वातावरण भक्तिमय, छठ गीतों से गूंजा इलाका
दिघलबैंक : मानव जीवन से हमारे पर्व त्योहारों का अन्योन्याश्रय संबंध है. इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि पर्व हमारे सभ्यता व संस्कृति का द्योतक है. बिहार,उत्तर प्रदेश समेत अन्य क्षेत्रों में लोक पर्वो में छठ पर्व का स्थान अलग है. चार दिवसीय महापर्व छठ में अस्ताचलगामी सूर्य के साथ उदीयमान सूर्य की आराधना की जाती […]
दिघलबैंक : मानव जीवन से हमारे पर्व त्योहारों का अन्योन्याश्रय संबंध है. इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि पर्व हमारे सभ्यता व संस्कृति का द्योतक है. बिहार,उत्तर प्रदेश समेत अन्य क्षेत्रों में लोक पर्वो में छठ पर्व का स्थान अलग है. चार दिवसीय महापर्व छठ में अस्ताचलगामी सूर्य के साथ उदीयमान सूर्य की आराधना की जाती है. इस पर्व में सर्वप्रथम अस्ताचलगामी सूर्य को और अगले दिन उदीयमान सूर्य की आराधना की जाती है. छठ व्रतियों में महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों की संख्या कम होती है, यह पर्व चार दिनों में संपन्न होता है.
छठ गीतों से भाव-विभोर हुए लोग
लोक आस्था के इस पर्व को लेकर दीपावली के समय से पूरा वातावरण छठ गीतों से गूंजना शुरु हो जाता है छठ के पारंपरिक गीत गूंजने लगते हैं.जो पूरे छठ पर्व तक गूंजते हैं खासकर शारदा सिन्हा के कर्ण प्रिय गीतों से लोग भाव-विभोर हो रहें है.
वर्ष में होता है दो बार छठ : साल में दो बार छठ होता है-कार्तिकी छठ और चैती छठ कार्तिकी छठ सभी क्षेत्रों में प्रसिद्ध है. इसलिए इस छठ को करने वालों की संख्या अधिक है. इस पर्व में ऊंच-नीच, अमीर-गरीब का भेदभाव समाप्त हो जाता है. आर्थिक रूप से कमजोर श्रद्धालु सूप में भीख मांगकर इस पर्व को करते हैं.
कई किंवदंतियां भी : छठ पर्व से संबंधित कई किवदंतियां हैं. एक प्रचलित कथानुसार जब पांडव जुए में अपना सारा राज पाट हारने के बाद विपत्ति में पड़े तो द्रौपदी ने छठ व्रत किया था तदोपरांत द्रौपदी की कामना पूरी हुई और पांडवों का खोया हुआ राज पाट मिल गया.दूसरी ओर यह भी कहा जाता है कि छठ पर्व मनाने के पीछे महाभारत के एक मुख्य पात्र दानवीर कर्ण भी थे. कुछ लोग इस पर्व को कृषि के साथ भी जोड़ते हैं.