111 साल पुराना जर्जर है महानंदा पुल, कभी भी हो सकता है बड़ा हादसा
किशनगंज - तैयबपुर - ठाकुरगंज - गलगलिया (केटीटीजी) सड़क मार्ग पर स्थित महानंदा नदी पर बना पुल 111 साल पुराना होने के कारण जर्जर हालत में है. यह पुल किसी भी वक्त बड़े खतरे को दावत दे सकता है.
111 साल पुराने जर्जर महानंदा पुल पर झूल रही जिंदगी
पुल निर्माण नहीं होना सरकार की उदासीनता : सऊद आलमबच्छराज नखत, ठाकुरगंज
किशनगंज – तैयबपुर – ठाकुरगंज – गलगलिया (केटीटीजी) सड़क मार्ग पर स्थित महानंदा नदी पर बना पुल 111 साल पुराना होने के कारण जर्जर हालत में है. यह पुल किसी भी वक्त बड़े खतरे को दावत दे सकता है. इस पुल को ठीक करने अथवा पुल पर जाम की स्थिति को कंट्रोल करने के लिए कोई ठोस प्रयास प्रशासन द्वारा नहीं की जाने से राहगीरों को खासा परेशानियों का सामना करना पड़ता है. पुल पर रोजाना लगने वाला जाम अब लोगो को परेशान करने लगा है.1913 में बना है यह पुल
किशनगंज – ठाकुरगंज पथ पर महानंदा नदी पर बना पुल पर अंकित सूचना के मुताबिक इस पुल का निर्माण वर्ष 1913 में ब्रिटिश शासन के दौरान वर्ण एन्ड कंपनी लिमिटेड,हावड़ा (पश्चिम बंगाल) नामक ब्रिज बिल्डर कंपनी ने कराया था. यह पुल न सिर्फ ठाकुरगंज प्रखंड को जिला मुख्यालय किशनगंज से जोड़ती है. बल्कि आपदा के समय जब एनएच 31 बंद रहता है तो किशनगंज को पूर्वोतर भारत से भी जोड़ने का काम करती है. एक शताब्दी वर्ष पुराना यह पुल अब धीरे-धीरे दम तोड़ने लगा है. लोहे के इस पुल पर जगह-जगह जंग लग गया है. पुल के कई हिस्सें क्षतिग्रस्त हो गए है.नैरो गेज की रेलगाड़ियां चलाने के लिए हुआ था निर्माण
इस पुल का निर्माण दार्जिलिंग-हिमालयन रेलमार्ग के तहत नेरो गेज की रेलगाड़ियां चलाने के लिए की गई थी. इसके बाद असम रेलवे लिंक प्रोजेक्ट (एआरएलपी)के तहत जब नेरो गेज को मीटर गेज के रुप में अमान परिवर्तन किया गया था. इस स्थान से 50 मीटर उत्तर महानंदा नदी पर मीटर गेज के लिए वर्ष 1949 में पुल का निर्माण किया था. जिसमें वर्तमान में ब्रॉड गेज की ट्रेन आवाजाही कर रही है और दार्जिलिंग-हिमालयन रेलवे मार्ग के लिए बना पुल सड़क यातायात के लिए दे दिया गया.
1915 में ही आस्तित्व में आगया था यह रेल लाइन
रेलवे सूत्रों के अनुसार दार्जिलिंग हिमालयन रेल मार्ग के तहत नैरो गेज में रेलगाड़ियां सन 1881ई0 से सिलीगुड़ी तक ही चल रही थी. वर्ष 1915 ई0 में इसमें बढ़ोत्तरी कर ठाकुरगंज होते हुए किशनगंज तक किया गया था. इसी नैरोगेज रेल के लिए 1913 में इस पुल का निर्माण किया गया था. वही 1949 ई0 में असम रेलवे लिंक प्रोजेक्ट(एआरएलपी) के तहत मीटर गेज के लिए ट्रेन का परिचालन प्रारंभ हुआ तब नैरो गेज वाले महानंदा नदी पर बने पुल को आम जनता के आवागमन के लिए सड़क मार्ग से वर्ष 1950 ई0 को जोड़ दिया गया जो आज पथ निर्माण विभाग,किशनगंज के तहत केटीटीजी रोड से जुड़ा हुआ है.
हो चुकी है मिटटी की जांचमहानंदा नदी पर पुल निर्माण हेतु करीब 8 वर्ष पूर्व सॉयल टेस्ट कराए गए थे जिससे आमजनों की उम्मीद बढ़ी थी कि अब पुल का निर्माण कार्य अतिशीघ्र शुरू होगा पर पुल निर्माण कार्य अभी तक प्रारंभ नहीं हुआ है. पुल की जर्जरावस्था स्थिति में होने के कारण भारी वाहनों के चलने से पुल हिलने लगता है.प्रतिदिन वाहनों की बढ़ती क्षमता के मद्देनजर एक दूसरे पुल की दरकार है.साथ इस मार्ग में ट्रैफिक बढ़ने व पुल एक लेन होने के कारण कभी-कभी भारी जाम की समस्या से राहगीरों को सामना करना पड़ता हैं.किसी किसी दिन तो 3-4 घंटे जाम में लोगों को फंसे रहना पड़ता हैं. पुलिस प्रशासन की पहल से जाम की समस्या का समाधान निकलता है.
क्या कहते है विधायक
इस बावत स्थानीय विधायक सऊद आलम ने कहा कि महानंदा पुल इलाके की लाइफलाइन है. इस पुल के निर्माण के लिए मेरे द्वारा हर स्तर पर प्रयास किया गया है. उन्होंने बताया इस पुल का मामला बिहार विधानसभा में उठाया गया था तथा विभागीय मंत्री ने वर्ष 2021 में ही इस स्थल पर नए आर सी सी पुल ( 10 / 25 . 32 मी ) निर्माण कार्य के प्राक्कलन बिहार राज्य पुल निर्माण निगम द्वारा तैयार किये जाने की बात कही थो . उन्होंने बताया की जब विधानसभा में सरकार दावा करती है की केवल प्रशासनिक स्वीकृति बाकी है और इस बात को तीन साल बीत गए उसके बाद भी सरकार का इस मामले में रुखा रवैया चिंताजनक है. विधायक सऊद आलम ने कहा की यह काफी दुखद है की मुख्यमंत्री के किशनगंज दौरे के दौरान इस पुल के निर्माण के लिए शिलान्यास नहीं होना है , उन्होंने कहा महानन्दा नदी पर पुल समय की जरुरत है इसलिए सरकार को इस मामले में जल्द से जल्द कदम उठाना चाहिए. उन्होंने कहा की इस स्थल पर जल्द ही पुल का निर्माण हो यह उनका प्रयास रहेगा.
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