछ वर्षों से राज्य सरकार के द्वारा इस उद्योग को बढ़ावा देने की बात की जा रही थी किन्तु अब बिहार सरकार ने चाय उद्योग को बिहार कृषि निवेश प्रोत्साहन नीति में शामिल किया है.
इस नीति की अधिसूचना जारी होने के बाद जिले के चाय किसानों और चाय उत्पादकों में हर्ष की लहर है. इस नीति में चाय क्षेत्र के शामिल होने के बाद अब जिले में चाय व्यवसाय में निवेश को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार द्वारा वितीय सहायता प्रदान की जाएगी. प ्रसंस्करण के स्तर को बढ़ावा मिलेगा. अपव्यय को कम करने में और मूल्य संवर्द्धन, निर्यात को बढ़ावा मिलेगा. जिससे चाय प्रसंस्करण क्षेत्र के विकास होने की उम्मीद की जा रही है.
किशनगंज में वर्ष 1990 की दशक में चाय की खेती बड़े पैमाने पर होने लगी. इसी के मद्देनजर तत्कालीन सीएम नीतीश कुमार ने किशनगंज को टी-सिटी बनाने की घोषणा भी की, लेकिन यह घोषणा अमल में नहीं आ सका. बुद्धिजीवी बताते हैं किशनगंज को टी-सिटी का दर्जा मिल गया होता तो यहां के चाय उत्पादक किसानों की माली हालत बेहतर होती साथ ही अन्य किसानों का रुझान भी चाय की खेती की ओर बढ़ता. जिससे किशनगंज भारत के मानचित्र पर अपना अलग पहचान को नया मुकाम देता. वर्ष 1956 ई. में राज्य पुनर्गठन आयोग द्वारा किशनगंज अनुमंडल के करणदिघि से सोनापुर (अब बंगाल) के छह प्रखंड काटकर यदि पश्चिम बंगाल को न दे दिये जाते तो किशनगंज के माध्यम से बिहार 1956-57 में चाय उत्पादक राज्य हो जाता. कभी किशनगंज का हिस्सा रहा सोनापुर आज पश्चिम बंगाल राज्य में चाय व अनानास उत्पादन में कमाउ पूत बना है
किशनगंज में बनी चाय दार्जलिंग जिले की चाय से बखूबी टक्कर ले रही है. निजी टी प्रोसेसिंग प्लांट में बनी चाय बिहार के अन्य जिले सहित दूसरे प्रदेशों में भी खूब बिक रही है. राजबाड़ी ब्रांड के नाम से बिक रही किशनगंज की चाय लोगों को खूब भा रही है. जानकार बतातें हैं कि सरकार चाय उद्यमियों के प्रति थोड़ा उदारता दिखाए तो यहां आधा दर्जन टी प्रोसेसिंग प्लाट व चाय की खेती बड़े पैमाने पर और बढ़ सकती है.
posted by ashish jha