सख्ती के बाद भी शराब का धंधा नहीं पड़ा मंदा
किशनगंज : कहने को सूबे में शराबबंदी है, पर इसका असर यहां नहीं दिखता है. शहर से लेकर गांव तक इसकी बिक्री धड़ल्ले से जारी है. फर्क इतना ही है कि पहले पीने व पिलाने वाले शान से काउंटर पर जाकर खरीदते थे. अब चुपके-चुपके खरीदते और छिपकर पीते हैं. इसकी बिक्री ऊंची कीमतों पर […]
किशनगंज : कहने को सूबे में शराबबंदी है, पर इसका असर यहां नहीं दिखता है. शहर से लेकर गांव तक इसकी बिक्री धड़ल्ले से जारी है. फर्क इतना ही है कि पहले पीने व पिलाने वाले शान से काउंटर पर जाकर खरीदते थे. अब चुपके-चुपके खरीदते और छिपकर पीते हैं. इसकी बिक्री ऊंची कीमतों पर की जा रही है.
किशनगंज सीमा से सटे पश्चिम बंगाल के रामपुर, कानकी, दालकोला, पांजीपाड़ा, इस्लामपुर, सिलीगुड़ी के अलावे पड़ोसी देश नेपाल सीमा से सटे ठाकुरगंज, दिघलबैंक और टेढ़ागाछ प्रखंड से यह जिला शराब धंधेबाजों के लिए हब बन गया है. यहां सबसे अधिक मात्रा में पश्चिम बंगाल और पड़ोसी राष्ट्र नेपाल के रास्ते शराब आ रही है. धंधेबाज अब शराब को जमीन के नीचे गाड़कर, झाड़ी में छिपाकर, पुराने खंडरनुमा घरों में छिपाकर रखते हैं. शराब के धंधे के लिए बंगाल और नेपाल से सटा गांव सुरक्षित क्षेत्र बन गया है.
पैदल, साइकिल, मोटर साइकिल के जरिये इन क्षेत्रों में बड़ी आसानी से शराब की खेप पहुंच जाती है और वहां से निजी कार, लग्जरी वाहनों के जरिये अवैध तस्करों के यहां बड़ी आसानी से होम डिलिवरी कर दी जाती है. किशनगंज शहर होकर शराब को लग्जरी वाहनों से अररिया के रास्ते सुपौल, मधेपुरा, सहरसा, दरभंगा शराब पहुंचाया जाता है. दिन की जगह धंधा अब रात के अंधेरे में ज्यादा हो रहा है.