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फसलों का नहीं बचा नामोनिशान रह गये सिर्फ बर्बादी के निशान

कई पक्की सड़कें भी पानी में बह चुकी हैं लोगों को आवागमन में काफी परेशानी का करना पड़ रहा है सामना किशनगंज : वर्षों से खामोश रहने वाली महानंदा, कनकई, रतुआ, बूढ़ी कनकई, मेची नदी इस बार किशनगंज जिले में इस तरह तबाही की इबारत लिख डाली है. इससे उबरने में क्षेत्र के लोगों को […]

कई पक्की सड़कें भी पानी में बह चुकी हैं

लोगों को आवागमन में काफी परेशानी का करना पड़ रहा है सामना
किशनगंज : वर्षों से खामोश रहने वाली महानंदा, कनकई, रतुआ, बूढ़ी कनकई, मेची नदी इस बार किशनगंज जिले में इस तरह तबाही की इबारत लिख डाली है. इससे उबरने में क्षेत्र के लोगों को वर्षों लगेंगे. फिलहाल बाढ़ का पानी सूखने की कगार पर है लोग अपने-अपने घरों को वापस लौट रहे हैं, लेकिन बाढ़ से तबाही का दृश्य देख उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा है. जगह-जगह सड़कें टूट चुकी हैं.
वहीं कई पक्की सड़कें भी पानी में बह चुकी हैं. किशनगंज-बहादुरगंज सड़क, मस्तान चौक- सोंथा सड़क, बेलवा-कुलामनी सड़क, बहादुरगंज- दिघलबैंक सड़क, अररिया से गलगलिया जाने वाली एनएच 327 ई, किशनगंज से ठाकुरगंज सड़क, हरूवाडांगा से सिंघीमारी सड़क, सिंघीमारी से बीबीगंज सड़क, टप्पू से दोगिरजा सड़क आदि सड़कें टूट गई हैं. लोगों को आवागमन में काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. सड़कों के कटने से लोगों को घर तक पहुंचने में भी नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं. सबसे दुखद हालत फसल को लेकर है. बाढ़ के कारण बर्बाद हो चुकी फसल को देख किसानों का कलेजा कांप रहा है. उनकी मेहनत व पूंजी पानी के साथ ही बह चुकी है.
बड़े भूभाग में लगी धान व मक्का की फसल का कहीं नामोनिशान नहीं बचा है. लोगों का कहना है कि बाढ़ में टूट चुके घर में तो किसी तरह रह लेंगे, परन्तु फसल बर्बाद हो जाने के बाद आखिर उन सब का जीवन कैसे कटेगा. फिलहाल बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में सड़क से लेकर बिजली तक की व्यवस्था चौपट पड़ी हुई है. लोग अपने हालत पर जीने को मजबूर हैं. इन लोगों के सामने बाढ़ समाप्ति के बाद भी जीवन को पुन: पटरी पर लाने की चुनौती बनी है.

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