विद्वानों की राय से बने कानून

तीन तलाक . सबों ने कहा, सुप्रीम कोर्ट का फैसला सराहनीय तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर मुस्लिम महिलाएं सुबह से ही टीवी पर नजरें गड़ाये रहीं. फैसले के बाद दिन भर लोग चर्चा करते देखे गये. किशनगंज : सुप्रीम कोर्ट के तीन तलाक के मुद्दे पर आए फैसले को लेकर मुस्लिम […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 23, 2017 3:59 AM

तीन तलाक . सबों ने कहा, सुप्रीम कोर्ट का फैसला सराहनीय

तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर मुस्लिम महिलाएं सुबह से ही टीवी पर नजरें गड़ाये रहीं. फैसले के बाद दिन भर लोग चर्चा करते देखे गये.
किशनगंज : सुप्रीम कोर्ट के तीन तलाक के मुद्दे पर आए फैसले को लेकर मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में दिन भर चर्चा रही. कई दिनों से लोगों को फैसले का इंतजार था. मुस्लिम आबादी वाली कॉलोनियों तथा गांवों में सुबह से ही मुस्लिम महिलाएं फैसले के इंतजार में थीं. दिन पर टीवी पर नजरें गड़ाए मुस्लिम पुरुष व महिलाओं में फैसले पर चर्चा चलती रही. सुप्रीम कोर्ट की ओर से केंद्र सरकार को छह महीने में कानून बनाए जाने के आदेश पर पुरुषों से बातचीत का विषय रहा.
महिलाओं को भी िमलना चाहिए अधिकार व सम्मान
सरपंच संघ के जिलाध्यक्ष व गाछपाड़ा ग्राम कचहरी के सरपंच मो जफर आलम ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट का यह एक ऐतिहासिक फैसला है. पति पत्नी की रजामंदी से तलाक होना चाहिए. एक तरफ़ा तलाक कतई भी आज के इस दौर में उचित नहीं. बदलते इस युग में महिलाओं को भी अधिकार और सम्मान मिलना चाहिए. उन्होंने कहा कि तलाक के मुद्दे पर सरकार अगर कोई कानून बनाती है, तो इससे पहले विद्वानों से राय ली जानी चाहिए. दीन से जुड़े लोगों के मशविरा के बाद ही कानून बनाया जाए.
जिला सरपंच संघ के अध्यक्ष व गाछपाड़ा ग्राम कचहरी के सरपंच :
दौला पंचायत के सरपंच अब्दुल हक ने सुप्रीम कोर्ट के तीन तलाक संबंधी दिए फैसले की सराहना की है. उन्होंने कि सबसे पहली बात है कि तलाक किसी भी लिहाज से जायज नहीं है. अगर मियां-बीबी में मतभेद पैदा होते हैं, तो आपस में सुलह कर लेनी चाहिए, इसमें मुस्लिम महिलाओं को एक समय में तीन बार तलाक नहीं दिया जा सकता. अब अगर कानून बनाने की बात हो रही है, तो विद्वानों की राय से ही कानून बनाया जाना चाहिए.
पति-पत्नी के झगड़े को आपस में ही सुलझा लेना चाहिए :पोरलाबारी गांव के वार्ड सदस्य व समाजसेवी मो सेजाबुल हक ने कहा कि देश के सर्वोच्च न्यायालय ने जो फैसला दिया है, इसका हम तहेदिल से स्वागत करते हैं. पति-पत्नी के झगड़े को आपस में ही सुलझा लेना चाहिए. इससे भी बात नहीं बनी तो सामाजिक स्तर पर दोनों का काउंसेलिंग किया जाना चाहिए. इस्लाम ने महिलाओं को उनके सभी हक दिए हैं. उन्होंने कहा कि तलाक का समय कुरान के अनुसार तीन माह है.
तलाक होश में लिखित रूप से दो गवाहों के हस्ताक्षरों के साथ तीन बार देने का प्रावधान है. उन्होंने कहा कि अशिक्षा और गुस्से के कारण अधिकांश तलाक होता आया है. तीन तलाक से अधिकांश महिलाओं का जीवन कष्टकारी बन गया है. कई लोग गुस्से और अकारण तीन तलाक का गलत इस्तेमाल करते थे. अब इस निर्णय के बाद देश मे मुस्लिम महिलाओं को इस ट्रिपल तलाक से निजात मिल गयी है.

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